Comments - उलझे हुए लोग/ लघुकथा - Open Books Online2024-03-29T06:14:34Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A795843&xn_auth=noकटाक्ष करती इस लघुकथा की प्र…tag:openbooksonline.com,2016-09-09:5170231:Comment:7990582016-09-09T15:42:45.608Zअलका 'कृष्णांशी'http://openbooksonline.com/profile/AlkaChanga
<p><span>कटाक्ष करती इस लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई <span>आदरणीया कांता जी </span></span></p>
<p><span>कटाक्ष करती इस लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई <span>आदरणीया कांता जी </span></span></p> आपको लघुकथा प्रभावित करने में…tag:openbooksonline.com,2016-09-04:5170231:Comment:7980142016-09-04T08:44:33.469Zkanta royhttp://openbooksonline.com/profile/kantaroy
आपको लघुकथा प्रभावित करने में सफल रहा ,यह तो मेरे लिये अवार्ड मिलने जैसा महसूस हो रहा है।आपसे सराहना पाना सुखद है। आभारी हूूँ दिल से।
आपको लघुकथा प्रभावित करने में सफल रहा ,यह तो मेरे लिये अवार्ड मिलने जैसा महसूस हो रहा है।आपसे सराहना पाना सुखद है। आभारी हूूँ दिल से। तंज के इस तीर का मर्म समझने क…tag:openbooksonline.com,2016-09-04:5170231:Comment:7978252016-09-04T08:42:10.165Zkanta royhttp://openbooksonline.com/profile/kantaroy
तंज के इस तीर का मर्म समझने के लिये हृदय से आभार आपका आदरणीय समर कबीर जी।
तंज के इस तीर का मर्म समझने के लिये हृदय से आभार आपका आदरणीय समर कबीर जी। उलझे हुए लोगों की उलझनों के त…tag:openbooksonline.com,2016-09-04:5170231:Comment:7978232016-09-04T08:41:28.673Zkanta royhttp://openbooksonline.com/profile/kantaroy
उलझे हुए लोगों की उलझनों के तह तक पहुँच कर लघुकथा को पसंद करने के लिये हृदय से आभार आपका आदरणीय सुशील सरना जी।
उलझे हुए लोगों की उलझनों के तह तक पहुँच कर लघुकथा को पसंद करने के लिये हृदय से आभार आपका आदरणीय सुशील सरना जी। //जिम्मेदारी लेने की बात शुरू…tag:openbooksonline.com,2016-09-01:5170231:Comment:7971932016-09-01T14:03:46.141Zpratibha pandehttp://openbooksonline.com/profile/pratibhapande
<p><span>//जिम्मेदारी लेने की बात शुरू होते ही सबको मानो साँप सूँघ गया। एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। जरा ही देर में वे सभी आहिस्ता- आहिस्ता वहाँ से निकलते बने// ये कुछ करेंगे भी नहीं और जो भी नया है उसकी आलोचना भी करेंगे ... तथाकथित वरिष्ठों की मानसिकता का सटीक चिट्ठा खोला आपने ... कथा की शैली प्रभावशाली है ...आपको हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीया कांता जी </span><span><br/></span></p>
<p><span>//जिम्मेदारी लेने की बात शुरू होते ही सबको मानो साँप सूँघ गया। एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। जरा ही देर में वे सभी आहिस्ता- आहिस्ता वहाँ से निकलते बने// ये कुछ करेंगे भी नहीं और जो भी नया है उसकी आलोचना भी करेंगे ... तथाकथित वरिष्ठों की मानसिकता का सटीक चिट्ठा खोला आपने ... कथा की शैली प्रभावशाली है ...आपको हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीया कांता जी </span><span><br/></span></p> मोहतरमा कांता रॉय जी आदाब,बहु…tag:openbooksonline.com,2016-08-31:5170231:Comment:7966762016-08-31T12:37:52.556ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
मोहतरमा कांता रॉय जी आदाब,बहुत उम्दा जज़्बे को लेकर बहतरीन तंज़ के तीर चलती इस लघुकथा के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें ।
मोहतरमा कांता रॉय जी आदाब,बहुत उम्दा जज़्बे को लेकर बहतरीन तंज़ के तीर चलती इस लघुकथा के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें । आदरणीया कांता जी यथार्थ को उज…tag:openbooksonline.com,2016-08-31:5170231:Comment:7966292016-08-31T08:38:28.967ZSushil Sarnahttp://openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>आदरणीया कांता जी यथार्थ को उजागर करती और तीक्ष्ण कटाक्ष से परिस्थितिजन्य भाव को चित्रित करती इस लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। </p>
<p>आदरणीया कांता जी यथार्थ को उजागर करती और तीक्ष्ण कटाक्ष से परिस्थितिजन्य भाव को चित्रित करती इस लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। </p>