Comments - धर्म (लघुकथा) - Open Books Online2024-03-28T10:57:38Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A805359&xn_auth=noसादर आभार आदरणीया कल्पना भट्ट…tag:openbooksonline.com,2016-12-03:5170231:Comment:8179922016-12-03T13:34:37.536ZDr. Chandresh Kumar Chhatlanihttp://openbooksonline.com/profile/ChandreshKumarChhatlani
<p>सादर आभार आदरणीया कल्पना भट्ट दी, आपको लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा| </p>
<p>सादर आभार आदरणीया कल्पना भट्ट दी, आपको लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा| </p> बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शेख…tag:openbooksonline.com,2016-12-03:5170231:Comment:8178842016-12-03T13:33:54.348ZDr. Chandresh Kumar Chhatlanihttp://openbooksonline.com/profile/ChandreshKumarChhatlani
<p>बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब आपको यह रचना ठीक लगी और आपने इसके मर्म तक पहुँच कर इसका विश्लेषण भी किया| आपके विश्लेषण से सहमत हूँ| सादर,</p>
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<p>बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब आपको यह रचना ठीक लगी और आपने इसके मर्म तक पहुँच कर इसका विश्लेषण भी किया| आपके विश्लेषण से सहमत हूँ| सादर,</p>
<p></p> सादर धन्यवाद आदरणीय शिज्जु शक…tag:openbooksonline.com,2016-12-03:5170231:Comment:8180712016-12-03T13:33:02.074ZDr. Chandresh Kumar Chhatlanihttp://openbooksonline.com/profile/ChandreshKumarChhatlani
<p>सादर धन्यवाद आदरणीय शिज्जु शकूर जी आपने रचना को सही दिशा देने के लिए प्रवृत्त किया|</p>
<p>सादर धन्यवाद आदरणीय शिज्जु शकूर जी आपने रचना को सही दिशा देने के लिए प्रवृत्त किया|</p> बहुत-बहुत आभार आदरणीय विनोद ख…tag:openbooksonline.com,2016-12-03:5170231:Comment:8178832016-12-03T13:32:49.772ZDr. Chandresh Kumar Chhatlanihttp://openbooksonline.com/profile/ChandreshKumarChhatlani
<p>बहुत-बहुत आभार आदरणीय विनोद खनगवाल जी सर आपने महत्वपूर्ण परिवर्तन की तरफ इंगित किया, इस दिशा में कार्य करने का प्रयास करता हूँ|</p>
<p>बहुत-बहुत आभार आदरणीय विनोद खनगवाल जी सर आपने महत्वपूर्ण परिवर्तन की तरफ इंगित किया, इस दिशा में कार्य करने का प्रयास करता हूँ|</p> हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर…tag:openbooksonline.com,2016-12-03:5170231:Comment:8177962016-12-03T13:32:14.021ZDr. Chandresh Kumar Chhatlanihttp://openbooksonline.com/profile/ChandreshKumarChhatlani
<p>हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी साहब आपको यह प्रयास ठीक लगा|</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी साहब आपको यह प्रयास ठीक लगा|</p> आदरणीय चंद्रेश भैया आपकी यह क…tag:openbooksonline.com,2016-10-05:5170231:Comment:8058692016-10-05T14:14:14.388ZKALPANA BHATT ('रौनक़')http://openbooksonline.com/profile/KALPANABHATT832
<p>आदरणीय चंद्रेश भैया आपकी यह कथा बहुत अच्छी लगी | बहुत बहुत बधाई आपको इस कथा के लिए |</p>
<p>आदरणीय चंद्रेश भैया आपकी यह कथा बहुत अच्छी लगी | बहुत बहुत बधाई आपको इस कथा के लिए |</p> भाई-भाई के देश में 'भतीजी' के…tag:openbooksonline.com,2016-10-03:5170231:Comment:8057192016-10-03T14:15:44.527ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
भाई-भाई के देश में 'भतीजी' के बचाव में बंटते हुए किन्तु स्वतंत्र हुए देश के हालात पर तीखी पंचपंक्ति कहकर सब कुछ कह दिया। क्या मैंने सही समझा आदरणीय सर चन्द्रेश कुमार छतलानी जी?
भाई-भाई के देश में 'भतीजी' के बचाव में बंटते हुए किन्तु स्वतंत्र हुए देश के हालात पर तीखी पंचपंक्ति कहकर सब कुछ कह दिया। क्या मैंने सही समझा आदरणीय सर चन्द्रेश कुमार छतलानी जी? 'भौचक्की' के स्थान पर 'भौचंी'…tag:openbooksonline.com,2016-10-03:5170231:Comment:8057182016-10-03T14:07:10.580ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
'भौचक्की' के स्थान पर 'भौचंी' टंकित हो गया है। सादर सूचनार्थ आदरणीय चन्द्रेश कुमार छतलानी साहब।'
'भौचक्की' के स्थान पर 'भौचंी' टंकित हो गया है। सादर सूचनार्थ आदरणीय चन्द्रेश कुमार छतलानी साहब।' यदि मैं सही समझ पा रहा हूँ, त…tag:openbooksonline.com,2016-10-03:5170231:Comment:8055642016-10-03T14:01:54.606ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
यदि मैं सही समझ पा रहा हूँ, तो यह बहुत ही स्पष्ट किन्तु गूढ़ लघुकथा कही गई है। बहुत सी बातें प्रतीकात्मक शैली में कहने से रचना कुछ पाठकों को भले कुछ पल के लिए उलझाये, लेकिन रचना दमदार तरीके से कथ्य सम्प्रेषित करने में सफल हुई है अप्रत्यक्ष रूप से तथ्यों के कुशन के साथ। प्रचलित शब्द का प्रयोग किए बिना बाख़ूबी 'विधर्मी' शब्द का प्रयोग करते हुए रचना का बेहतरीन आग़ाज़ करके अंतिम तीखी पंचपंक्ति द्वारा बेहद कसी हुई शिल्पबद्ध लघुकथा हेतु तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय चन्द्रेश कुमार छतलानी जी।…
यदि मैं सही समझ पा रहा हूँ, तो यह बहुत ही स्पष्ट किन्तु गूढ़ लघुकथा कही गई है। बहुत सी बातें प्रतीकात्मक शैली में कहने से रचना कुछ पाठकों को भले कुछ पल के लिए उलझाये, लेकिन रचना दमदार तरीके से कथ्य सम्प्रेषित करने में सफल हुई है अप्रत्यक्ष रूप से तथ्यों के कुशन के साथ। प्रचलित शब्द का प्रयोग किए बिना बाख़ूबी 'विधर्मी' शब्द का प्रयोग करते हुए रचना का बेहतरीन आग़ाज़ करके अंतिम तीखी पंचपंक्ति द्वारा बेहद कसी हुई शिल्पबद्ध लघुकथा हेतु तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय चन्द्रेश कुमार छतलानी जी। यही मानव धर्म है विसंगत परिस्थिति व विसंगत परिदृश्य में। बिना किसी पात्र-नाम के बिना किसी धर्म का नाम सीधे तौर पर लिए सबकुछ कह देने की कला कोई इस रचना से सीखे। मेरे विचार से यही उत्कृष्ट लघुकथा लेखन कर्म व लेखनी धर्म भी है। कृपया वरिष्ठ जन समझाइयेगा कि मैं किस सीमा तक सही कह पाया हूँ। आदरणीय चंद्रेश जी आखिर में आप…tag:openbooksonline.com,2016-10-03:5170231:Comment:8057112016-10-03T12:18:24.666Zशिज्जु "शकूर"http://openbooksonline.com/profile/ShijjuS
<p>आदरणीय चंद्रेश जी आखिर में आपकी लघुकथा कुछ अधूरी सी मालूम होती है, बहरहाल इस प्रयास हेतु आपको बधाई</p>
<p>आदरणीय चंद्रेश जी आखिर में आपकी लघुकथा कुछ अधूरी सी मालूम होती है, बहरहाल इस प्रयास हेतु आपको बधाई</p>