Comments - एक ख़तरनाक आतंकवादी - Open Books Online2024-03-28T09:43:03Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A841194&xn_auth=noआदरणीय मिथिलेश सर, सादर अभिवा…tag:openbooksonline.com,2017-03-09:5170231:Comment:8413962017-03-09T18:15:23.320ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
आदरणीय मिथिलेश सर, सादर अभिवादन। रचना के सन्दर्भ में कही गयी आपकी प्रत्येक बात से मैं सहमत हूँ। यह रचना मैंने जल्दी में पोस्ट की है। इसी का परिणाम है कि यह सीधी और सपाट है। इसमें कहीं न कहीं मेरी अपरिक्वता का भी योगदान है। भविष्य में मैं इस बात का पूरा ख़्याल रखूँगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
आदरणीय मिथिलेश सर, सादर अभिवादन। रचना के सन्दर्भ में कही गयी आपकी प्रत्येक बात से मैं सहमत हूँ। यह रचना मैंने जल्दी में पोस्ट की है। इसी का परिणाम है कि यह सीधी और सपाट है। इसमें कहीं न कहीं मेरी अपरिक्वता का भी योगदान है। भविष्य में मैं इस बात का पूरा ख़्याल रखूँगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर। हार्दिक आभार आदरणीय नीलेश जी।…tag:openbooksonline.com,2017-03-09:5170231:Comment:8416182017-03-09T18:09:19.674ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
हार्दिक आभार आदरणीय नीलेश जी। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
हार्दिक आभार आदरणीय नीलेश जी। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर। आदरणीय महेन्द्र जी, आपकी प्रस…tag:openbooksonline.com,2017-03-09:5170231:Comment:8416162017-03-09T17:32:56.014Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय महेन्द्र जी, आपकी प्रस्तुति अभिधात्मक होने के कारण वैसा प्रभाव नहीं छोड़ पाई, जैसा ऐसे विशिष्ट विषयों पर आधारित रचनाओं से अपेक्षा की जाती है. आपने एक विचार तो शाब्दिक तो कर दिया किन्तु बिम्ब, प्रतीकों और व्यंजनात्मकता की कमी ने कविताई को प्रभावित किया है. शब्द जब सीधे सपाट होते हैं तो अपेक्षित ध्वन्यार्थ नहीं निकल पाता है जिसकी ये विषय अपेक्षा रखते हैं. इसलिए शिल्प आधार पर और कसावट की आवश्यकता है. जहाँ तक इस विषय की बात है तो इसको लेकर वैचारिक मतभेद है ही. अब तो लगता है जैसे इस विषयों…</p>
<p>आदरणीय महेन्द्र जी, आपकी प्रस्तुति अभिधात्मक होने के कारण वैसा प्रभाव नहीं छोड़ पाई, जैसा ऐसे विशिष्ट विषयों पर आधारित रचनाओं से अपेक्षा की जाती है. आपने एक विचार तो शाब्दिक तो कर दिया किन्तु बिम्ब, प्रतीकों और व्यंजनात्मकता की कमी ने कविताई को प्रभावित किया है. शब्द जब सीधे सपाट होते हैं तो अपेक्षित ध्वन्यार्थ नहीं निकल पाता है जिसकी ये विषय अपेक्षा रखते हैं. इसलिए शिल्प आधार पर और कसावट की आवश्यकता है. जहाँ तक इस विषय की बात है तो इसको लेकर वैचारिक मतभेद है ही. अब तो लगता है जैसे इस विषयों पर स्पष्ट दो पक्ष बन गए हैं. इसलिए इस बारे में मैं कुछ नहीं कहूँगा. मैं आपने विषय से पूरी तरह से न तो सहमत हो सका हूँ और न ही असहमत. क्योकिं अभी विषय पर एक पक्षीय विचार प्रस्तुत हुआ है, दूसरा पक्ष भी तनिक उभरता तो यह एक संतुलित और प्रभावकारी प्रस्तुति हो जाती. वास्तव में गंभीर विषय इंगितों की अपेक्षा रखते हैं. संकेत ख़ुद बोलते हैं फिर कवि को नहीं कहना पड़ता और न समझाना पड़ता है. ऐसे विषयों पर कलम चलाने का साहस दिखाया आपने, यह बड़ी बात है लेकिन उससे भी अधिक आवश्यक है ऐसे विषयों को शब्द चातुर्य से निभा जाना. बहरहाल इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर </p> सभी साथियों से निवेदन है कि र…tag:openbooksonline.com,2017-03-09:5170231:Comment:8414382017-03-09T14:34:52.998ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>सभी साथियों से निवेदन है कि रचना पर टिप्पणी करें न कि क्यूँ, कब, कैसा..कहाँ आदि पर ....<br/>लेखक की स्वतंत्रता का हनन न please ..<br/>विषय से सहमत या असहमत हुआ जा सकता है ..<br/>...<br/>रचना नवीनता लिये हुए है.. मुझे पसंद आयी.. <br/>सादर </p>
<p>सभी साथियों से निवेदन है कि रचना पर टिप्पणी करें न कि क्यूँ, कब, कैसा..कहाँ आदि पर ....<br/>लेखक की स्वतंत्रता का हनन न please ..<br/>विषय से सहमत या असहमत हुआ जा सकता है ..<br/>...<br/>रचना नवीनता लिये हुए है.. मुझे पसंद आयी.. <br/>सादर </p> आदरणीय गिरिराज सर, सादर अभिवा…tag:openbooksonline.com,2017-03-09:5170231:Comment:8414372017-03-09T14:13:09.577ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
आदरणीय गिरिराज सर, सादर अभिवादन। मैं आपकी दो बातों से सहमत हूँ :-<br />
1. लेखक का अधिकार कुछ कह देने तक ही है। उसे क्या समझा या न समझा जाये ये पढ़ने वालों पर निर्भर होता है क्योंकि पाठक स्वतंत्र होते हैं।<br />
2. गम्भीर विषयों पर इंगितों से बात कही जानी चाहिये।<br />
प्रस्तुत रचना में दूसरे बिन्दु का ध्यान रखा गया है मगर अंशतः, भविष्य में इसका पूरा ख़्याल रखूँगा। पहले बिन्दु में मैं यह जोड़ना चाहूँगा कि यदि कोई पाठक रचना को गलत अर्थ में ले तो यह लेखक का भी दायित्व बनता है कि वह अपनी बात को स्पष्ट कर दे। वस्तुतः…
आदरणीय गिरिराज सर, सादर अभिवादन। मैं आपकी दो बातों से सहमत हूँ :-<br />
1. लेखक का अधिकार कुछ कह देने तक ही है। उसे क्या समझा या न समझा जाये ये पढ़ने वालों पर निर्भर होता है क्योंकि पाठक स्वतंत्र होते हैं।<br />
2. गम्भीर विषयों पर इंगितों से बात कही जानी चाहिये।<br />
प्रस्तुत रचना में दूसरे बिन्दु का ध्यान रखा गया है मगर अंशतः, भविष्य में इसका पूरा ख़्याल रखूँगा। पहले बिन्दु में मैं यह जोड़ना चाहूँगा कि यदि कोई पाठक रचना को गलत अर्थ में ले तो यह लेखक का भी दायित्व बनता है कि वह अपनी बात को स्पष्ट कर दे। वस्तुतः यहाँ मूल बात टाइमिंग की है। यही रचना यदि मैंने कुछ समय पहले अथवा बाद में पोस्ट की होती तो शायद ये प्रश्न न उठते। आपने अपनी टिप्पणी में विश्वास की बात भी की है। मैं आपकी इस बात से भी सहमत हूँ। मुख्य प्रश्न यही है जिसे इस कविता में सरकार के सन्दर्भ में उठाया गया है। अन्त में मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूँगा कि यह रचना मैंने अपनी टिप्पणी में दिए हुए वेबसाइट के लिंक के आधार पर नहीं लिखी है। यह रचना मैं पहले ही लिख चुका था। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर। आदरणीय , मेरा कहना इतना है…tag:openbooksonline.com,2017-03-09:5170231:Comment:8416082017-03-09T13:10:45.919Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय , मेरा कहना इतना है कि केवल एक साइट मे कुछ पढ के आप ऐसे गंभीर और खतरनाक विषय मे एक तरफी बात कैसे लिख सकते हैं , ... क्या आपको मालूम है कि नेट की बातों पर भरोसा के लायक है , इतनी विशवनीय है कि आप उस पर ऐसी रचना कर सकें ..... जिस पर आपको ही कहना पड़े कि मै .. इनके लिये नही उनके लिये कह रहा हूँ ... । भाई जी एक बात समझनी ज़रूरी है कि आपके अधिकार कुछ कह देने तक ही है ... उसे क्या समझा या न समझा जाये ये पढने वालों पर निर्भर होता है ... क्यों कि स्वतंत्र पाठक भी होते हैं ... मुझे लगता है…</p>
<p>आदरणीय , मेरा कहना इतना है कि केवल एक साइट मे कुछ पढ के आप ऐसे गंभीर और खतरनाक विषय मे एक तरफी बात कैसे लिख सकते हैं , ... क्या आपको मालूम है कि नेट की बातों पर भरोसा के लायक है , इतनी विशवनीय है कि आप उस पर ऐसी रचना कर सकें ..... जिस पर आपको ही कहना पड़े कि मै .. इनके लिये नही उनके लिये कह रहा हूँ ... । भाई जी एक बात समझनी ज़रूरी है कि आपके अधिकार कुछ कह देने तक ही है ... उसे क्या समझा या न समझा जाये ये पढने वालों पर निर्भर होता है ... क्यों कि स्वतंत्र पाठक भी होते हैं ... मुझे लगता है गम्भीर विषयों पर इंगितों से बात कही जानी चाहिये । वैसे आप स्वतंत्र हैं ।</p> आदरणीय शिज्जु "शकूर" सर, रचना…tag:openbooksonline.com,2017-03-09:5170231:Comment:8413942017-03-09T12:25:11.832ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
आदरणीय शिज्जु "शकूर" सर, रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए आपका हार्दिक आभार। मैं आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि हमें अपने सुरक्षा बलों का समर्थन करना चाहिए और अगर वो ग़लत करते हैं तो उनका विरोध भी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
आदरणीय शिज्जु "शकूर" सर, रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए आपका हार्दिक आभार। मैं आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि हमें अपने सुरक्षा बलों का समर्थन करना चाहिए और अगर वो ग़लत करते हैं तो उनका विरोध भी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर। आदरणीय गिरिराज सर, सादर अभिवा…tag:openbooksonline.com,2017-03-09:5170231:Comment:8413032017-03-09T12:20:48.748ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
आदरणीय गिरिराज सर, सादर अभिवादन। मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप जैसे वरिष्ठ सदस्यों को कुछ समझाऊँ। मैं तो स्वयं आप लोगों से बहुत कुछ सीखता हूँ। चूँकि इस रचना के सन्दर्भ में मैंने अपना पक्ष आदरणीय शरदिंदु मुख़र्जी जी को दिए गए प्रत्युत्तर में पहले ही रख दिया है इसलिए उसकी पुनरावृत्ति का कोई अर्थ नहीं है। फिर भी, मैं एक बार पुनः स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि<br />
1. इस रचना का सम्बन्ध (यूपी आदि) किसी भी क्षेत्र विशेष की घटना से नहीं है। इसलिए इसे इस सन्दर्भ में न देखा जाए।<br />
2. हो सकता है कि यह रचना एक पक्षीय…
आदरणीय गिरिराज सर, सादर अभिवादन। मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप जैसे वरिष्ठ सदस्यों को कुछ समझाऊँ। मैं तो स्वयं आप लोगों से बहुत कुछ सीखता हूँ। चूँकि इस रचना के सन्दर्भ में मैंने अपना पक्ष आदरणीय शरदिंदु मुख़र्जी जी को दिए गए प्रत्युत्तर में पहले ही रख दिया है इसलिए उसकी पुनरावृत्ति का कोई अर्थ नहीं है। फिर भी, मैं एक बार पुनः स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि<br />
1. इस रचना का सम्बन्ध (यूपी आदि) किसी भी क्षेत्र विशेष की घटना से नहीं है। इसलिए इसे इस सन्दर्भ में न देखा जाए।<br />
2. हो सकता है कि यह रचना एक पक्षीय लग रही हो पर क्या सभी पक्षों को एक ही रचना में स्पष्ट करना ज़रूरी है?<br />
3. पत्थर फेंकने में मेरी कोई रूचि नहीं है पर कोई पत्थर क्यों फेंकता है इसे समझने में ज़रूर है।<br />
इस कविता में मैंने मात्र इतना ही कहने की कोशिश की है कि सरकारें अपना हित साधने के लिए अपने ही निर्दोष नागरिकों को निशाना तक बना सकती हैं। इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। आपका बहुत-बहुत आभार। सादर। आ. महेंद्र कुमार जी यदि आपकी…tag:openbooksonline.com,2017-03-09:5170231:Comment:8415252017-03-09T06:03:12.632Zशिज्जु "शकूर"http://openbooksonline.com/profile/ShijjuS
<p>आ. महेंद्र कुमार जी यदि आपकी यह कविता किसी खास घटना के परिप्रेक्ष्य में नहीं है तो बहुत अच्छी कविता है। अभी कुछ महीने पहले मैंने एक खबर पढ़ी थी एक बंदे को पुलिस आतंकवादी कहकर उठा ले गई थी 23 वर्ष जेल में रहने के बाद यह साबित हुआ था कि वो आतंकवादी नहीं है उसकी ज़िन्दगी का बेशकीमती वक्त बरबाद हो गया उसकी ज़िन्दगी बरबाद हो गई, ये भी एक कड़वा सच है; दुर्भाग्य से कोई इसे देखना नहीं चाहता। आपकी कविता की विषय वस्तु इस सच की तरफ भी इशारा करती सी लग रही है। हमें अपने सुरक्षा बलों का समर्थन करना…</p>
<p>आ. महेंद्र कुमार जी यदि आपकी यह कविता किसी खास घटना के परिप्रेक्ष्य में नहीं है तो बहुत अच्छी कविता है। अभी कुछ महीने पहले मैंने एक खबर पढ़ी थी एक बंदे को पुलिस आतंकवादी कहकर उठा ले गई थी 23 वर्ष जेल में रहने के बाद यह साबित हुआ था कि वो आतंकवादी नहीं है उसकी ज़िन्दगी का बेशकीमती वक्त बरबाद हो गया उसकी ज़िन्दगी बरबाद हो गई, ये भी एक कड़वा सच है; दुर्भाग्य से कोई इसे देखना नहीं चाहता। आपकी कविता की विषय वस्तु इस सच की तरफ भी इशारा करती सी लग रही है। हमें अपने सुरक्षा बलों का समर्थन करना चाहिए और वे ग़लत करते हैं तो उसका विरोध भी करना चाहिए, सिर्फ अपनी नाकामी छुपाने के लिए भी कई बेगुनाहों के साथ ग़लत किया गया है, जो कि सर्वथा ग़लत है। आपने बेबाकी से अपनी बात रखी बहुत बहुत बधाई आपको</p> आदरणीय यही सब कल यू पी मे भी…tag:openbooksonline.com,2017-03-09:5170231:Comment:8414172017-03-09T05:46:02.007Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय यही सब कल यू पी मे भी हुआ है , मुझे क्या समझना चाहिये आप ही बतायें .... आपकी रचना को पढने के बाद ? क्या आपको ऐसा नही लगता कि आपकी रचना एक पक्षीय सच को उजागर कर रही है ? या आप भी वहीं खड़े हैं जहाँ सारे पत्थर बाज खड़े हैं ? आपकी रचना दूसरी किसी सम्भावना की ओर इशारा भी नही कर पा रही है ... जो एक ज़हरीला सच है ।</p>
<p>आदरणीय यही सब कल यू पी मे भी हुआ है , मुझे क्या समझना चाहिये आप ही बतायें .... आपकी रचना को पढने के बाद ? क्या आपको ऐसा नही लगता कि आपकी रचना एक पक्षीय सच को उजागर कर रही है ? या आप भी वहीं खड़े हैं जहाँ सारे पत्थर बाज खड़े हैं ? आपकी रचना दूसरी किसी सम्भावना की ओर इशारा भी नही कर पा रही है ... जो एक ज़हरीला सच है ।</p>