Comments - ओबीओ की सातवीं सालगिरह का तोहफ़ा - Open Books Online2024-03-28T10:01:08Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A846393&xn_auth=noजी हां,सही फ़रमाया आपने,मुझे ल…tag:openbooksonline.com,2017-04-20:5170231:Comment:8501672017-04-20T09:21:04.616ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जी हां,सही फ़रमाया आपने,मुझे लिखना था कि 'इस मिसरे की तक़्ति मैंने उर्दू के हिसाब से की है',ध्यान दिलाने के लिये शुक्रिया आपका ।
जी हां,सही फ़रमाया आपने,मुझे लिखना था कि 'इस मिसरे की तक़्ति मैंने उर्दू के हिसाब से की है',ध्यान दिलाने के लिये शुक्रिया आपका । आदरणीय समर साहब , आपने जो कहा…tag:openbooksonline.com,2017-04-19:5170231:Comment:8500492017-04-19T18:07:47.577ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय समर साहब , आपने जो कहा या तक्तीह की, व्पो तो मैं समझ ही रहा हूँ. मुझे परेशानी इसवाक्य जो लेकर है... <span>//'परिवार'शब्द की तक़ती मैंने उर्दू के लिहाज़ से 212 की है//</span></p>
<p>यहाँ परिवार को २१२ में कैसे या कहाँ बाँधा गया है. मैं समझता हूँ यह टंकण त्रुटि है. </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p>
<p>आदरणीय समर साहब , आपने जो कहा या तक्तीह की, व्पो तो मैं समझ ही रहा हूँ. मुझे परेशानी इसवाक्य जो लेकर है... <span>//'परिवार'शब्द की तक़ती मैंने उर्दू के लिहाज़ से 212 की है//</span></p>
<p>यहाँ परिवार को २१२ में कैसे या कहाँ बाँधा गया है. मैं समझता हूँ यह टंकण त्रुटि है. </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> निलेश जी,मिसरे तो मैं ख़ुद बदल…tag:openbooksonline.com,2017-04-19:5170231:Comment:8500292017-04-19T12:32:16.936ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
निलेश जी,मिसरे तो मैं ख़ुद बदल सकता हूँ,लेकिन ये ग़ज़ल मैंने ओबीओ की सालगिरह वाले दिन ही कही थी,इसलिये उस वक़्त 'परिवार'शब्द पर ध्यान नहीं गया था,क्योंकि उर्दू के हिसाब से मिसरा बिल्कुल दुरुस्त है, बाद में ख़याल आया तो ये नोट लगा दिया,और मंच के लोगों ने इसे समझ भी लिया था,इसे उसी वक़्त दुरुस्त इसलिये नहीं किया था कि जनाब योगराज प्रभाकर साहिब ने बड़ी मुहब्बत से इसे सात रंगों में रंगा था,और फ़ौरन इसे दुरुस्त करने के लिये कहकर में उन्हें ज़हमत नहीं देना चाहता था,सोचा था ये जब पुरानी हो जायेगी तब ये मिसरा…
निलेश जी,मिसरे तो मैं ख़ुद बदल सकता हूँ,लेकिन ये ग़ज़ल मैंने ओबीओ की सालगिरह वाले दिन ही कही थी,इसलिये उस वक़्त 'परिवार'शब्द पर ध्यान नहीं गया था,क्योंकि उर्दू के हिसाब से मिसरा बिल्कुल दुरुस्त है, बाद में ख़याल आया तो ये नोट लगा दिया,और मंच के लोगों ने इसे समझ भी लिया था,इसे उसी वक़्त दुरुस्त इसलिये नहीं किया था कि जनाब योगराज प्रभाकर साहिब ने बड़ी मुहब्बत से इसे सात रंगों में रंगा था,और फ़ौरन इसे दुरुस्त करने के लिये कहकर में उन्हें ज़हमत नहीं देना चाहता था,सोचा था ये जब पुरानी हो जायेगी तब ये मिसरा तब्दील कर दूँगा,अब देखता हूँ कि क्या हो सकता है,आपका सुझाया गया मिसरा। भी ख़ूब है, शुक्रिया आपका । मैं बीच में कुछ कहूँ इतना ज्ञ…tag:openbooksonline.com,2017-04-19:5170231:Comment:8501222017-04-19T11:52:41.190ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>मैं बीच में कुछ कहूँ इतना ज्ञान नहीं है मुझे लेकिन बहस न खिंचे इसलिए यदि <br/><strong>एक परिवार है आइये आप भी </strong><br/>किया जा सकता हो तो देखियेगा सर <br/>.<br/>सादर </p>
<p>मैं बीच में कुछ कहूँ इतना ज्ञान नहीं है मुझे लेकिन बहस न खिंचे इसलिए यदि <br/><strong>एक परिवार है आइये आप भी </strong><br/>किया जा सकता हो तो देखियेगा सर <br/>.<br/>सादर </p> जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,
आम…tag:openbooksonline.com,2017-04-19:5170231:Comment:8502122017-04-19T09:53:30.384ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,<br />
आमीन,सुम्मा आमीन ।<br />
जी इस तरह:-<br />
आप आ/212<br />
एं हमा/212<br />
रे परी/212<br />
वार में/212<br />
ये चूँकि जज़्बाती ग़ज़ल है इसलिये ये नोट लगा दिया था ,बिला वजह की बहस से बचने के लिये ।
जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,<br />
आमीन,सुम्मा आमीन ।<br />
जी इस तरह:-<br />
आप आ/212<br />
एं हमा/212<br />
रे परी/212<br />
वार में/212<br />
ये चूँकि जज़्बाती ग़ज़ल है इसलिये ये नोट लगा दिया था ,बिला वजह की बहस से बचने के लिये । मुबारकां हुज़ूर मुबारकां ..
आ…tag:openbooksonline.com,2017-04-19:5170231:Comment:8502082017-04-19T07:08:59.716ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>मुबारकां हुज़ूर मुबारकां .. </p>
<p>आपकी दिली ख़्वाहिशें पूरी हों. </p>
<p></p>
<p><span>//'परिवार'शब्द की तक़ती मैंने उर्दू के लिहाज़ से 212 की है//</span></p>
<p>इस पंक्ति पर रोशनी डालें आदरणीय. सीखने-सिखाने का नज़रिया बना रहे.</p>
<p>सादर </p>
<p>मुबारकां हुज़ूर मुबारकां .. </p>
<p>आपकी दिली ख़्वाहिशें पूरी हों. </p>
<p></p>
<p><span>//'परिवार'शब्द की तक़ती मैंने उर्दू के लिहाज़ से 212 की है//</span></p>
<p>इस पंक्ति पर रोशनी डालें आदरणीय. सीखने-सिखाने का नज़रिया बना रहे.</p>
<p>सादर </p> जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,…tag:openbooksonline.com,2017-04-05:5170231:Comment:8475512017-04-05T12:36:45.730ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,<br />
<br />
तुम कहो में कहूँ, ओबीओ के लिये<br />
संग सबके चलूँ ,ओबीओ के लिये ।<br />
ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,<br />
<br />
तुम कहो में कहूँ, ओबीओ के लिये<br />
संग सबके चलूँ ,ओबीओ के लिये ।<br />
ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ । जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आ…tag:openbooksonline.com,2017-04-05:5170231:Comment:8473992017-04-05T12:29:40.262ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया । जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,ये ओबी…tag:openbooksonline.com,2017-04-05:5170231:Comment:8476252017-04-05T12:27:57.545ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,ये ओबीओ को समर्पित मेरी चौथी ग़ज़ल है, पहली पांचवीं सालगिरह पर दूसरी छटी सालगिरह पर,उसके बाद वो ग़ज़ल जिसका आपने ज़िक्र किया,और अब ये ग़ज़ल ।<br />
ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सर्थक हुआ,सुख़न नवाज़ी और दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ,ओबीओ ज़िंदाबाद ।
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,ये ओबीओ को समर्पित मेरी चौथी ग़ज़ल है, पहली पांचवीं सालगिरह पर दूसरी छटी सालगिरह पर,उसके बाद वो ग़ज़ल जिसका आपने ज़िक्र किया,और अब ये ग़ज़ल ।<br />
ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सर्थक हुआ,सुख़न नवाज़ी और दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ,ओबीओ ज़िंदाबाद । संग तेरे रहूँ .. ओ बी ओ के लि…tag:openbooksonline.com,2017-04-05:5170231:Comment:8475462017-04-05T12:27:30.857Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p><strong>संग तेरे रहूँ .. ओ बी ओ के लिये</strong></p>
<p><strong>तू कहे , मै कहूँ .. ओ बी ओ के लिये <br/>आदरणीय समर भाई , एक बार फिर ओ बी ओ के प्रेम मे पगी आपकी बेहतरीन गज़ल पढ़्ने मिली , आपकी सद्भावनाओं को नमन एवँ गज़ल के लिये आपको हृदय तल से बधाइयाँ प्रेषित हैं ... स्वीकार कीजिये ।<br/></strong></p>
<p><strong>संग तेरे रहूँ .. ओ बी ओ के लिये</strong></p>
<p><strong>तू कहे , मै कहूँ .. ओ बी ओ के लिये <br/>आदरणीय समर भाई , एक बार फिर ओ बी ओ के प्रेम मे पगी आपकी बेहतरीन गज़ल पढ़्ने मिली , आपकी सद्भावनाओं को नमन एवँ गज़ल के लिये आपको हृदय तल से बधाइयाँ प्रेषित हैं ... स्वीकार कीजिये ।<br/></strong></p>