Comments - संवाद -एक ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-28T12:48:11Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A874177&xn_auth=noआदरणीय रवि शुक्ला जी राक्षस क…tag:openbooksonline.com,2017-08-23:5170231:Comment:8756162017-08-23T10:38:42.767Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय रवि शुक्ला जी राक्षस को का विकल्प दानव एकदम सही सुझाया आपने, तो शब्द को भी बदलकर इस प्रकार कह सकते हैं </p>
<p>कैद हैं धनहीन सारे, सेठ बस आजाद है, शायद पसंद आये आपको </p>
<p>इसी तरह मार्गदर्शन करते रहिये, सादर नमन आपको </p>
<p>आदरणीय रवि शुक्ला जी राक्षस को का विकल्प दानव एकदम सही सुझाया आपने, तो शब्द को भी बदलकर इस प्रकार कह सकते हैं </p>
<p>कैद हैं धनहीन सारे, सेठ बस आजाद है, शायद पसंद आये आपको </p>
<p>इसी तरह मार्गदर्शन करते रहिये, सादर नमन आपको </p> आदरणीय Samar kabeer जी ग़ज़ल को…tag:openbooksonline.com,2017-08-23:5170231:Comment:8753652017-08-23T10:34:47.868Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> जी ग़ज़ल को आपने अपना अमूल्य समय दिया दिल सेउक्रिया आपका, आपके कथन का मैं सम्मान करता हूँ, एक नई जानकारी और शब्दों के प्रयोग से अवगत हुआ.</p>
<p>यहाँ मैंने कोयल को मैंने नारी के प्रतीक और सैयाद को शैतानों के प्रतीक में लिया था, इसे शेर को और बेहतर तरीके से कहने का प्रयास करता हूँ. इस मंच की एक बहुत अच्छी बात है कि सभी वरिष्ठ जन खुलकर मार्गदर्शन करते हैं. </p>
<p>सादर नमन मंच को और आपको </p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> जी ग़ज़ल को आपने अपना अमूल्य समय दिया दिल सेउक्रिया आपका, आपके कथन का मैं सम्मान करता हूँ, एक नई जानकारी और शब्दों के प्रयोग से अवगत हुआ.</p>
<p>यहाँ मैंने कोयल को मैंने नारी के प्रतीक और सैयाद को शैतानों के प्रतीक में लिया था, इसे शेर को और बेहतर तरीके से कहने का प्रयास करता हूँ. इस मंच की एक बहुत अच्छी बात है कि सभी वरिष्ठ जन खुलकर मार्गदर्शन करते हैं. </p>
<p>सादर नमन मंच को और आपको </p> आदरणीय बसंत कुमार जी आपकी अच्…tag:openbooksonline.com,2017-08-22:5170231:Comment:8753302017-08-22T11:44:56.316ZRavi Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय बसंत कुमार जी आपकी अच्छी गजल पढ़ी बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>चौथे शेर में हिरण्य कश्यप के लिये राक्षस का बिम्ब लिया है आपने अगर लय के अनुसार दानव करें तो क्या आपके भाव में कोई अंतर पड़ेगा ।</p>
<p>6ठा शेर बहुत ही अच्छा और सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता लगा पुन: बधाई</p>
<p></p>
<p>मतले के उला के दूसरे रुक्न मे तो शब्द कुछ असहज कर रहा है । अगर उचित लगे तो इसे और भी बेहतर कर सकते है</p>
<p>एक् त्वरित सुझाव मात्र है कैद मे धनहीन केवल सेठ ही आजाद है…</p>
<p>आदरणीय बसंत कुमार जी आपकी अच्छी गजल पढ़ी बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>चौथे शेर में हिरण्य कश्यप के लिये राक्षस का बिम्ब लिया है आपने अगर लय के अनुसार दानव करें तो क्या आपके भाव में कोई अंतर पड़ेगा ।</p>
<p>6ठा शेर बहुत ही अच्छा और सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता लगा पुन: बधाई</p>
<p></p>
<p>मतले के उला के दूसरे रुक्न मे तो शब्द कुछ असहज कर रहा है । अगर उचित लगे तो इसे और भी बेहतर कर सकते है</p>
<p>एक् त्वरित सुझाव मात्र है कैद मे धनहीन केवल सेठ ही आजाद है ।</p>
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<p>आदरणीय समर साहब इस गजल के हवाले से एक नई बात पता चली कोयल को मांसाहारी भी नहीं खाते । आभार ।</p> जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब…tag:openbooksonline.com,2017-08-21:5170231:Comment:8751412017-08-21T13:18:12.310ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
'थाम कर दिल मौन कोयल डाल पर बैठी हुई<br />
तीर लेकर हर जगह बैठा हुआ स्य्याद् है'<br />
इस शैर के ऊला मिसरे में 'कोयल'शब्द तार्किकता के हिसाब से ग़लत है,क्योंकि 'कोयल' का कोई शिकार नहीं करता,उसे मारकर कुछ हासिल नहीं होता उसे तो मांसाहारी भी नहीं खाते,इस लिए ऊला मिसरा यूँ करना उचित होगा :-<br />
"थाम कर दिल मौन पक्षी डाल पर बैठा हुआ"
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
'थाम कर दिल मौन कोयल डाल पर बैठी हुई<br />
तीर लेकर हर जगह बैठा हुआ स्य्याद् है'<br />
इस शैर के ऊला मिसरे में 'कोयल'शब्द तार्किकता के हिसाब से ग़लत है,क्योंकि 'कोयल' का कोई शिकार नहीं करता,उसे मारकर कुछ हासिल नहीं होता उसे तो मांसाहारी भी नहीं खाते,इस लिए ऊला मिसरा यूँ करना उचित होगा :-<br />
"थाम कर दिल मौन पक्षी डाल पर बैठा हुआ" आदरणीय laxman dhami जी आपका…tag:openbooksonline.com,2017-08-21:5170231:Comment:8750892017-08-21T10:33:19.693Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">laxman dhami</a><span> जी आपका दिल से शुक्रिया </span></p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">laxman dhami</a><span> जी आपका दिल से शुक्रिया </span></p> आ. भाई बसंत जी गजल सुंदर हुई…tag:openbooksonline.com,2017-08-20:5170231:Comment:8748882017-08-20T15:45:53.172Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
आ. भाई बसंत जी गजल सुंदर हुई है । हार्दिक बधाई ।
आ. भाई बसंत जी गजल सुंदर हुई है । हार्दिक बधाई । आदरणीय Ajay Kumar Sharma जी ह…tag:openbooksonline.com,2017-08-20:5170231:Comment:8748742017-08-20T14:01:16.228Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805" class="fn url">Ajay Kumar Sharma</a> जी ह्रदय से आभार आपका </p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805" class="fn url">Ajay Kumar Sharma</a> जी ह्रदय से आभार आपका </p> आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani …tag:openbooksonline.com,2017-08-20:5170231:Comment:8748722017-08-20T14:00:55.251Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani" class="fn url">Sheikh Shahzad Usmani</a><span> जी आपके प्रतिसाद को सादर नमन </span></p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani" class="fn url">Sheikh Shahzad Usmani</a><span> जी आपके प्रतिसाद को सादर नमन </span></p> बहुत शानदार गजल...tag:openbooksonline.com,2017-08-20:5170231:Comment:8750342017-08-20T05:41:05.522ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
बहुत शानदार गजल...
बहुत शानदार गजल... समसामयिक परिदृश्य व ज्वलंत मु…tag:openbooksonline.com,2017-08-19:5170231:Comment:8747592017-08-19T13:47:38.910ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
समसामयिक परिदृश्य व ज्वलंत मुद्दों पर बेहतरीन अशआर के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी। ऐसा लगा कि कुछ और अशआर पाठक को चाहिए। समस्याओं के साथ समाधान भी बताना बहुत बढ़िया है, सबसे फरियाद है !
समसामयिक परिदृश्य व ज्वलंत मुद्दों पर बेहतरीन अशआर के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी। ऐसा लगा कि कुछ और अशआर पाठक को चाहिए। समस्याओं के साथ समाधान भी बताना बहुत बढ़िया है, सबसे फरियाद है !