Comments - खुद से मुझ को अलग करो----- ग़ज़ल पंकज मिश्र द्वारा - Open Books Online2024-03-19T08:50:22Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A881540&xn_auth=noआदरणीय रामबली सर आपके सुझाव उ…tag:openbooksonline.com,2017-10-11:5170231:Comment:8883812017-10-11T15:14:21.700ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय रामबली सर आपके सुझाव उपयोगी हैं, सादर आभार
आदरणीय रामबली सर आपके सुझाव उपयोगी हैं, सादर आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी सर सादर आ…tag:openbooksonline.com,2017-10-11:5170231:Comment:8882842017-10-11T15:12:39.120ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर सादर आभार
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर सादर आभार मेरे सुझाव के अनुसार दुसरे शै…tag:openbooksonline.com,2017-09-20:5170231:Comment:8827072017-09-20T06:08:57.353Zरामबली गुप्ताhttp://openbooksonline.com/profile/RAMBALIGUPTA
मेरे सुझाव के अनुसार दुसरे शैर में कथ्य का भाव आपके कहन से कुछ भिन्न हो गया है। इसे इस प्रकार कर ले-<br />
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करते हो तुम भी याद मुझे,<br />
ये हिचकी से कहलाया तो।
मेरे सुझाव के अनुसार दुसरे शैर में कथ्य का भाव आपके कहन से कुछ भिन्न हो गया है। इसे इस प्रकार कर ले-<br />
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करते हो तुम भी याद मुझे,<br />
ये हिचकी से कहलाया तो। आदरणीय पंकज मिश्र जी मात्रिक…tag:openbooksonline.com,2017-09-20:5170231:Comment:8822982017-09-20T03:25:21.308Zरामबली गुप्ताhttp://openbooksonline.com/profile/RAMBALIGUPTA
आदरणीय पंकज मिश्र जी मात्रिक बहर पर प्रयास अच्छा है। सादर बधाई स्वीकारें। बताना चाहूँगा कि इस बहर में लय और प्रवाह ही महत्वपूर्ण होता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि पंक्तियाँ पूरी तरह बहर में होने के बाद भी लय नही बन पाती। अतः इस बात को ख़ास ध्यान देने की जरूरत होती है। सच बताऊँ तो मतले में ही लय बाधित है। जरा मतले को इस प्रकार कह कर देखिये-<br />
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खुद से तो मुझको अलग करो,<br />
फिर कहना तुम जिन्दा भी हो।,,,,,,फर्क आप स्वयं समझिये।<br />
इसी प्रकार दुसरे शैर को इस प्रकार कहें-<br />
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तुम करते भी हो याद मुझे,<br />
ये हिचकी से…
आदरणीय पंकज मिश्र जी मात्रिक बहर पर प्रयास अच्छा है। सादर बधाई स्वीकारें। बताना चाहूँगा कि इस बहर में लय और प्रवाह ही महत्वपूर्ण होता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि पंक्तियाँ पूरी तरह बहर में होने के बाद भी लय नही बन पाती। अतः इस बात को ख़ास ध्यान देने की जरूरत होती है। सच बताऊँ तो मतले में ही लय बाधित है। जरा मतले को इस प्रकार कह कर देखिये-<br />
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खुद से तो मुझको अलग करो,<br />
फिर कहना तुम जिन्दा भी हो।,,,,,,फर्क आप स्वयं समझिये।<br />
इसी प्रकार दुसरे शैर को इस प्रकार कहें-<br />
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तुम करते भी हो याद मुझे,<br />
ये हिचकी से कहलाया तो। कथ्य व् प्रवाह देखिये अब।<br />
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तीसरे शैर में कोहेनूर को कोहिनूर कर दीजियेगा बात बन जायेगी।<br />
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चौथे शेर में काफी तब्दीली की आवश्यकता है वैसे एक प्रयास करता हूँ-<br />
तनिक सुकूँ ही सही प्यास में,<br />
लौटाया साकी को ही तो।।,,,, अब देखिये<br />
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अंतिम शैर को बस थोड़ा हेर फेर करें -<br />
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बदली छाई मानो तुमने,<br />
घनी ज़ुल्फ़ बिखराया फिर हो।<br />
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ये सब सुझाव मात्र हैं। जिन्हें मानना न मानना रचनाकार की अपनी स्वतंत्रता है।<br />
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शेष सब शुभ शुभ। सादर हार्दिक बधाई ।tag:openbooksonline.com,2017-09-19:5170231:Comment:8825072017-09-19T10:59:14.870Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
हार्दिक बधाई ।
हार्दिक बधाई । आदरणीय बाऊजी सुझाव के लिए साद…tag:openbooksonline.com,2017-09-18:5170231:Comment:8821762017-09-18T13:54:51.426ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय बाऊजी सुझाव के लिए सादर आभार और प्रणाम
आदरणीय बाऊजी सुझाव के लिए सादर आभार और प्रणाम आदरणीय मुकेश सर बहुत बहुत आभारtag:openbooksonline.com,2017-09-18:5170231:Comment:8823652017-09-18T13:54:31.396ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय मुकेश सर बहुत बहुत आभार
आदरणीय मुकेश सर बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज सर सादर आभारtag:openbooksonline.com,2017-09-18:5170231:Comment:8822532017-09-18T13:54:15.347ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय गिरिराज सर सादर आभार
आदरणीय गिरिराज सर सादर आभार आदरणीय शिज़्ज़ु शकूर सर बहुत बह…tag:openbooksonline.com,2017-09-18:5170231:Comment:8824362017-09-18T13:54:02.523ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय शिज़्ज़ु शकूर सर बहुत बहुत आभार
आदरणीय शिज़्ज़ु शकूर सर बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहित जी सादर आभारtag:openbooksonline.com,2017-09-18:5170231:Comment:8821742017-09-18T13:53:42.441ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय मोहित जी सादर आभार
आदरणीय मोहित जी सादर आभार