Comments - प्राण-स्वप्न - Open Books Online2024-03-29T13:01:24Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A884357&xn_auth=noसराहना के लिए आपका हार्दिक आभ…tag:openbooksonline.com,2017-11-01:5170231:Comment:8946092017-11-01T11:14:14.273Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p><span>सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय महेन्द्र कुमार जी।</span></p>
<p><span>देर से आया हूँ, क्षमाप्रार्थी हूँ।</span></p>
<p><span>सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय महेन्द्र कुमार जी।</span></p>
<p><span>देर से आया हूँ, क्षमाप्रार्थी हूँ।</span></p> // भावनाओ का समुंदर उड़ेल दिय…tag:openbooksonline.com,2017-11-01:5170231:Comment:8945192017-11-01T11:11:58.297Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>// <span>भावनाओ का समुंदर उड़ेल दिया आपने //</span></p>
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<p><span><span>सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिहं जी।</span></span></p>
<p>// <span>भावनाओ का समुंदर उड़ेल दिया आपने //</span></p>
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<p><span><span>सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिहं जी।</span></span></p> //मन्त्र मुग्ध सा इसे मैं पढत…tag:openbooksonline.com,2017-10-07:5170231:Comment:8873852017-10-07T19:21:08.962Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>//<span>मन्त्र मुग्ध सा इसे मैं पढता ही चला गया। कि-त-ना का नवीन प्रयोग मुझे बहुत भाया//</span></p>
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<p><span>आपने मेरे प्रयास को सफ़ल किया है, आदरणीय सुशील जी। हार्दिक आभार।</span></p>
<p>//<span>मन्त्र मुग्ध सा इसे मैं पढता ही चला गया। कि-त-ना का नवीन प्रयोग मुझे बहुत भाया//</span></p>
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<p><span>आपने मेरे प्रयास को सफ़ल किया है, आदरणीय सुशील जी। हार्दिक आभार।</span></p> //बहुत ख़ूबसूरत अहसासात से सजी…tag:openbooksonline.com,2017-10-07:5170231:Comment:8875752017-10-07T19:19:23.173Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>//<span>बहुत ख़ूबसूरत अहसासात से सजी//</span></p>
<p><span>आपने म्रेरा मनोबल बढ़ाया है। हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय समर जी।</span></p>
<p>//<span>बहुत ख़ूबसूरत अहसासात से सजी//</span></p>
<p><span>आपने म्रेरा मनोबल बढ़ाया है। हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय समर जी।</span></p> //सुंदर अहसासों की पावन बगिया…tag:openbooksonline.com,2017-10-07:5170231:Comment:8875742017-10-07T19:17:27.791Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>//<span>सुंदर अहसासों की पावन बगिया //</span></p>
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<p><span>इस रचना को इन शब्दों से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी</span></p>
<p>//<span>सुंदर अहसासों की पावन बगिया //</span></p>
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<p><span>इस रचना को इन शब्दों से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी</span></p> सराहना के लिए आपका हार्दिक आभ…tag:openbooksonline.com,2017-10-07:5170231:Comment:8873832017-10-07T19:15:33.860Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी। </p>
<p>सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी। </p> अच्छी भावपूर्ण कविता है आ. वि…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8846892017-09-27T14:25:24.193ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>अच्छी भावपूर्ण कविता है आ. विजय निकोर जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.</p>
<p>अच्छी भावपूर्ण कविता है आ. विजय निकोर जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.</p> आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवाद…tag:openbooksonline.com,2017-09-26:5170231:Comment:8846172017-09-26T14:41:25.901Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन, भावनाओ का समुंदर उड़ेल दिया आपने, बधाई स्वीकार करें। सादर
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन, भावनाओ का समुंदर उड़ेल दिया आपने, बधाई स्वीकार करें। सादर कभी मुंदती, कभी खुलती पलकें त…tag:openbooksonline.com,2017-09-26:5170231:Comment:8845182017-09-26T13:56:34.982ZSushil Sarnahttp://openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>कभी मुंदती, कभी खुलती पलकें तुम्हारी<br/>शिशु-सी मुस्कान, कि मानो ईश्वर हो पास<br/>आसमान भी अब बिना सरहद का लगता<br/>हम दोनों पर इ-त-ना महरबान ... सुनो<br/>कहता है एक बात, एक बात कहता है<br/>स्नेह की महक में विकसित फूलों-सी तुम<br/>आज यूँ ही मेरी धड़कन पर सिर टेके रहो</p>
<p>वाह आदरणीय मन्त्र मुग्ध सा इसे मैं पढता ही चला गया। कि-त-ना का नवीन प्रयोग मुझे बहुत भाया। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।</p>
<p>कभी मुंदती, कभी खुलती पलकें तुम्हारी<br/>शिशु-सी मुस्कान, कि मानो ईश्वर हो पास<br/>आसमान भी अब बिना सरहद का लगता<br/>हम दोनों पर इ-त-ना महरबान ... सुनो<br/>कहता है एक बात, एक बात कहता है<br/>स्नेह की महक में विकसित फूलों-सी तुम<br/>आज यूँ ही मेरी धड़कन पर सिर टेके रहो</p>
<p>वाह आदरणीय मन्त्र मुग्ध सा इसे मैं पढता ही चला गया। कि-त-ना का नवीन प्रयोग मुझे बहुत भाया। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।</p> जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,ब…tag:openbooksonline.com,2017-09-26:5170231:Comment:8844422017-09-26T12:30:07.037ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत ख़ूबसूरत अहसासात से सजी इस बढ़िया कविता के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें ।
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत ख़ूबसूरत अहसासात से सजी इस बढ़िया कविता के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें ।