Comments - सब कुछ उपलब्ध है दुकानों में (ग़ज़ल) - Open Books Online2024-03-28T15:18:09Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A884710&xn_auth=noआप सभी आदरणीय गुणीजनों को बहु…tag:openbooksonline.com,2017-10-24:5170231:Comment:8916592017-10-24T07:04:37.798Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooksonline.com/profile/JaynitKumarMehta
आप सभी आदरणीय गुणीजनों को बहुत बहुत साधुवाद!!<br />
मेरी रचना को समय व मान देने के लिए मैं आप सब का हार्दिक आभारी हूँ।
आप सभी आदरणीय गुणीजनों को बहुत बहुत साधुवाद!!<br />
मेरी रचना को समय व मान देने के लिए मैं आप सब का हार्दिक आभारी हूँ। वाह आदरणीय जयनित जी क्या खूबस…tag:openbooksonline.com,2017-09-29:5170231:Comment:8852782017-09-29T11:06:33.769Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
वाह आदरणीय जयनित जी क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है..सादर बधाई
वाह आदरणीय जयनित जी क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है..सादर बधाई जी,आपने सही निर्णय लिया है,ये…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8849102017-09-27T16:19:52.994ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जी,आपने सही निर्णय लिया है,ये अशआर हटा दें ।
जी,आपने सही निर्णय लिया है,ये अशआर हटा दें । आदरणीय भाई जयनित जी बहुत बढ़िय…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8849082017-09-27T16:11:24.028ZDr Ashutosh Mishrahttp://openbooksonline.com/profile/DrAshutoshMishra
आदरणीय भाई जयनित जी बहुत बढ़िया प्रयास है<br />
समर सर की प्रतिक्रिया के माध्यम से बहुत कुछ सीखने को मिला।<br />
बच्चे लड़-भिड़ के खेलने भी लगे<br />
गुफ़्तगू बंद है सयानों में। यह शेर दिल को भा गया<br />
आदरणीय नीरज जी की प्रतिक्रिया में मिल की जगह मिट की बात की गयी है मुझे तो मिल ही सही लगा देखिये इस पर आदरणीय समर सर से मार्गदर्शन जरूर मिलेगा आपको हार्दिक बधाई सादर
आदरणीय भाई जयनित जी बहुत बढ़िया प्रयास है<br />
समर सर की प्रतिक्रिया के माध्यम से बहुत कुछ सीखने को मिला।<br />
बच्चे लड़-भिड़ के खेलने भी लगे<br />
गुफ़्तगू बंद है सयानों में। यह शेर दिल को भा गया<br />
आदरणीय नीरज जी की प्रतिक्रिया में मिल की जगह मिट की बात की गयी है मुझे तो मिल ही सही लगा देखिये इस पर आदरणीय समर सर से मार्गदर्शन जरूर मिलेगा आपको हार्दिक बधाई सादर आदरणीय जयनित जी.
खूबसूरत ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8848582017-09-27T16:01:31.296ZNiraj Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/NirajKumar406
<p>आदरणीय जयनित जी. </p>
<p>खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद.</p>
<p></p>
<p>जनाब समर कबीर साहब ने '<span>मिट चुके हैं फ़क़त बयानों में' की जगह जो मिसरा सुझाया है उसमे शायद गलती 'मिट' की जगह 'मिल' हो गया है.</span></p>
<p></p>
<p><span><span>उसकी यादों की कूक गूँजे जब</span><br></br><span>मिश्री घुलती है दिल के कानों में</span></span></p>
<p></p>
<p></p>
<p>अगर यादें कूक सकती हैं तो दिल के कान भी हो सकते हैं. मेरे ख़याल से अपने काव्यात्मक तर्क के हिसाब से शेर ठीक है. 'यादों की कूक' 'दिल के…</p>
<p>आदरणीय जयनित जी. </p>
<p>खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद.</p>
<p></p>
<p>जनाब समर कबीर साहब ने '<span>मिट चुके हैं फ़क़त बयानों में' की जगह जो मिसरा सुझाया है उसमे शायद गलती 'मिट' की जगह 'मिल' हो गया है.</span></p>
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<p><span><span>उसकी यादों की कूक गूँजे जब</span><br/><span>मिश्री घुलती है दिल के कानों में</span></span></p>
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<p>अगर यादें कूक सकती हैं तो दिल के कान भी हो सकते हैं. मेरे ख़याल से अपने काव्यात्मक तर्क के हिसाब से शेर ठीक है. 'यादों की कूक' 'दिल के कानों में' ही गूँज सकती है हमारे वास्तविक कानों में नहीं .</p>
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<p>सादर </p> आदरणीय समर कबीर जी, प्रणाम!
इ…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8847062017-09-27T15:55:36.991Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooksonline.com/profile/JaynitKumarMehta
आदरणीय समर कबीर जी, प्रणाम!<br />
इस मंच पर ग़ज़ल साझा करने के बाद इन आँखों को जैसे आप ही की टिप्पणी का इंतजार रहता है।<br />
<br />
आपके मार्गदर्शन के बाद मुझे लग रहा है कि "बयानों" और "कानों" वाले शेर बहुत ज़रूरी नाहीं लग रहे हैं, सो इनको हटा रहा हूँ ग़ज़ल से। जहाँ तक तनाफुर की बात है तो मजबूरी में शायर इस दोष के साथ शेर कह ही सकता है न? सो इसे मजबूरी ही समझिए।<br />
मक़्ते में जो सुधार अपेक्षित है, वह मैं कर लूंगा आदरणीय।<br />
एक बार फिर बहुत बहुत नमन आपको।।
आदरणीय समर कबीर जी, प्रणाम!<br />
इस मंच पर ग़ज़ल साझा करने के बाद इन आँखों को जैसे आप ही की टिप्पणी का इंतजार रहता है।<br />
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आपके मार्गदर्शन के बाद मुझे लग रहा है कि "बयानों" और "कानों" वाले शेर बहुत ज़रूरी नाहीं लग रहे हैं, सो इनको हटा रहा हूँ ग़ज़ल से। जहाँ तक तनाफुर की बात है तो मजबूरी में शायर इस दोष के साथ शेर कह ही सकता है न? सो इसे मजबूरी ही समझिए।<br />
मक़्ते में जो सुधार अपेक्षित है, वह मैं कर लूंगा आदरणीय।<br />
एक बार फिर बहुत बहुत नमन आपको।। आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी, नमस्क…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8848042017-09-27T15:48:03.812Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooksonline.com/profile/JaynitKumarMehta
आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी, नमस्कार! उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। धन्यवाद!
आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी, नमस्कार! उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। धन्यवाद! बधाई स्वीकार करेंtag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8845912017-09-27T14:58:26.877Zरामबली गुप्ताhttp://openbooksonline.com/profile/RAMBALIGUPTA
बधाई स्वीकार करें
बधाई स्वीकार करें बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही आपने आद…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8847942017-09-27T14:57:24.839Zरामबली गुप्ताhttp://openbooksonline.com/profile/RAMBALIGUPTA
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही आपने आदरणीय जयनित भाई जी
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही आपने आदरणीय जयनित भाई जी अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. जयनित जी.…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8847872017-09-27T14:35:42.562ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. जयनित जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.</p>
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. जयनित जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.</p>