Comments - दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं - सलीम रज़ा रीवा : ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-28T23:10:13Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A889746&xn_auth=noजनाब नीलेश नूर जी
आपकी मुहब्ब…tag:openbooksonline.com,2017-10-18:5170231:Comment:8902592017-10-18T06:31:26.268ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
जनाब नीलेश नूर जी<br />
आपकी मुहब्बत सलामत रहे..
जनाब नीलेश नूर जी<br />
आपकी मुहब्बत सलामत रहे.. अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ. सलीम…tag:openbooksonline.com,2017-10-18:5170231:Comment:8904352017-10-18T06:00:26.436ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ. सलीम साहब </p>
<p>अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ. सलीम साहब </p> आ. अजय तिवारी जी,
आपकी नज़रे…tag:openbooksonline.com,2017-10-18:5170231:Comment:8903272017-10-18T03:26:18.580ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
आ. अजय तिवारी जी,<br />
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
आ. अजय तिवारी जी,<br />
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया. आदरणीय सलीम साहब,
खूबसूरत ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2017-10-18:5170231:Comment:8903202017-10-18T01:08:23.488ZAjay Tiwarihttp://openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय सलीम साहब,</p>
<p>खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं.</p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीय सलीम साहब,</p>
<p>खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं.</p>
<p>सादर </p> जनाब तस्दीक़ साहब،
आपकी महब्ब…tag:openbooksonline.com,2017-10-17:5170231:Comment:8905192017-10-17T16:58:21.312ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
जनाब तस्दीक़ साहब،<br />
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया. आपका मशविरे का तहे दिल से शुक्रिया... यूँ ही करम फरमाते रहे...
जनाब तस्दीक़ साहब،<br />
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया. आपका मशविरे का तहे दिल से शुक्रिया... यूँ ही करम फरमाते रहे... जनाब सलीम साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हु…tag:openbooksonline.com,2017-10-17:5170231:Comment:8902312017-10-17T16:39:04.256ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
जनाब सलीम साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबाकबाद क़ुबूल फरमाएं । आपके मतले का उला मिसरा मुकेश के एक गाने का मिसरा है जिसे बदल दीजिए ,शेर2 के सानी मिसरे में एब-तनाफुर (उस से ) है,इसे यूँ करलें (ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर--किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं )
जनाब सलीम साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबाकबाद क़ुबूल फरमाएं । आपके मतले का उला मिसरा मुकेश के एक गाने का मिसरा है जिसे बदल दीजिए ,शेर2 के सानी मिसरे में एब-तनाफुर (उस से ) है,इसे यूँ करलें (ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर--किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं ) आली जनाब समर साहब आपकी नज़रे…tag:openbooksonline.com,2017-10-16:5170231:Comment:8898592017-10-16T16:15:19.151ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
आली जनाब समर साहब आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया. तब्दीली की जा रही है..
आली जनाब समर साहब आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया. तब्दीली की जा रही है.. जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2017-10-16:5170231:Comment:8897042017-10-16T15:39:09.827ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।<br />
'इससे जहाँ में कोई भी शय क़ीमती नहीं'<br />
'क़ीमती शय'से मुराद यहाँ 'दिल का मुआमला'है तो मशकूक है ।<br />
दूसरे शैर के सानी मिसरे में 'उनसे'की जगह "उससे"कर लें,शुतरगुर्बा का दोष है ।<br />
पांचवें शैर में 'ख़ूनें' को "ख़ून-ए-"कर लें ।<br />
मक़्ते के ऊला मिसरे में 'तुमसे'की जगह "तुझसे"कर लें,शुतरगुर्बा का दोष है ।<br />
ख़ुश रहो भाई ।
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।<br />
'इससे जहाँ में कोई भी शय क़ीमती नहीं'<br />
'क़ीमती शय'से मुराद यहाँ 'दिल का मुआमला'है तो मशकूक है ।<br />
दूसरे शैर के सानी मिसरे में 'उनसे'की जगह "उससे"कर लें,शुतरगुर्बा का दोष है ।<br />
पांचवें शैर में 'ख़ूनें' को "ख़ून-ए-"कर लें ।<br />
मक़्ते के ऊला मिसरे में 'तुमसे'की जगह "तुझसे"कर लें,शुतरगुर्बा का दोष है ।<br />
ख़ुश रहो भाई । जनाब अफरोज साहब,
आपकी महब्बत…tag:openbooksonline.com,2017-10-16:5170231:Comment:8899272017-10-16T13:31:25.708ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
जनाब अफरोज साहब,<br />
आपकी महब्बत के लिए दिली शुक्रिया..
जनाब अफरोज साहब,<br />
आपकी महब्बत के लिए दिली शुक्रिया.. मुहतरमा बन्दना जी,
आपकी नज़रे…tag:openbooksonline.com,2017-10-16:5170231:Comment:8896962017-10-16T13:30:37.997ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
मुहतरमा बन्दना जी,<br />
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया, आपकी महब्बत सलामत रहे.
मुहतरमा बन्दना जी,<br />
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया, आपकी महब्बत सलामत रहे.