Comments - ग़ज़ल-कभी दुख कभी सुख, दुआ चाहता हूँ (संशोधित ) - Open Books Online2024-03-29T12:24:13Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A893457&xn_auth=noआदरणीय समर कबीर साहिब आदाब, "…tag:openbooksonline.com,2017-11-01:5170231:Comment:8944482017-11-01T15:38:59.878ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब, "बेवफाई " शब्द है ,तो मुझे लगा वफाई भी होगी " शब्दकोष देखा उसमे नहीं था | आपसे सुनिश्चित करने के लिए ही मैंने इसको लिखा | अब मालुम हो गया | विस्तृत विश्लेषण के लिए हार्दिक आभार आपका | संशोधन कर फिर प्रस्तुत करता हूँ | सदर आदाब </p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब, "बेवफाई " शब्द है ,तो मुझे लगा वफाई भी होगी " शब्दकोष देखा उसमे नहीं था | आपसे सुनिश्चित करने के लिए ही मैंने इसको लिखा | अब मालुम हो गया | विस्तृत विश्लेषण के लिए हार्दिक आभार आपका | संशोधन कर फिर प्रस्तुत करता हूँ | सदर आदाब </p> जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आ…tag:openbooksonline.com,2017-11-01:5170231:Comment:8946142017-11-01T12:23:01.655ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
ग़ज़ल अभी और समय चाहती है :-<br />
'वफ़ाई के,बदले वफ़ा मांगता हूँ'<br />
'वफ़ाई'क्या शब्द है भाई?और 'मांगता हूं'यहाँ रदीफ़ बदल गई, और क़ाफ़िया नदारद ?और सानी मिसरे में 'इन्तिहाँ'नहीं "इन्तिहा"इस मतले को यूँ कर सकते हैं :-<br />
'वफ़ाओं के बदले वफ़ा चाहता हूँ<br />
"तेरे इश्क़ की इन्तिहा चाहता हूँ"'<br />
'किया यत्न हमने सकल वियर्थ है अब'<br />
ये मिसरा लय में नहीं है, और शुतरगुर्बा का दोष भी है,<br />
किया यत्न/122मात्रा पतन<br />
हमने स/221<br />
कल व्यर्थ/212<br />
है अब/22<br />
"अभी मैं…
जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
ग़ज़ल अभी और समय चाहती है :-<br />
'वफ़ाई के,बदले वफ़ा मांगता हूँ'<br />
'वफ़ाई'क्या शब्द है भाई?और 'मांगता हूं'यहाँ रदीफ़ बदल गई, और क़ाफ़िया नदारद ?और सानी मिसरे में 'इन्तिहाँ'नहीं "इन्तिहा"इस मतले को यूँ कर सकते हैं :-<br />
'वफ़ाओं के बदले वफ़ा चाहता हूँ<br />
"तेरे इश्क़ की इन्तिहा चाहता हूँ"'<br />
'किया यत्न हमने सकल वियर्थ है अब'<br />
ये मिसरा लय में नहीं है, और शुतरगुर्बा का दोष भी है,<br />
किया यत्न/122मात्रा पतन<br />
हमने स/221<br />
कल व्यर्थ/212<br />
है अब/22<br />
"अभी मैं छकाना उसे चाहता हूँ'<br />
इस मिसरे में क़ाफ़िया नदारद है ।<br />
'दिया ज़ख़्म मुझको ज़माना बहुत है'<br />
इस मिसरे में व्याकरण दोष,और ऐब-ए-तनाफ़ुर भी है, इसे यूँ कर सकते हैं:-<br />
'दिये हैं बहुत दुख ज़माने ने मुझको'<br />
"छुपा राज़ को जानना चाहता हूँ'<br />
"छुपे राज़ को जानना चाहता हूँ"<br />
'निरपराध जी हैं उसे क्यों सज़ा हो'<br />
इस मिसरे में 'हैं' को "है" कर लें ।<br />
'रिवाजें बनाये सभी आदमी ने'<br />
इस मिसरे में 'रिवाजें'शब्द ग़लत है,इसे यूँ कीजिये:-<br />
'रिवाज आदमी ने सभी हैं बनाए'<br />
बाक़ी शुभ शुभ आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी क…tag:openbooksonline.com,2017-11-01:5170231:Comment:8941212017-11-01T01:49:03.342ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी कमियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए धन्यवाद | अभी बह्र में है | सादर नमन </p>
<p>आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी कमियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए धन्यवाद | अभी बह्र में है | सादर नमन </p> अभी मैं उसीको छकाना चाहता हूँ…tag:openbooksonline.com,2017-10-31:5170231:Comment:8936542017-10-31T13:47:55.767ZDr Ashutosh Mishrahttp://openbooksonline.com/profile/DrAshutoshMishra
अभी मैं उसीको छकाना चाहता हूँ ये बह्र में नहीं लगा।।देखिएगा
अभी मैं उसीको छकाना चाहता हूँ ये बह्र में नहीं लगा।।देखिएगा आदरणीय काली प्रसाद जी ग़ज़ल अच्…tag:openbooksonline.com,2017-10-31:5170231:Comment:8937342017-10-31T13:42:15.344ZDr Ashutosh Mishrahttp://openbooksonline.com/profile/DrAshutoshMishra
आदरणीय काली प्रसाद जी ग़ज़ल अच्छी लगी इम्तिहाँ के साथ बाकी काफिये में आ थोडा दुबिधा नें हूँ गुनी जनों की राय से स्पष्ट हो सकेगा रचना पर हार्दिक बधाई सादर
आदरणीय काली प्रसाद जी ग़ज़ल अच्छी लगी इम्तिहाँ के साथ बाकी काफिये में आ थोडा दुबिधा नें हूँ गुनी जनों की राय से स्पष्ट हो सकेगा रचना पर हार्दिक बधाई सादर