Comments - ग़ज़ल,,,,भीगी पलकों पे कई ख़्वाब,, - Open Books Online2024-03-28T18:28:48Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A895471&xn_auth=noजनाब तस्दीक़ साहिब ग़ज़ल में…tag:openbooksonline.com,2017-11-09:5170231:Comment:8959152017-11-09T07:57:05.491ZAfroz 'sahr'http://openbooksonline.com/profile/Afrozsahr
जनाब तस्दीक़ साहिब ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया,,,,,
जनाब तस्दीक़ साहिब ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया,,,,, जनाब अफ़रोज़ साहिब ,अच्छी ग़ज़ल ह…tag:openbooksonline.com,2017-11-09:5170231:Comment:8956622017-11-09T07:44:22.733ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
जनाब अफ़रोज़ साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
जनाब अफ़रोज़ साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। आली जनाब समर साहिब आदाहब आपने…tag:openbooksonline.com,2017-11-08:5170231:Comment:8956462017-11-08T16:38:35.515ZAfroz 'sahr'http://openbooksonline.com/profile/Afrozsahr
आली जनाब समर साहिब आदाहब आपने ग़ज़ल को सराहा मेंरी ख़ुश बख़्ती आपके मशविरे हमेशा ही बहुत मुफ़ीद होते हैं,,,आपकी मुहब्बतें इसी तरह मिलती रहें ,,,
आली जनाब समर साहिब आदाहब आपने ग़ज़ल को सराहा मेंरी ख़ुश बख़्ती आपके मशविरे हमेशा ही बहुत मुफ़ीद होते हैं,,,आपकी मुहब्बतें इसी तरह मिलती रहें ,,, जनाब अफ़रोज़'सहर'साहिब आदाब,अच्…tag:openbooksonline.com,2017-11-08:5170231:Comment:8957152017-11-08T16:26:32.685ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब अफ़रोज़'सहर'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
<br />
'जिनकी क़ीमत ही नहीं लोगों की नज़रों में कोई'<br />
रब की नज़रों में वो सुरख़ाब हुआ करते हैं'<br />
इस शैर में क़ाफ़िया दुरुस्त नहीं है,'सुरख़ाब'एक आबी परिन्दा है, यहाँ 'नायाब'क़ाफ़िया बहुत मुनासिब होगा ।<br />
<br />
तीसरे शैर के ऊला मिसरे में आख़री शब्द को "भरम"करलें ।<br />
<br />
'तुझसे मिलने को हूँ बेताब है ये सच लेकिन'<br />
इस मिसरे को यूँ कर लें तो रवानी बढ़ जायेगी:-<br />
"तुझसे मिलने को हूँ बेताब ये सच है लेकिन"<br />
<br />
'राह-ए-दरया में वो ग़रक़ाब हुआ करते हैं'<br />
इस मिसरे में…
जनाब अफ़रोज़'सहर'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।<br />
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'जिनकी क़ीमत ही नहीं लोगों की नज़रों में कोई'<br />
रब की नज़रों में वो सुरख़ाब हुआ करते हैं'<br />
इस शैर में क़ाफ़िया दुरुस्त नहीं है,'सुरख़ाब'एक आबी परिन्दा है, यहाँ 'नायाब'क़ाफ़िया बहुत मुनासिब होगा ।<br />
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तीसरे शैर के ऊला मिसरे में आख़री शब्द को "भरम"करलें ।<br />
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'तुझसे मिलने को हूँ बेताब है ये सच लेकिन'<br />
इस मिसरे को यूँ कर लें तो रवानी बढ़ जायेगी:-<br />
"तुझसे मिलने को हूँ बेताब ये सच है लेकिन"<br />
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'राह-ए-दरया में वो ग़रक़ाब हुआ करते हैं'<br />
इस मिसरे में 'राह-ए-दरया'की तरकीब सही नहीं है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-<br />
'लोग वो दरया में ग़रक़ाब हुआ करते हैं' आदरणीय आशीष जी ग़ज़ल में शिरक…tag:openbooksonline.com,2017-11-08:5170231:Comment:8958112017-11-08T15:48:34.524ZAfroz 'sahr'http://openbooksonline.com/profile/Afrozsahr
आदरणीय आशीष जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़़न नवाज़ी के लिए शुक्रिया,,,,
आदरणीय आशीष जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़़न नवाज़ी के लिए शुक्रिया,,,, बहतरीन ग़ज़ल ।
वाह ! वाह !tag:openbooksonline.com,2017-11-08:5170231:Comment:8956412017-11-08T15:33:52.282ZAshish shrivastavahttp://openbooksonline.com/profile/Ashishshrivastava
बहतरीन ग़ज़ल ।<br />
वाह ! वाह !
बहतरीन ग़ज़ल ।<br />
वाह ! वाह ! आदरणीय ब्रजेश जी ग़ज़ल में शि…tag:openbooksonline.com,2017-11-08:5170231:Comment:8956382017-11-08T12:04:15.613ZAfroz 'sahr'http://openbooksonline.com/profile/Afrozsahr
आदरणीय ब्रजेश जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया,,,,
आदरणीय ब्रजेश जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया,,,, आदरणीय अजय तिवारी जी ग़ज़ल को…tag:openbooksonline.com,2017-11-08:5170231:Comment:8955992017-11-08T10:33:33.257ZAfroz 'sahr'http://openbooksonline.com/profile/Afrozsahr
आदरणीय अजय तिवारी जी ग़ज़ल को समय देने और हौसला बढा़ने के लिए आपका शुक्रिया,,,
आदरणीय अजय तिवारी जी ग़ज़ल को समय देने और हौसला बढा़ने के लिए आपका शुक्रिया,,, आदरणीय सलीम रज़ा जी ग़ज़ल में…tag:openbooksonline.com,2017-11-08:5170231:Comment:8955982017-11-08T10:30:57.029ZAfroz 'sahr'http://openbooksonline.com/profile/Afrozsahr
आदरणीय सलीम रज़ा जी ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया,,,
आदरणीय सलीम रज़ा जी ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया,,, आदरणीय आरिफ़ जी ग़ज़ल को समय…tag:openbooksonline.com,2017-11-08:5170231:Comment:8954992017-11-08T10:25:58.768ZAfroz 'sahr'http://openbooksonline.com/profile/Afrozsahr
आदरणीय आरिफ़ जी ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका मश्कूर हूँ,,,
आदरणीय आरिफ़ जी ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका मश्कूर हूँ,,,