Comments - " नज़रें ज़माने भर की उस इक गुलाब पर हैं " - Open Books Online2024-03-29T10:56:16Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A903975&xn_auth=noआदरणीय पंकजोम जी सादर नमस्कार…tag:openbooksonline.com,2017-12-21:5170231:Comment:9044682017-12-21T10:17:09.993ZManoj kumar shrivastavahttp://openbooksonline.com/profile/Manojkumarshrivastava
<p>आदरणीय पंकजोम जी सादर नमस्कार। इस बढ़िया रचना पर मेरी बधाई प्रेषित है।</p>
<p>आदरणीय पंकजोम जी सादर नमस्कार। इस बढ़िया रचना पर मेरी बधाई प्रेषित है।</p> हार्दिक बधाई।tag:openbooksonline.com,2017-12-20:5170231:Comment:9043782017-12-20T18:01:44.232Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>हार्दिक बधाई।</p>
<p>हार्दिक बधाई।</p> बहुत ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय..स…tag:openbooksonline.com,2017-12-20:5170231:Comment:9044472017-12-20T14:40:48.818Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>बहुत ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय..सादर</p>
<p>बहुत ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय..सादर</p> वाह बहुत खूब । कबीर साहब की इ…tag:openbooksonline.com,2017-12-20:5170231:Comment:9042602017-12-20T08:36:43.081ZNaveen Mani Tripathihttp://openbooksonline.com/profile/NaveenManiTripathi
<p>वाह बहुत खूब । कबीर साहब की इस्लाह कीमती है ।</p>
<p>वाह बहुत खूब । कबीर साहब की इस्लाह कीमती है ।</p> आदरणीय पंकज भाई,दिली मुबारकबा…tag:openbooksonline.com,2017-12-19:5170231:Comment:9042412017-12-19T16:00:24.128Zसतविन्द्र कुमार राणाhttp://openbooksonline.com/profile/28fn40mg3o5v9
<p>आदरणीय पंकज भाई,दिली मुबारकबाद </p>
<p>आदरणीय पंकज भाई,दिली मुबारकबाद </p> भाई पंकजोम जी
ग़ज़ल के लिए बध…tag:openbooksonline.com,2017-12-19:5170231:Comment:9041342017-12-19T13:32:20.516ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
भाई पंकजोम जी<br />
ग़ज़ल के लिए बधाई. उस्तादों के मसवरे से ग़ज़ल को ज़रूर निखारें।
भाई पंकजोम जी<br />
ग़ज़ल के लिए बधाई. उस्तादों के मसवरे से ग़ज़ल को ज़रूर निखारें। जी आ0 दादा samar kabeer जी अभ…tag:openbooksonline.com,2017-12-19:5170231:Comment:9040682017-12-19T10:22:42.647Zपंकजोम " प्रेम "http://openbooksonline.com/profile/0jwtb572xtjd8
<p>जी आ0 दादा samar kabeer जी अभी दुरूस्त कर देता हूँ ग़ज़ल को ....... बेहद शुक्रगुज़ार हूँ आपके आशिर्वाद का ...</p>
<p>जी आ0 दादा samar kabeer जी अभी दुरूस्त कर देता हूँ ग़ज़ल को ....... बेहद शुक्रगुज़ार हूँ आपके आशिर्वाद का ...</p> बेहद शुक्रगुज़ार हूँ .. आपके…tag:openbooksonline.com,2017-12-19:5170231:Comment:9043182017-12-19T10:21:23.186Zपंकजोम " प्रेम "http://openbooksonline.com/profile/0jwtb572xtjd8
<p>बेहद शुक्रगुज़ार हूँ .. आपके आशिर्वाद आ0 दादा mohammed arif जी ....</p>
<p>बेहद शुक्रगुज़ार हूँ .. आपके आशिर्वाद आ0 दादा mohammed arif जी ....</p> जनाब पंक्जोम 'प्रेम'साहिब आदा…tag:openbooksonline.com,2017-12-19:5170231:Comment:9043122017-12-19T09:14:37.122ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब पंक्जोम 'प्रेम'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>दूसरे शैर के सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये, 'पल लब' ।</p>
<p>4थे शैर के ऊला में 'तुम' की जगह "तू" शब्द मुनासिब होगा ।</p>
<p>5वें शैर के ऊला मिसरे में 'बात ठानी' की जगह "दिल में ठानी" करना मुनासिब होग़ा ।</p>
<p>जनाब पंक्जोम 'प्रेम'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>दूसरे शैर के सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये, 'पल लब' ।</p>
<p>4थे शैर के ऊला में 'तुम' की जगह "तू" शब्द मुनासिब होगा ।</p>
<p>5वें शैर के ऊला मिसरे में 'बात ठानी' की जगह "दिल में ठानी" करना मुनासिब होग़ा ।</p> आदरणीय पंकजोम जी आदाब,
…tag:openbooksonline.com,2017-12-18:5170231:Comment:9038912017-12-18T14:17:59.907ZMohammed Arifhttp://openbooksonline.com/profile/MohammedArif
<p>आदरणीय पंकजोम जी आदाब,</p>
<p> एक अच्छी ग़ज़ल का प्रयास मगर और बेहतर हो सकती थी । हार्दिक बधाई.स्वीकार करें । गुणीजनों का इंतज़ार करें ।</p>
<p>आदरणीय पंकजोम जी आदाब,</p>
<p> एक अच्छी ग़ज़ल का प्रयास मगर और बेहतर हो सकती थी । हार्दिक बधाई.स्वीकार करें । गुणीजनों का इंतज़ार करें ।</p>