Comments - ग़ज़ल...न जाने कैसे गुजरेगी क़यामत रात भारी है-बृजेश कुमार 'ब्रज' - Open Books Online2024-03-29T08:33:42Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A914439&xn_auth=noबिलकुल आदरणीय सुरेन्द्र जी..ब…tag:openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9149452018-02-22T12:35:29.033Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>बिलकुल आदरणीय सुरेन्द्र जी..बहुत बहुत आभार</p>
<p>बिलकुल आदरणीय सुरेन्द्र जी..बहुत बहुत आभार</p> ज़नाब तस्दीक साहब ग़ज़ल पे शिरक़त…tag:openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9147812018-02-22T12:34:41.539Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>ज़नाब तस्दीक साहब ग़ज़ल पे शिरक़त के लिए आभार..चौथे शेर के सानी को यूँ करता हूँ</p>
<p><span>"कहीं से मांग कर लाये हो या सच में तुम्हारी है " बताइयेगा।</span></p>
<p>ज़नाब तस्दीक साहब ग़ज़ल पे शिरक़त के लिए आभार..चौथे शेर के सानी को यूँ करता हूँ</p>
<p><span>"कहीं से मांग कर लाये हो या सच में तुम्हारी है " बताइयेगा।</span></p> शुक्रिया आदरणीय रामबली गुप्ता…tag:openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9148492018-02-22T12:31:44.433Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>शुक्रिया आदरणीय रामबली गुप्ता जी..</p>
<p>शुक्रिया आदरणीय रामबली गुप्ता जी..</p> आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर…tag:openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9148402018-02-22T08:48:19.722Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर बढिया कोशिस।हार्दिक बधाई आपको<br />
शेष गुणीजनों की बातों का संज्ञान लीजियेगा। सादर
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर बढिया कोशिस।हार्दिक बधाई आपको<br />
शेष गुणीजनों की बातों का संज्ञान लीजियेगा। सादर जनाब ब्रजेश साहिब ,ग़ज़ल का अच्…tag:openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9149282018-02-22T07:54:49.278ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>जनाब ब्रजेश साहिब ,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । मुहतर्मा राजेश साहिबा और मुहतरम जनाब समर साहिब के मश्वरे पर ध्यान दें । शेर 4 का सानी मिसरा यूँ करके देखिए "मियां ये मांग कर लाये कहीं से या तुम्हारी है "।</p>
<p>जनाब ब्रजेश साहिब ,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । मुहतर्मा राजेश साहिबा और मुहतरम जनाब समर साहिब के मश्वरे पर ध्यान दें । शेर 4 का सानी मिसरा यूँ करके देखिए "मियां ये मांग कर लाये कहीं से या तुम्हारी है "।</p> ग़ज़ल पर बढियाँ प्रयास हुआ है भ…tag:openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9150192018-02-22T06:29:50.736Zरामबली गुप्ताhttp://openbooksonline.com/profile/RAMBALIGUPTA
<p>ग़ज़ल पर बढियाँ प्रयास हुआ है भाई बृजेश कुमार जी। हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर</p>
<p>ग़ज़ल पर बढियाँ प्रयास हुआ है भाई बृजेश कुमार जी। हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर</p> थोड़ा बहुत समझ रहा हूँ आदरणीय…tag:openbooksonline.com,2018-02-21:5170231:Comment:9149152018-02-21T16:48:33.144Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>थोड़ा बहुत समझ रहा हूँ आदरणीय समर कबीर जी..कोशिश करता हूँ कुछ बदलाव कर सकूँ।तहेदिल से शुक्रिया आपका..</p>
<p>थोड़ा बहुत समझ रहा हूँ आदरणीय समर कबीर जी..कोशिश करता हूँ कुछ बदलाव कर सकूँ।तहेदिल से शुक्रिया आपका..</p> जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज'साहिब…tag:openbooksonline.com,2018-02-21:5170231:Comment:9147012018-02-21T10:33:47.834ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>बहना राजेश कुमारी जी की बातों का संज्ञान लें ।</p>
<p>'मियाँ ये आपकी है या कहीं से ली उधारी है'</p>
<p>इस मिसरे में 'उधारी' क़ाफ़िया काम नहीं कर रहा है,इस मिसरे की नस्र(गद्ध)बनाकर पढ़ें तो जुमला यूँ होगा,'मियाँ ये आपकी है या कहीं से उधार ली है,उम्मीद है आप समझ रहे होंगे?</p>
<p>जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>बहना राजेश कुमारी जी की बातों का संज्ञान लें ।</p>
<p>'मियाँ ये आपकी है या कहीं से ली उधारी है'</p>
<p>इस मिसरे में 'उधारी' क़ाफ़िया काम नहीं कर रहा है,इस मिसरे की नस्र(गद्ध)बनाकर पढ़ें तो जुमला यूँ होगा,'मियाँ ये आपकी है या कहीं से उधार ली है,उम्मीद है आप समझ रहे होंगे?</p> शुक्रिया आदरणीया 'चरागों सा ज…tag:openbooksonline.com,2018-02-21:5170231:Comment:9145952018-02-21T10:19:38.821Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>शुक्रिया आदरणीया 'चरागों सा जला' मुझे भी खटक रहा था..आपने बात साफ कर दी..आपका हार्दिक अभिनन्दन है..</p>
<p>शुक्रिया आदरणीया 'चरागों सा जला' मुझे भी खटक रहा था..आपने बात साफ कर दी..आपका हार्दिक अभिनन्दन है..</p> अच्छी ग़ज़ल कही है बहुत बहुत बध…tag:openbooksonline.com,2018-02-20:5170231:Comment:9144802018-02-20T17:01:08.330Zrajesh kumarihttp://openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p>अच्छी ग़ज़ल कही है बहुत बहुत बधाई</p>
<p>अभी ये आँख बोझिल है निहाँ कुछ बेक़रारी है---अभी आँखें ये बोझिल हैं --कर सकते हो वरना लग रहा है एक ही आँख बोझिल है <br></br>न जाने कैसे गुजरेगी क़यामत रात भारी है</p>
<p>चरागों सा जला फिर भी अँधेरा कम नहीं होता<br></br>धुआँ बनके बिखर जाएं यही किस्मत हमारी है---उला में जला सानी में जाएँ व् हमारी ---शुतुर्गुबा दोष आ गया </p>
<p>चरागो से जले फिर भी --कर लीजिये --और कोई आप्शन नहीं है </p>
<p>ये अक्सर नाक पर लेकर अना जो घूमते हो तुम<br></br>मियां ये आपकी है या कहीं से ली…</p>
<p>अच्छी ग़ज़ल कही है बहुत बहुत बधाई</p>
<p>अभी ये आँख बोझिल है निहाँ कुछ बेक़रारी है---अभी आँखें ये बोझिल हैं --कर सकते हो वरना लग रहा है एक ही आँख बोझिल है <br/>न जाने कैसे गुजरेगी क़यामत रात भारी है</p>
<p>चरागों सा जला फिर भी अँधेरा कम नहीं होता<br/>धुआँ बनके बिखर जाएं यही किस्मत हमारी है---उला में जला सानी में जाएँ व् हमारी ---शुतुर्गुबा दोष आ गया </p>
<p>चरागो से जले फिर भी --कर लीजिये --और कोई आप्शन नहीं है </p>
<p>ये अक्सर नाक पर लेकर अना जो घूमते हो तुम<br/>मियां ये आपकी है या कहीं से ली उधारी है-----वाह्ह्ह</p>