Comments - महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था - Open Books Online2024-03-29T05:49:55Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A919366&xn_auth=noआदरणीय समर जी प्रोत्साहन के ल…tag:openbooksonline.com,2018-03-23:5170231:Comment:9207712018-03-23T12:03:04.905ZHarash Mahajanhttp://openbooksonline.com/profile/HarashMahajan
<p>आदरणीय समर जी प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया ।</p>
<p>सादर</p>
<p>आदरणीय समर जी प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया ।</p>
<p>सादर</p> अब ठीक है भाई,बधाई आपको ।tag:openbooksonline.com,2018-03-22:5170231:Comment:9206022018-03-22T18:03:29.673ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>अब ठीक है भाई,बधाई आपको ।</p>
<p>अब ठीक है भाई,बधाई आपको ।</p> आदरणीय समर कबीर जी आदाब । एक…tag:openbooksonline.com,2018-03-22:5170231:Comment:9206812018-03-22T16:45:34.675ZHarash Mahajanhttp://openbooksonline.com/profile/HarashMahajan
<p>आदरणीय समर कबीर जी आदाब । एक और मतले के साथ पूरी ग़ज़ल आपके समक्ष लाया हूँ सर । आपकी पारखी नज़रों की दरकार है ...</p>
<p></p>
<p>सादर ।</p>
<p></p>
<p>महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था ।<br></br>तो नग़मा मुहब्बत का सुनाना ही नहीं था ।</p>
<p>रौशन किया जो हक़ से तुझे रोज़ ही दिल में,<br></br>वो तेरी निगाहों का निशाना ही नहीं था</p>
<p>कर-कर के भलाई यहाँ रुस्वाई मिले तो,<br></br>ऐसा तुझे किरदार निभाना ही नहीं था ।</p>
<p>है डर तुझे हो जाएगा फिर दिल पे वो क़ाबिज़,<br></br>सँग उसके तुझे जश्न मनाना ही नहीं…</p>
<p>आदरणीय समर कबीर जी आदाब । एक और मतले के साथ पूरी ग़ज़ल आपके समक्ष लाया हूँ सर । आपकी पारखी नज़रों की दरकार है ...</p>
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<p>सादर ।</p>
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<p>महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था ।<br/>तो नग़मा मुहब्बत का सुनाना ही नहीं था ।</p>
<p>रौशन किया जो हक़ से तुझे रोज़ ही दिल में,<br/>वो तेरी निगाहों का निशाना ही नहीं था</p>
<p>कर-कर के भलाई यहाँ रुस्वाई मिले तो,<br/>ऐसा तुझे किरदार निभाना ही नहीं था ।</p>
<p>है डर तुझे हो जाएगा फिर दिल पे वो क़ाबिज़,<br/>सँग उसके तुझे जश्न मनाना ही नहीं था।</p>
<p>होते हैं अगर कत्ल यहाँ हिन्दू मुसलमाँ, <br/>मंदिर किसी मस्ज़िद को बनाना ही नही था।</p>
<p>डर डूब के मरने का तेरे दिल में था इतना,<br/>तो इश्क़ के दरिया में नहाना ही नहीं था ।</p>
<p>-----------हर्ष महाजन</p> मैंने इसी ज़मीन में अपनी ग़ज़ल आ…tag:openbooksonline.com,2018-03-19:5170231:Comment:9199792018-03-19T12:16:17.602ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>मैंने इसी ज़मीन में अपनी ग़ज़ल आपकी ख़ातिर ही मंच पर पोस्ट की है, जिस पर आपकी प्रतिक्रया भी आ गई है, उसे पढ़कर अपना रास्ता चुनें ।</p>
<p>आपका ये मतला भाव के लिहाज़ से कमज़ोर है, कोई और विकल्प देखें ।</p>
<p>मैंने इसी ज़मीन में अपनी ग़ज़ल आपकी ख़ातिर ही मंच पर पोस्ट की है, जिस पर आपकी प्रतिक्रया भी आ गई है, उसे पढ़कर अपना रास्ता चुनें ।</p>
<p>आपका ये मतला भाव के लिहाज़ से कमज़ोर है, कोई और विकल्प देखें ।</p> आ0 समर जी आदाब । सर तो यकीनन…tag:openbooksonline.com,2018-03-19:5170231:Comment:9199782018-03-19T11:47:20.865ZHarash Mahajanhttp://openbooksonline.com/profile/HarashMahajan
<p>आ0 समर जी आदाब । सर तो यकीनन हमें किस राह चलना होगा । कव्वाफी में अलग रंग देखने को मिलते हैं । आपके मार्गदर्शन में एक ओर मतला पेश है सर...</p>
<p></p>
<p>"गर दर्द-ए-मुहब्बत को बताना ही नहीं था,<br/>तो नग़मा गम-ए-हिज़्र का गाना ही नहीं था ।"</p>
<p>लेकिन समर जी मतले के शेर में तो हमने अगर एक क़ाफ़िया सेट हुआ तो अगले शेरों में तो निशाना आ ही सकता है?</p>
<p></p>
<p>सादर ।</p>
<p></p>
<p>आ0 समर जी आदाब । सर तो यकीनन हमें किस राह चलना होगा । कव्वाफी में अलग रंग देखने को मिलते हैं । आपके मार्गदर्शन में एक ओर मतला पेश है सर...</p>
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<p>"गर दर्द-ए-मुहब्बत को बताना ही नहीं था,<br/>तो नग़मा गम-ए-हिज़्र का गाना ही नहीं था ।"</p>
<p>लेकिन समर जी मतले के शेर में तो हमने अगर एक क़ाफ़िया सेट हुआ तो अगले शेरों में तो निशाना आ ही सकता है?</p>
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<p>सादर ।</p>
<p></p> "निशाना" क़ाफ़िया इसलिये मेरे न…tag:openbooksonline.com,2018-03-19:5170231:Comment:9199772018-03-19T10:42:16.626ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>"निशाना" क़ाफ़िया इसलिये मेरे नज़दीक ग़लत है कि उर्दू के हिसाब से ये शब्द 'ज़ेर'से शुरू होता है,और यहाँ हमें "ज़बर" से शुरू होने वाले शब्द के क़ाफिये दरकार हैं,जनाब 'क़ैसर' साहिब जिनकी ज़मीन में ये ग़ज़ल हुई है,उनकी ग़ज़ल में भी कई क़वाफ़ी ग़लत हैं ।</p>
<p>"निशाना" क़ाफ़िया इसलिये मेरे नज़दीक ग़लत है कि उर्दू के हिसाब से ये शब्द 'ज़ेर'से शुरू होता है,और यहाँ हमें "ज़बर" से शुरू होने वाले शब्द के क़ाफिये दरकार हैं,जनाब 'क़ैसर' साहिब जिनकी ज़मीन में ये ग़ज़ल हुई है,उनकी ग़ज़ल में भी कई क़वाफ़ी ग़लत हैं ।</p> आ0 विजय निकोरे जी आदाब । आपकी…tag:openbooksonline.com,2018-03-19:5170231:Comment:9202812018-03-19T09:54:27.530ZHarash Mahajanhttp://openbooksonline.com/profile/HarashMahajan
<p>आ0 विजय निकोरे जी आदाब । आपकी पसन्दगीके लिए तहे दिल से शुक्रिया ।</p>
<p>सादर ।</p>
<p>आ0 विजय निकोरे जी आदाब । आपकी पसन्दगीके लिए तहे दिल से शुक्रिया ।</p>
<p>सादर ।</p> आ0 समर जी आदाब । इस बार क़ाफ़िय…tag:openbooksonline.com,2018-03-19:5170231:Comment:9199762018-03-19T09:53:12.961ZHarash Mahajanhttp://openbooksonline.com/profile/HarashMahajan
<p>आ0 समर जी आदाब । इस बार क़ाफ़िया कुछ अजीब कारीगिरी में फंस है सर । लेकिन मैंने जो काफिये इस्तमाल केरने की कोशिश की है उसमे योजित शब्द ही हटाना चाहिए । अगर बढ़ा हुआ शब्द मूल शब्द को ही बिगाड़ दे तो?</p>
<p>मेरा इस्तमाल किया क़ाफ़िया "निशाना" भी इसी में नहीं लगता क्या? </p>
<p></p>
<p>सादर</p>
<p>आ0 समर जी आदाब । इस बार क़ाफ़िया कुछ अजीब कारीगिरी में फंस है सर । लेकिन मैंने जो काफिये इस्तमाल केरने की कोशिश की है उसमे योजित शब्द ही हटाना चाहिए । अगर बढ़ा हुआ शब्द मूल शब्द को ही बिगाड़ दे तो?</p>
<p>मेरा इस्तमाल किया क़ाफ़िया "निशाना" भी इसी में नहीं लगता क्या? </p>
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<p>सादर</p> बहुत अच्छे जज़बात हैं। बधाई।tag:openbooksonline.com,2018-03-19:5170231:Comment:9201252018-03-19T06:26:14.173Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>बहुत अच्छे जज़बात हैं। बधाई।</p>
<p>बहुत अच्छे जज़बात हैं। बधाई।</p> जनाब हर्ष जी आदाब,निलेश जी से…tag:openbooksonline.com,2018-03-19:5170231:Comment:9199642018-03-19T06:06:39.981ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब हर्ष जी आदाब,निलेश जी से सहमत हूँ,मेरे ख़याल से इस ग़ज़ल में 'निशाना' क़ाफ़िया से भी बचना होगा,ज़माना,बताना,जताना वग़ैरह ही क़ाफिये सही होंगे ।</p>
<p>इस जमीन में कुछ दिन पहले मैंने भी ग़ज़ल कही थी,आज अगर वक़्त मिला तो मंच पर साझा करूँगा ।</p>
<p>जनाब हर्ष जी आदाब,निलेश जी से सहमत हूँ,मेरे ख़याल से इस ग़ज़ल में 'निशाना' क़ाफ़िया से भी बचना होगा,ज़माना,बताना,जताना वग़ैरह ही क़ाफिये सही होंगे ।</p>
<p>इस जमीन में कुछ दिन पहले मैंने भी ग़ज़ल कही थी,आज अगर वक़्त मिला तो मंच पर साझा करूँगा ।</p>