Comments - आज खुद को आज कहकर जानता है ..गजल - Open Books Online2024-03-28T23:13:49Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A931302&xn_auth=noआमोद बिंदौरी जी सुंदर भावपूर्…tag:openbooksonline.com,2018-05-29:5170231:Comment:9318612018-05-29T03:11:22.592Zडॉ छोटेलाल सिंहhttp://openbooksonline.com/profile/20ch7d01r75yx
<p>आमोद बिंदौरी जी सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई</p>
<p>आमोद बिंदौरी जी सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई</p> आ महेंद्र सर हौसलाअफजाई का बह…tag:openbooksonline.com,2018-05-28:5170231:Comment:9319162018-05-28T07:32:25.380Zamod shrivastav (bindouri)http://openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>आ महेंद्र सर हौसलाअफजाई का बहुत आभार ..</p>
<p>सर मेरा मानना है कि है हूँ मैं ही से यूँ क्यूँ पे के कर ये भरती के शब्द हैं जोबहर में करने के सहायक हैं बस </p>
<p>2 no है ...तकाबुल रदीफ़ हो जाता सायद </p>
<p>शारद, ग्रीष्म, बरखा तीन है एक को क्यूँ छोड़ दूँ ।</p>
<p>हूँ मैं दोनों एक ही जगह को सूचित करते है </p>
<p>आ महेंद्र सर हौसलाअफजाई का बहुत आभार ..</p>
<p>सर मेरा मानना है कि है हूँ मैं ही से यूँ क्यूँ पे के कर ये भरती के शब्द हैं जोबहर में करने के सहायक हैं बस </p>
<p>2 no है ...तकाबुल रदीफ़ हो जाता सायद </p>
<p>शारद, ग्रीष्म, बरखा तीन है एक को क्यूँ छोड़ दूँ ।</p>
<p>हूँ मैं दोनों एक ही जगह को सूचित करते है </p> आदरणीय आमोद जी, बढ़िया गजल के…tag:openbooksonline.com,2018-05-28:5170231:Comment:9316812018-05-28T06:03:20.952ZNeelam Upadhyayahttp://openbooksonline.com/profile/NeelamUpadhyaya
<p>आदरणीय आमोद जी, बढ़िया गजल के लिए हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आदरणीय आमोद जी, बढ़िया गजल के लिए हार्दिक बधाई ।</p> बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय आमोद जी.…tag:openbooksonline.com,2018-05-28:5170231:Comment:9318362018-05-28T05:19:41.105ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय आमोद जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. </p>
<p></p>
<p>1. मतला स्पष्ट नहीं है या मैं समझ नहीं सका. </p>
<p><span>2. किसका कितना पेट भूखा रह गया <strong>है</strong> </span></p>
<p><span>3. कैसा बीता है शरद और ग्रीष्म <strong>कैसी</strong></span></p>
<p>4. दर्द के किस दौर से गुजरा हुआ <strong>हूँ</strong><br/> आह <strong>से</strong> निकला ही अक्षर जानता है।।</p>
<p></p>
<p>सादर.</p>
<p></p>
<p>बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय आमोद जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. </p>
<p></p>
<p>1. मतला स्पष्ट नहीं है या मैं समझ नहीं सका. </p>
<p><span>2. किसका कितना पेट भूखा रह गया <strong>है</strong> </span></p>
<p><span>3. कैसा बीता है शरद और ग्रीष्म <strong>कैसी</strong></span></p>
<p>4. दर्द के किस दौर से गुजरा हुआ <strong>हूँ</strong><br/> आह <strong>से</strong> निकला ही अक्षर जानता है।।</p>
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<p>सादर.</p>
<p></p> सुन्दर रचना...
बहुत सुन्दर. ब…tag:openbooksonline.com,2018-05-24:5170231:Comment:9313712018-05-24T07:12:04.744ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>सुन्दर रचना...</p>
<p>बहुत सुन्दर. बधाई स्वीकार करें...</p>
<p>सुन्दर रचना...</p>
<p>बहुत सुन्दर. बधाई स्वीकार करें...</p>