Comments - ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-29T02:27:45Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A938903&xn_auth=noभाई ब्रज जी , धामी जी , श्याम…tag:openbooksonline.com,2018-07-25:5170231:Comment:9414092018-07-25T08:14:58.445ZAlok Rawathttp://openbooksonline.com/profile/AlokRawat
<p>भाई ब्रज जी , धामी जी , श्यामजी , आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया।</p>
<p>भाई ब्रज जी , धामी जी , श्यामजी , आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया।</p> जनाब कबीर साहब , आदाब। मेरी त…tag:openbooksonline.com,2018-07-25:5170231:Comment:9414082018-07-25T08:12:42.772ZAlok Rawathttp://openbooksonline.com/profile/AlokRawat
<p>जनाब कबीर साहब , आदाब। मेरी तबियत ख़राब होने के कारण जवाब देने में देरी हुई। आपके सुझावों के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।</p>
<p>जनाब कबीर साहब , आदाब। मेरी तबियत ख़राब होने के कारण जवाब देने में देरी हुई। आपके सुझावों के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।</p> प्रिय आलोक जी, आपको इस मंच पर…tag:openbooksonline.com,2018-07-15:5170231:Comment:9401742018-07-15T15:17:04.819Zsharadindu mukerjihttp://openbooksonline.com/profile/sharadindumukerji
<p>प्रिय आलोक जी, आपको इस मंच पर देखकर बेहद अच्छा लग रहा है. आपकी रचना के बारे में कुछ भी कहने में मैं असमर्थ हूँ......विद्वानों की प्रतिक्रिया आपको और ऊँचाईयों तक ले जाएगी क्योंकि व्यक्तिगत रूप से आपको जानता हूँ....आप सलाह को हमेशा सकारात्मक ढंग से लेते हैं. ओबीओ ऐसे ही उत्तरोत्तर प्रगति करता रहे यही मेरी कामना है. मंच पर आपकी उपस्थिति नि:संदेह इसे और प्रकाशमय करेगी. बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.</p>
<p>प्रिय आलोक जी, आपको इस मंच पर देखकर बेहद अच्छा लग रहा है. आपकी रचना के बारे में कुछ भी कहने में मैं असमर्थ हूँ......विद्वानों की प्रतिक्रिया आपको और ऊँचाईयों तक ले जाएगी क्योंकि व्यक्तिगत रूप से आपको जानता हूँ....आप सलाह को हमेशा सकारात्मक ढंग से लेते हैं. ओबीओ ऐसे ही उत्तरोत्तर प्रगति करता रहे यही मेरी कामना है. मंच पर आपकी उपस्थिति नि:संदेह इसे और प्रकाशमय करेगी. बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.</p> बहुत ही खूबसूरत और सरस ग़ज़ल क…tag:openbooksonline.com,2018-07-13:5170231:Comment:9400512018-07-13T12:17:36.349Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>बहुत ही खूबसूरत और सरस ग़ज़ल कही है आदरणीय..सादर</p>
<p>बहुत ही खूबसूरत और सरस ग़ज़ल कही है आदरणीय..सादर</p> आ. आलोक जी, अच्छी गजल हुयी है…tag:openbooksonline.com,2018-07-11:5170231:Comment:9394302018-07-11T13:31:54.597Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. आलोक जी, अच्छी गजल हुयी है हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. आलोक जी, अच्छी गजल हुयी है हार्दिक बधाई ।</p> "क्या बात है ..... बहुत खूब…tag:openbooksonline.com,2018-07-11:5170231:Comment:9396402018-07-11T09:13:42.781ZShyam Narain Vermahttp://openbooksonline.com/profile/ShyamNarainVerma
<table width="576">
<tbody><tr><td width="576">"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को " ..सादर </td>
</tr>
</tbody>
</table>
<table width="576">
<tbody><tr><td width="576">"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को " ..सादर </td>
</tr>
</tbody>
</table> कभी गुस्सा कभी आँसू कभी फिर र…tag:openbooksonline.com,2018-07-11:5170231:Comment:9396372018-07-11T09:06:33.677ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p><span>कभी गुस्सा कभी आँसू कभी फिर रूठना उनका</span></p>
<p><span>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,'फिर रूठना',गुरप्रीत जी का सुझाया मिसरा उचित है,देखियेगा ।</span></p>
<p><span>कभी गुस्सा कभी आँसू कभी फिर रूठना उनका</span></p>
<p><span>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,'फिर रूठना',गुरप्रीत जी का सुझाया मिसरा उचित है,देखियेगा ।</span></p> आख़री शैर इस तरह और बहतर हो सक…tag:openbooksonline.com,2018-07-11:5170231:Comment:9393312018-07-11T09:00:38.939ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>आख़री शैर इस तरह और बहतर हो सकता है:-</p>
<p>'बस इक पल के लिये ही उनकी आँखों से लड़ीं आँखें</p>
<p>और इतनी सी ख़ता पर वो मेरा ईमान लेते हैं'</p>
<p>आख़री शैर इस तरह और बहतर हो सकता है:-</p>
<p>'बस इक पल के लिये ही उनकी आँखों से लड़ीं आँखें</p>
<p>और इतनी सी ख़ता पर वो मेरा ईमान लेते हैं'</p> जनाब आलोक रावत जी आदाब, 'फ़िरा…tag:openbooksonline.com,2018-07-11:5170231:Comment:9393282018-07-11T06:53:36.985ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब आलोक रावत जी आदाब, 'फ़िराक़' की ज़मीन में अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।</p>
<p>कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।</p>
<p></p>
<p>मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ग़ौर कीजियेगा ।</p>
<p>'ज़रा हम भी तो देखें धार उन क़ातिल निगाहों की</p>
<p>सुना है वो इसी ख़ंजर से सबकी जान लेते हैं'</p>
<p>इस शैर में शुतरगुर्बा है, ऊला मिसरे में 'निगाहों' बहुवचन है, और सानी मिसरे में "ख़ंजर" एक वचन देखियेगा ।</p>
<p></p>
<p><span>मुहब्बत करने वाले भी अगर ज़िद ठान लेते…</span></p>
<p>जनाब आलोक रावत जी आदाब, 'फ़िराक़' की ज़मीन में अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।</p>
<p>कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।</p>
<p></p>
<p>मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ग़ौर कीजियेगा ।</p>
<p>'ज़रा हम भी तो देखें धार उन क़ातिल निगाहों की</p>
<p>सुना है वो इसी ख़ंजर से सबकी जान लेते हैं'</p>
<p>इस शैर में शुतरगुर्बा है, ऊला मिसरे में 'निगाहों' बहुवचन है, और सानी मिसरे में "ख़ंजर" एक वचन देखियेगा ।</p>
<p></p>
<p><span>मुहब्बत करने वाले भी अगर ज़िद ठान लेते हैं</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'ज़िद ठान' की तरकीब सहीह नहीं है,इस मिसरे को यूँ होना था:-</span></p>
<p><span>'महब्बत करने वाले जब भी दिल में ठान लेते हैं'</span></p>
<p></p>
<p><span>फ़क़त इक पल की ख़ातिर उनकी आँखों से लड़ीं आँखें</span></p>
<p><span>इस मिसरे में। 'ख़ातिर' शब्द भर्ती का है, ये मिसरा यूँ होना था:-</span></p>
<p><span>'जो इक पल के लिये ही उनकी आँखों से लड़ीं आँखें'</span></p>
<p><span>आपके लेखन में रवानी है, जो आपको बहुत आगे तक ले जाएगी,शुभकामनाएँ ।</span></p>
<p></p> आदरणीय आलोक रावत जी , पहली बा…tag:openbooksonline.com,2018-07-11:5170231:Comment:9396322018-07-11T06:35:34.137ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>आदरणीय आलोक रावत जी , पहली बार इस मंच पर आपकी ये ग़ज़ल पढ़ी , और निश्चित ही बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है। और हाँ इस्लाह तो उस्ताद ही करेंगे , मैं तो खुद एक अदना सा विद्यार्थी हूँ ग़ज़ल का। जो प्रश्न मन उठते है उन पर आपस में बातचीत से सीखने की कोशिश रहती है। रूठना वाले शेर में 'फिर' के अंत का र और उसके बाद 'रूठना' के शुरू का रु , आपस में टकरा रहे हैं , और इस मिसरे में मुझे लगा कि 'फिर' शब्द के बिना भी बात पूरी हो रही है , इसलिए नाराज़गी रखने के लिए कहा। ये सिर्फ मेरे विचार हैं , बाकी गुणीजन आपको इसके बारे…</p>
<p>आदरणीय आलोक रावत जी , पहली बार इस मंच पर आपकी ये ग़ज़ल पढ़ी , और निश्चित ही बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है। और हाँ इस्लाह तो उस्ताद ही करेंगे , मैं तो खुद एक अदना सा विद्यार्थी हूँ ग़ज़ल का। जो प्रश्न मन उठते है उन पर आपस में बातचीत से सीखने की कोशिश रहती है। रूठना वाले शेर में 'फिर' के अंत का र और उसके बाद 'रूठना' के शुरू का रु , आपस में टकरा रहे हैं , और इस मिसरे में मुझे लगा कि 'फिर' शब्द के बिना भी बात पूरी हो रही है , इसलिए नाराज़गी रखने के लिए कहा। ये सिर्फ मेरे विचार हैं , बाकी गुणीजन आपको इसके बारे बारे में बेहतर बता पाएंगे। ... धन्यवाद</p>