Comments - रिश्तों की डोर [लघुकथा] - Open Books Online2024-03-28T18:08:41Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A946196&xn_auth=noहार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप…tag:openbooksonline.com,2018-08-28:5170231:Comment:9464522018-08-28T08:42:40.154ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी। बेहतरीन लघुकथा।</p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी। बेहतरीन लघुकथा।</p> आदरणीय लक्ष्मण सरजी,समर सरजी,…tag:openbooksonline.com,2018-08-27:5170231:Comment:9462892018-08-27T14:26:08.514Zbabitaguptahttp://openbooksonline.com/profile/babitagupta631
<p>आदरणीय लक्ष्मण सरजी,समर सरजी,सुरेंद्र सरजी,शहजाद सरजी आप सभी का आभार तथा आप सभी के दिशा निर्देशन का ध्यान रखूँगी।</p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण सरजी,समर सरजी,सुरेंद्र सरजी,शहजाद सरजी आप सभी का आभार तथा आप सभी के दिशा निर्देशन का ध्यान रखूँगी।</p> आ. बबीता जी, इस बेहतरीन कथा क…tag:openbooksonline.com,2018-08-27:5170231:Comment:9462862018-08-27T13:48:41.307Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. बबीता जी, इस बेहतरीन कथा के लिए हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. बबीता जी, इस बेहतरीन कथा के लिए हार्दिक बधाई ।</p> मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,…tag:openbooksonline.com,2018-08-27:5170231:Comment:9463762018-08-27T13:03:12.454ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें,साथ ही रक्षा बंधन की बधाई भी ।</p>
<p>मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें,साथ ही रक्षा बंधन की बधाई भी ।</p> आद0 बबिता जी सादर अभिवादन। पह…tag:openbooksonline.com,2018-08-27:5170231:Comment:9465082018-08-27T08:36:50.220Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 बबिता जी सादर अभिवादन। पहले तो बढ़िया कथानक को आधार बनाकर गढ़ी गयी इस लघुकथा पर आपको बधाई और राखी की अनन्त शुभकामनाएं। आपने इस लघुकथा में विराम और कोमा का सटीक उपयोग नहीं किया है जिससे कई बार भ्रम की स्थिती बनी और पढ़ते समय दुबारा पढ़कर कथानक समझना पढ़। उम्मीद है आगे से आप और बेहतर लिखेंगी। सादर</p>
<p>आद0 बबिता जी सादर अभिवादन। पहले तो बढ़िया कथानक को आधार बनाकर गढ़ी गयी इस लघुकथा पर आपको बधाई और राखी की अनन्त शुभकामनाएं। आपने इस लघुकथा में विराम और कोमा का सटीक उपयोग नहीं किया है जिससे कई बार भ्रम की स्थिती बनी और पढ़ते समय दुबारा पढ़कर कथानक समझना पढ़। उम्मीद है आगे से आप और बेहतर लिखेंगी। सादर</p> कौमा और संवादों में इन्वर्टेड…tag:openbooksonline.com,2018-08-26:5170231:Comment:9463382018-08-26T19:43:51.225ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>कौमा और संवादों में इन्वर्टेड कौमाज़ पर भी ध्यान दीजिएगा। सादर।</p>
<p>कौमा और संवादों में इन्वर्टेड कौमाज़ पर भी ध्यान दीजिएगा। सादर।</p> आपने वाक्यों के अंत में पूर्ण…tag:openbooksonline.com,2018-08-26:5170231:Comment:9461062018-08-26T19:42:19.315ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>आपने वाक्यों के अंत में पूर्ण विराम की जगह बिंदु का इस्तेमाल किया है। कुछ वाक्य-विन्यास पर भी पुनर्विचार किया जा सकता है आकर्षक व प्रभावशाली प्रवाह हेतु। सादर।</p>
<p>आपने वाक्यों के अंत में पूर्ण विराम की जगह बिंदु का इस्तेमाल किया है। कुछ वाक्य-विन्यास पर भी पुनर्विचार किया जा सकता है आकर्षक व प्रभावशाली प्रवाह हेतु। सादर।</p> सच्चे भावपूर्ण दायित्व निर्बा…tag:openbooksonline.com,2018-08-26:5170231:Comment:9463362018-08-26T19:39:30.447ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>सच्चे भावपूर्ण दायित्व निर्बाह व अभिव्यक्ति हेतु डोरा/कलावा ही राखी रूप में काफी है। यहां दूर के रिश्ते के भैया-भाभी से वर्षों बाद मिलन और राखी बंधन निर्बहन की बात बाख़ूबी सम्प्रेषित की गई है। देखा तो यह भी गया है कि दो विपरीत धर्मों के मुंहबोले भाई-बहिन भी वर्षों बाद इस अटूट पवित्र रिश्ते को रक्षाबंधन पर्व पर.यूं तरोताज़ा कर लिया करते हैं। बेहतरीन समसामयिक भावपूर्ण प्रेरक रचना के लिए हार्दिक बधाई और रक्षाबंधन/भाईदूज/भुजरिया की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं आदरणीया <strong>बबीता…</strong></p>
<p>सच्चे भावपूर्ण दायित्व निर्बाह व अभिव्यक्ति हेतु डोरा/कलावा ही राखी रूप में काफी है। यहां दूर के रिश्ते के भैया-भाभी से वर्षों बाद मिलन और राखी बंधन निर्बहन की बात बाख़ूबी सम्प्रेषित की गई है। देखा तो यह भी गया है कि दो विपरीत धर्मों के मुंहबोले भाई-बहिन भी वर्षों बाद इस अटूट पवित्र रिश्ते को रक्षाबंधन पर्व पर.यूं तरोताज़ा कर लिया करते हैं। बेहतरीन समसामयिक भावपूर्ण प्रेरक रचना के लिए हार्दिक बधाई और रक्षाबंधन/भाईदूज/भुजरिया की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं आदरणीया <strong>बबीता गुप्ता</strong> साहिबा।</p>