Comments - "मन मार्जियां " - Open Books Online2024-03-28T17:39:07Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A957689&xn_auth=noजनाब प्रदीप भट्ट साहिब आदाब,ग़…tag:openbooksonline.com,2018-10-23:5170231:Comment:9575782018-10-23T17:45:09.637ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब प्रदीप भट्ट साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल बह्र और क़वाफ़ी के हिसाब से समय चाहती है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p>'</p>
<p><span>जुल्म की ये इंतेहा भी कब तलक।</span></p>
<p><span>ज़िंदगी के इम्तेह भी कब तलक॥</span></p>
<p><span>मतले के ऊला मिसरे में क़ाफ़िया दोष है और सानी मिसरे में 'इम्तेहा' शब्द आपने ग़लत लिखा है,इस मतले को यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'ज़ुल्म की ये दास्ताँ भी कब तलक</span></p>
<p><span>ज़िन्दगी के इम्तिहाँ भी कब तलक'</span></p>
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<p><span>'आज़…</span></p>
<p>जनाब प्रदीप भट्ट साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल बह्र और क़वाफ़ी के हिसाब से समय चाहती है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>जुल्म की ये इंतेहा भी कब तलक।</span></p>
<p><span>ज़िंदगी के इम्तेह भी कब तलक॥</span></p>
<p><span>मतले के ऊला मिसरे में क़ाफ़िया दोष है और सानी मिसरे में 'इम्तेहा' शब्द आपने ग़लत लिखा है,इस मतले को यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'ज़ुल्म की ये दास्ताँ भी कब तलक</span></p>
<p><span>ज़िन्दगी के इम्तिहाँ भी कब तलक'</span></p>
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<p><span>'आज़ या कल बिखर ही जाऊंगा'</span></p>
<p>ये मिसरा बह्र में नहीं है,इसे यूँ कर लें:-</p>
<p><span>आज या कल मैं बिखर ही जाऊंगा'</span></p>
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<p><span>'ऐब ही जब ऐब तुझमें हैं भरे मैं'</span></p>
<p><span>ये मिसरा भी बह्र में नहीं,इसे यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>'ऐब ही जब ऐब तुझमें हैं भरे'</span></p>
<p></p>
<p><span>' नींद से बोझिल ये आंखे हो रही हैं'</span></p>
<p>ये मिसरा भी बह्र में नहीं',इसे यूँ कर लें:-</p>
<p>' <span>नींद से बोझिल ये आंखे हो रहीं'</span></p>
<p></p>
<p><span>' फ़ासला ये दरम्य भी कब तलक'</span></p>
<p><span>उस मिसरे में ' दरम्या' शब्द ग़लत लिखा है,इस शब्द को यूँ लिखें "दरमियाँ" ।</span></p>
<p></p>
<p><span>' हार कर बैठे हुए बंदे बता तू' </span></p>
<p><span>ये मिसरा भी बह्र में नहीं,यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>' हार कर बैठे हुए बंदे बता'</span></p>
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<p><span>इस ग़ज़ल के अरकान हैं:-2122 2122 212</span></p>
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<p><span>अगर आप वाक़ई ओबीओ पर कुछ सीखना चाहते हैं,तो आपको मंच पर सक्रियता अवश्य दिखानी होगी,उम्मीद है आप मेरी बात समझ रहे होंगे?</span></p>
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