Comments - ज़िंदगी ने कुछ सबक़ हमको सिखाकर दम लिया ( २४ ) - Open Books Online2024-03-29T00:35:30Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A973143&xn_auth=noआदरणीय Samar kabeer साहेब | आ…tag:openbooksonline.com,2019-02-12:5170231:Comment:9745782019-02-12T19:26:24.566Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'http://openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>आदरणीय <a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer">Samar kabeer</a> साहेब | आदाब | आपने सभी अशआर पर वाजिब इस्लाह की है जो मेरी सोच से बहुत ऊपर है | एक एक कमी को विस्तार से बताया है | आपकी यही खूबी है आप बहुत गहराई तक जाकर सोच लेते हैं जहाँ नाचीज़ की सोच पहुँच ही नहीं पाती है | आपकी इन नवाज़िशों को शब्दों में ज़ाहिर करना बहुत मुश्किल है | जब से आपका करम नाचीज़ पर हुआ है आपने कलाम को बेहतर बनाने में बहुत योगदान दिया है | यही दुआ करूँगा कि आपका साया हम सभी पर…</p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> साहेब | आदाब | आपने सभी अशआर पर वाजिब इस्लाह की है जो मेरी सोच से बहुत ऊपर है | एक एक कमी को विस्तार से बताया है | आपकी यही खूबी है आप बहुत गहराई तक जाकर सोच लेते हैं जहाँ नाचीज़ की सोच पहुँच ही नहीं पाती है | आपकी इन नवाज़िशों को शब्दों में ज़ाहिर करना बहुत मुश्किल है | जब से आपका करम नाचीज़ पर हुआ है आपने कलाम को बेहतर बनाने में बहुत योगदान दिया है | यही दुआ करूँगा कि आपका साया हम सभी पर बना रहे और स्नेह भी | सादर आभार | </p> जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरं…tag:openbooksonline.com,2019-02-12:5170231:Comment:9746532019-02-12T12:42:20.695ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>मतले के दोनों मिसरों में 'ज़िन्दगी'शब्द खटक रहा है,अगर ऊला में 'शाइरी' कर दें तो?</p>
<p></p>
<p>ठीक इसी तरह दूसरे शैर के दोनों मिसरों में 'साहिलों' शब्द खटक रहा है,उचित लगे तो ऊला यूँ कर लें:-</p>
<p>'जब किनारों से मिले तूफ़ान का रुख़ मोड़ कर'</p>
<div class=""><div class="_1mf _1mj"><span>'</span></div>
<div class="_1mf _1mj"><span>जुस्तजू क़ामिल हमारी जब कभी होने को थी…</span></div>
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<p>जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>मतले के दोनों मिसरों में 'ज़िन्दगी'शब्द खटक रहा है,अगर ऊला में 'शाइरी' कर दें तो?</p>
<p></p>
<p>ठीक इसी तरह दूसरे शैर के दोनों मिसरों में 'साहिलों' शब्द खटक रहा है,उचित लगे तो ऊला यूँ कर लें:-</p>
<p>'जब किनारों से मिले तूफ़ान का रुख़ मोड़ कर'</p>
<div class=""><div class="_1mf _1mj"><span>'</span></div>
<div class="_1mf _1mj"><span>जुस्तजू क़ामिल हमारी जब कभी होने को थी</span></div>
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<div class=""><div class="_1mf _1mj"><span>फिर वहीँ पर जिस जगह थे हमको लाकर दम लिया'</span></div>
<div class="_1mf _1mj"><span>किसने?</span></div>
<div class="_1mf _1mj"></div>
<div class="_1mf _1mj"><span>'हसरतों की धज़्ज़ियाँ सारी उड़ाकर दम लिया'</span></div>
<div class="_1mf _1mj"><span>इस मिसरे में 'सारी' की जगह "हमने" शब्द उचित होगा ।</span><br/><div class=""><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
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<div class=""><div class="_1mf _1mj"><span>'है वुजूद-ए-रब मगर हमको मनाकर दम लिया'</span></div>
<div class="_1mf _1mj"><span>इस मिसरे में 'मनाकर'क़ाफ़िया मुनासिब नहीं,ये रूठने मनाने वाला है,यहाँ "मनवाकर" चहिए जो आ नहीं सकता ।</span></div>
<div class="_1mf _1mj"></div>
<div class="_1mf _1mj"><span>'तो अमीरी साथ देगी बरगलाकर दम लिया'</span></div>
<div class="_1mf _1mj"><span>इस मिसरे में 'बरगलाकर' शब्द ग़लत है,और दोनों मिसरों में रब्त भी नहीं,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-</span></div>
<div class="_1mf _1mj"><span>'यूँ अमीरी ने हमें भी वरग़लाकर दम लिया'</span></div>
</div>
</div>
</div> शिज्जु "शकूर" साहेब
हौसला अ…tag:openbooksonline.com,2019-02-12:5170231:Comment:9746502019-02-12T04:22:37.613Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'http://openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p><span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/ShijjuS" class="fn url">शिज्जु "शकूर"</a> साहेब </p>
<p>हौसला अफ़ज़ाई के लिए मश्कूरो मम्नून हूँ जनाब का।</p>
<p><span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/ShijjuS" class="fn url">शिज्जु "शकूर"</a> साहेब </p>
<p>हौसला अफ़ज़ाई के लिए मश्कूरो मम्नून हूँ जनाब का।</p> आ. गहलोत जी अच्छी ग़ज़ल है सादर…tag:openbooksonline.com,2019-02-12:5170231:Comment:9744982019-02-12T02:01:22.913Zशिज्जु "शकूर"http://openbooksonline.com/profile/ShijjuS
<p>आ. गहलोत जी अच्छी ग़ज़ल है सादर बधाई</p>
<p>आ. गहलोत जी अच्छी ग़ज़ल है सादर बधाई</p> आदरणीय Surkhab Bashar जी ,
हौ…tag:openbooksonline.com,2019-02-11:5170231:Comment:9738842019-02-11T04:55:29.670Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'http://openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SurkhabBashar" class="fn url">आदरणीय Surkhab Bashar</a><span> जी ,</span></p>
<p>हौसला अफ़ज़ाई के लिए मश्कूरो मम्नून हूँ जनाब का।</p>
<p></p>
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SurkhabBashar" class="fn url">आदरणीय Surkhab Bashar</a><span> जी ,</span></p>
<p>हौसला अफ़ज़ाई के लिए मश्कूरो मम्नून हूँ जनाब का।</p>
<p></p> आ. तुरंत जी उम्दा ग़ज़ल है…tag:openbooksonline.com,2019-02-10:5170231:Comment:9733892019-02-10T04:48:21.355ZSurkhab Basharhttp://openbooksonline.com/profile/SurkhabBashar
<p>आ. तुरंत जी उम्दा ग़ज़ल है वाह वाह वाह </p>
<p>आ. तुरंत जी उम्दा ग़ज़ल है वाह वाह वाह </p> जनाब तुरंत जी आदाब,आज रात 12ब…tag:openbooksonline.com,2019-02-08:5170231:Comment:9732212019-02-08T17:19:36.506ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब तुरंत जी आदाब,आज रात 12बजे से सोमवार की रात 12 बजे तक ओबीओ का "लाइव महाउत्सव"अंक 100 के आयोजन में व्यस्त रहूँगा,(आप भी हिस्सा लें)इस कारण आपकी ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी बाद में दूँगा ।</p>
<p>जनाब तुरंत जी आदाब,आज रात 12बजे से सोमवार की रात 12 बजे तक ओबीओ का "लाइव महाउत्सव"अंक 100 के आयोजन में व्यस्त रहूँगा,(आप भी हिस्सा लें)इस कारण आपकी ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी बाद में दूँगा ।</p>