Comments - 'मुझे भी!' (लघुकथा) : - Open Books Online2024-03-28T22:43:28Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A978839&xn_auth=noमेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर अपना अ…tag:openbooksonline.com,2019-04-01:5170231:Comment:9798892019-04-01T11:43:30.023ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर अपना अमूल्य समय देकर व राय देते हुए मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब, आदरणीया नीता कसार साहिबा, आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा और आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा।</p>
<p>मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर अपना अमूल्य समय देकर व राय देते हुए मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब, आदरणीया नीता कसार साहिबा, आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा और आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा।</p> बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वी…tag:openbooksonline.com,2019-03-31:5170231:Comment:9799102019-03-31T16:35:13.209Zbabitaguptahttp://openbooksonline.com/profile/babitagupta631
<p>बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय शेख सरजी ।</p>
<p>बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय शेख सरजी ।</p> सबके बीच सेल्फ़ी का सुरूर छाय…tag:openbooksonline.com,2019-03-27:5170231:Comment:9798262019-03-27T09:05:35.421ZNita Kasarhttp://openbooksonline.com/profile/NitaKasar
<p>सबके बीच सेल्फ़ी का सुरूर छाया हुआ है।सुविधायें जितनी हो कम ही लगती है।पर ये तय हैछोटी छोटी ख़ुशियाँ मायने रखती है।बुज़ुर्ग बाई के मन की पीड़ा को दर्शाती कथा के लिये बधाई आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।</p>
<p>सबके बीच सेल्फ़ी का सुरूर छाया हुआ है।सुविधायें जितनी हो कम ही लगती है।पर ये तय हैछोटी छोटी ख़ुशियाँ मायने रखती है।बुज़ुर्ग बाई के मन की पीड़ा को दर्शाती कथा के लिये बधाई आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।</p> अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति पर…tag:openbooksonline.com,2019-03-27:5170231:Comment:9796252019-03-27T08:54:27.039ZNeelam Upadhyayahttp://openbooksonline.com/profile/NeelamUpadhyaya
<p>अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें <span style="display: inline !important; float: none; background-color: transparent; color: #000000; font-family: Arial,'Helvetica Neue',Helvetica,sans-serif; font-size: 13px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: left; text-decoration: none; text-indent: 0px; text-transform: none; -webkit-text-stroke-width: 0px; white-space: normal; word-spacing: 0px;">आदरणीय शैख़ शहज़ाद…</span></p>
<p>अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें <span style="display: inline !important; float: none; background-color: transparent; color: #000000; font-family: Arial,'Helvetica Neue',Helvetica,sans-serif; font-size: 13px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: left; text-decoration: none; text-indent: 0px; text-transform: none; -webkit-text-stroke-width: 0px; white-space: normal; word-spacing: 0px;">आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी</span>।</p> हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मा…tag:openbooksonline.com,2019-03-23:5170231:Comment:9792662019-03-23T06:40:59.116ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बेहतरीन लघुकथा।</p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बेहतरीन लघुकथा।</p> बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब विजय…tag:openbooksonline.com,2019-03-22:5170231:Comment:9790582019-03-22T19:53:46.184ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p><span>बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब विजय निकोरे साहिब। आपकी टिप्पणी हम जैसे बहुत से लोगों की पीड़ा भी शाब्दिक कर रही है। </span></p>
<p><span>बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब विजय निकोरे साहिब। आपकी टिप्पणी हम जैसे बहुत से लोगों की पीड़ा भी शाब्दिक कर रही है। </span></p> //"मैडम हमें तो तुमने ज़रा भी…tag:openbooksonline.com,2019-03-22:5170231:Comment:9792502019-03-22T17:31:54.742Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>//"मैडम हमें तो तुमने ज़रा भी गुलाल नहीं लगाया और जाने लगीं!" विद्यालय की चतुर्थ-वर्ग स्टाफ़ की बुज़ुर्ग बाई ने वर्तिका मैडम से यह कहा और जब मैडम ने उसके गालों पर गुलाल पोत कर और सेल्फ़ी ली, तो वह उसके पैर छू कर बोली, "मैडम मुझे भी भेज देना! ..... लेकिन ऐसा वाला मोबाइल तो हमारे पास है नहीं!"//........</p>
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<p>इन पंक्तियों ने मुझको जैसे पकड़ लिया, दबोच लिया, मन किया कि तुरन्त कुछ करूँ उस बुज़ुर्ग बाई के लिए, कोई खुशी दूँ उसे ... और फिर लगा कि मैं इस काबिल भी नहीं कि किसी के मन को शांति…</p>
<p>//"मैडम हमें तो तुमने ज़रा भी गुलाल नहीं लगाया और जाने लगीं!" विद्यालय की चतुर्थ-वर्ग स्टाफ़ की बुज़ुर्ग बाई ने वर्तिका मैडम से यह कहा और जब मैडम ने उसके गालों पर गुलाल पोत कर और सेल्फ़ी ली, तो वह उसके पैर छू कर बोली, "मैडम मुझे भी भेज देना! ..... लेकिन ऐसा वाला मोबाइल तो हमारे पास है नहीं!"//........</p>
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<p>इन पंक्तियों ने मुझको जैसे पकड़ लिया, दबोच लिया, मन किया कि तुरन्त कुछ करूँ उस बुज़ुर्ग बाई के लिए, कोई खुशी दूँ उसे ... और फिर लगा कि मैं इस काबिल भी नहीं कि किसी के मन को शांति दे सकूँ ... पीड़ा-सी रुक गई छाती में।</p>
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<p>बहुत ही सुन्दर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आ० <span> शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी।</span></p> आदाब। बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब…tag:openbooksonline.com,2019-03-21:5170231:Comment:9792072019-03-21T16:29:30.211ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>आदाब। बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब समर कबीर साहिब।</p>
<p>आदाब। बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब समर कबीर साहिब।</p> जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदा…tag:openbooksonline.com,2019-03-21:5170231:Comment:9789272019-03-21T06:45:11.928ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>