Comments - वफ़ा ढूंढते हो जफ़ा के नगर में यहाँ पर वफ़ा अब बची ही कहाँ है (४५ ) - Open Books Online2024-03-28T15:31:27Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A985427&xn_auth=no गिरिराज भंडारी जी आपकी हौसला…tag:openbooksonline.com,2019-06-01:5170231:Comment:9855222019-06-01T12:45:41.870Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'http://openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p><span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari" class="fn url">गिरिराज भंडारी</a> जी आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | सादर नमन | तक़बूले रदीफ़ संज्ञान में तो था लेकिन शिल्प की दृष्टि से इस लम्बी बह्र में इग्नोर किया क्योंकि मुझे तीरगी को खीरगी से मिलाना था | वैसे अहमद फ़राज़ जैसे शायर ये मानते हैं कि तक़बूले रदीफ़ के लिए स्वर को देखना चाहिए उस दृष्टि से तीरगी है और फुगाँ है में अलग स्वर है | लेकिन आपकी बात को नज़रअंदाज़ भी नहीं कर रहा हूँ | </p>
<p><span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari" class="fn url">गिरिराज भंडारी</a> जी आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | सादर नमन | तक़बूले रदीफ़ संज्ञान में तो था लेकिन शिल्प की दृष्टि से इस लम्बी बह्र में इग्नोर किया क्योंकि मुझे तीरगी को खीरगी से मिलाना था | वैसे अहमद फ़राज़ जैसे शायर ये मानते हैं कि तक़बूले रदीफ़ के लिए स्वर को देखना चाहिए उस दृष्टि से तीरगी है और फुगाँ है में अलग स्वर है | लेकिन आपकी बात को नज़रअंदाज़ भी नहीं कर रहा हूँ | </p> आदरणीय गिरधारी सिंह जी अच्छी…tag:openbooksonline.com,2019-06-01:5170231:Comment:9852022019-06-01T07:27:51.955Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय गिरधारी सिंह जी अच्छी ग़ज़ल कही है , दिली बधाईयाँ स्वीकार करें | पांचवे शेर में तकाबुले रदीफ दोष आ गया है .. संभव हो तो देख लीजिएगा |</p>
<p>आदरणीय गिरधारी सिंह जी अच्छी ग़ज़ल कही है , दिली बधाईयाँ स्वीकार करें | पांचवे शेर में तकाबुले रदीफ दोष आ गया है .. संभव हो तो देख लीजिएगा |</p>