Comments - कर्म आधारित दोहे : - Open Books Online2024-03-28T23:37:16Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A986156&xn_auth=noजनाब सुशील सरना जी आदाब,दोहों…tag:openbooksonline.com,2019-06-23:5170231:Comment:9861832019-06-23T10:03:56.254ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब सुशील सरना जी आदाब,दोहों का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब सौरभ पाण्डेय जी की बातों का संज्ञान आप ले ही चुके हैं ।</p>
<p>जनाब सुशील सरना जी आदाब,दोहों का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब सौरभ पाण्डेय जी की बातों का संज्ञान आप ले ही चुके हैं ।</p> आदरणीय सुशील जी नमस्कार,
जीव…tag:openbooksonline.com,2019-06-22:5170231:Comment:9860012019-06-22T13:48:56.750Zरक्षिता सिंहhttp://openbooksonline.com/profile/RakshitaSingh
<p>आदरणीय सुशील जी नमस्कार, </p>
<p>जीवन के सत्य पर आधारित बहुत ही सुंदर दोहे..</p>
<p>बहुत बहुत बधाई ।</p>
<p>आदरणीय सुशील जी नमस्कार, </p>
<p>जीवन के सत्य पर आधारित बहुत ही सुंदर दोहे..</p>
<p>बहुत बहुत बधाई ।</p> आदरणीय narendrasinh chauhanज…tag:openbooksonline.com,2019-06-22:5170231:Comment:9862532019-06-22T10:53:30.854ZSushil Sarnahttp://openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p><span>आदरणीय <a href="http://openbooksonline.com/profile/narendrasinhchauhan" class="fn url">narendrasinh chauhan</a></span><span>जी सृजन पर आपके दिलकश प्रशंसा का दिल से आभार।</span></p>
<p><span>आदरणीय <a href="http://openbooksonline.com/profile/narendrasinhchauhan" class="fn url">narendrasinh chauhan</a></span><span>जी सृजन पर आपके दिलकश प्रशंसा का दिल से आभार।</span></p> आदरणीय प्रदीप देवीशरण भट्ट ज…tag:openbooksonline.com,2019-06-22:5170231:Comment:9862512019-06-22T10:48:00.345ZSushil Sarnahttp://openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>आदरणीय <span> <a href="http://openbooksonline.com/profile/PradeepDevisharanBhatt" class="fn url">प्रदीप देवीशरण भट्ट</a> </span>जी सृजन पर आपके दिलकश प्रशंसा का दिल से आभार। </p>
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<p>आदरणीय <span> <a href="http://openbooksonline.com/profile/PradeepDevisharanBhatt" class="fn url">प्रदीप देवीशरण भट्ट</a> </span>जी सृजन पर आपके दिलकश प्रशंसा का दिल से आभार। </p>
<p></p> आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी सृ…tag:openbooksonline.com,2019-06-22:5170231:Comment:9862502019-06-22T10:47:34.060ZSushil Sarnahttp://openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://openbooksonline.com/profile/20ch7d01r75yx" class="fn url">डॉ छोटेलाल सिंह</a> जी सृजन पर आपके दिलकश प्रशंसा का दिल से आभार। </p>
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<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://openbooksonline.com/profile/20ch7d01r75yx" class="fn url">डॉ छोटेलाल सिंह</a> जी सृजन पर आपके दिलकश प्रशंसा का दिल से आभार। </p>
<p></p> बहुत खुब सुशील जी
tag:openbooksonline.com,2019-06-21:5170231:Comment:9860802019-06-21T11:45:30.659Zप्रदीप देवीशरण भट्टhttp://openbooksonline.com/profile/PradeepDevisharanBhatt
<p>बहुत खुब सुशील जी</p>
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<p>बहुत खुब सुशील जी</p>
<p></p> आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभि…tag:openbooksonline.com,2019-06-21:5170231:Comment:9859932019-06-21T02:23:29.896Zडॉ छोटेलाल सिंहhttp://openbooksonline.com/profile/20ch7d01r75yx
<p>आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन ,जगत के सार को परिभाषित करती उत्तम रचना के लिए बहुत बहुत बधाई</p>
<p>आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन ,जगत के सार को परिभाषित करती उत्तम रचना के लिए बहुत बहुत बधाई</p> खूब सुन्दर दोहावली सर tag:openbooksonline.com,2019-06-20:5170231:Comment:9862442019-06-20T13:53:12.794Znarendrasinh chauhanhttp://openbooksonline.com/profile/narendrasinhchauhan
<p>खूब सुन्दर दोहावली सर </p>
<p>खूब सुन्दर दोहावली सर </p> परम आदरणीय सौरभ पांडेय जी , स…tag:openbooksonline.com,2019-06-20:5170231:Comment:9860732019-06-20T12:00:03.516ZSushil Sarnahttp://openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p><br></br>परम आदरणीय सौरभ पांडेय जी , सादर प्रणाम .... सृजन की आत्मीय प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार। मेरी अल्प बुद्धि के अनुसार मुझे नीड की का प्रयोग सही लगा बाकी आप ज्ञानी हैं आप सही बता सकते हैं। आपका कहना सही है कि नीड की और नीड में दोनों के अर्थ भिन्न हो जाएंगे। हर बंदे के कर्म ही, हैं उसकी तकदीर।। सर पहले मैंने यही किया था फिर बहुत देर तक सोचता रहा ही और हैं के स्वर को तोड़ने के लिए है मध्य में कर दिया मध्य में है में बिंदी कॉपी पेस्ट के कारण है अन्यथा है होना चाहिए। हो जाता है कभी कभी।…</p>
<p><br/>परम आदरणीय सौरभ पांडेय जी , सादर प्रणाम .... सृजन की आत्मीय प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार। मेरी अल्प बुद्धि के अनुसार मुझे नीड की का प्रयोग सही लगा बाकी आप ज्ञानी हैं आप सही बता सकते हैं। आपका कहना सही है कि नीड की और नीड में दोनों के अर्थ भिन्न हो जाएंगे। हर बंदे के कर्म ही, हैं उसकी तकदीर।। सर पहले मैंने यही किया था फिर बहुत देर तक सोचता रहा ही और हैं के स्वर को तोड़ने के लिए है मध्य में कर दिया मध्य में है में बिंदी कॉपी पेस्ट के कारण है अन्यथा है होना चाहिए। हो जाता है कभी कभी। इसे मैं संशोधित कर दूंगा। सृजन की विस्तृत समीक्षा करने , त्रुटि इंगित करने के लिए दिल से आभार। सादर ...</p> आदरणीय सुशील जी, कर्म आधारित…tag:openbooksonline.com,2019-06-20:5170231:Comment:9860712019-06-20T10:58:24.005ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय सुशील जी, कर्म आधारित इन दोहोंं के लिए हार्दिक बधाइयाँ .. </p>
<p></p>
<p></p>
<p>अपने अपने नीड़ की, अपनी अपनी पीर ............ नीड़ की पीर या नीड़ में पीर ? क्योंकि दोनों के दो तरह के अर्थ होंगे. <span> </span><br></br>हर बंदे के कर्म ही, हैं उसकी तकदीर।। ............ दूसरा चरण ’हैं’ से प्रारम्भ हो रहा है. वैसे वाक्य सँभला हुआ है. </p>
<p></p>
<p>पाप पुण्य संसार में, हैं कर्मों के भोग।<span> ................. कर्मों के हैंं भोग .. किसी चरण को आधे वाक्य से प्रारम्भ नहीं करना उचित…</span></p>
<p>आदरणीय सुशील जी, कर्म आधारित इन दोहोंं के लिए हार्दिक बधाइयाँ .. </p>
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<p>अपने अपने नीड़ की, अपनी अपनी पीर ............ नीड़ की पीर या नीड़ में पीर ? क्योंकि दोनों के दो तरह के अर्थ होंगे. <span> </span><br/>हर बंदे के कर्म ही, हैं उसकी तकदीर।। ............ दूसरा चरण ’हैं’ से प्रारम्भ हो रहा है. वैसे वाक्य सँभला हुआ है. </p>
<p></p>
<p>पाप पुण्य संसार में, हैं कर्मों के भोग।<span> ................. कर्मों के हैंं भोग .. किसी चरण को आधे वाक्य से प्रारम्भ नहीं करना उचित है. </span><br/>सुख-दुख पाना जीव का ,मात्र नहीं संयोग।। ......... वाह ! </p>
<p></p>
<p>हर किसी के कर्म का, दाता रखे हिसाब।<span> ............ वाह ! </span><br/>देना होगा ईश को ,हर कर्म का जवाब।। ............. वाह ! </p>
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<p>चाँदी सोना धन सभी, हैं जग में बेकार।<span> ................ जग में हैं बेकार .. </span><br/>सद कर्मों से जीव का, होता बेड़ा पार।। ............... सद्कर्मों .. वाह ! </p>
<p></p>
<p>जग में आया छोड़कर, जब तू अपना धाम।<span> .......... वाह ! </span><br/>धन अर्जन के कर्म में, भूल गया तू राम।। ............. वाह ! </p>
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<p>आपके इस सार्थक प्रयास के लिए शुभकामनाएँ .. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
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