Comments - संकट - Open Books Online2024-03-29T13:21:52Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A987129&xn_auth=noआपकी इस सुन्दर रचना से न जाने…tag:openbooksonline.com,2019-07-10:5170231:Comment:9874092019-07-10T11:10:21.421Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>आपकी इस सुन्दर रचना से न जाने क्यूँ मुझको बहादुर शाह ज़फ़र जी की याद आई ... दो गज़ ज़मीं भी न मिली दफ़न के लिए ...।हार्दिक बधाई, भाई गोपाल नारायन जी , बहुत ही सुन्दर ।</p>
<p>आपकी इस सुन्दर रचना से न जाने क्यूँ मुझको बहादुर शाह ज़फ़र जी की याद आई ... दो गज़ ज़मीं भी न मिली दफ़न के लिए ...।हार्दिक बधाई, भाई गोपाल नारायन जी , बहुत ही सुन्दर ।</p> आ० तिवारी जी
यह महज इत्तेफाक…tag:openbooksonline.com,2019-07-08:5170231:Comment:9871542019-07-08T06:19:56.648Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० तिवारी जी </p>
<p>यह महज इत्तेफाक है की मेरी कविता में कुछ सीमा तक २१२२ का स्वतः निर्वाह हुआ पर मैंनेयह रचना बहर में नही की i यदि ऐसा होता तो आपको चार पंक्तिया पूरे बहर में मिलती जैसे मेरी यह रचना है -</p>
<p><strong>युद्ध छल से ही किया लेकिन न रण के दांव सीखे</strong></p>
<p><strong> और अब तक शेर के तुमको नहीं हैं दांत दीखे</strong></p>
<p><strong> </strong><strong>हार रावण की सभा हमसे गयी थी बहुत पहले</strong></p>
<p><strong> तुम पछाडोगे हमारे पाँव अंगद के सरीखे…</strong></p>
<p>आ० तिवारी जी </p>
<p>यह महज इत्तेफाक है की मेरी कविता में कुछ सीमा तक २१२२ का स्वतः निर्वाह हुआ पर मैंनेयह रचना बहर में नही की i यदि ऐसा होता तो आपको चार पंक्तिया पूरे बहर में मिलती जैसे मेरी यह रचना है -</p>
<p><strong>युद्ध छल से ही किया लेकिन न रण के दांव सीखे</strong></p>
<p><strong> और अब तक शेर के तुमको नहीं हैं दांत दीखे</strong></p>
<p><strong> </strong><strong>हार रावण की सभा हमसे गयी थी बहुत पहले</strong></p>
<p><strong> तुम पछाडोगे हमारे पाँव अंगद के सरीखे ?</strong></p>
<p><strong>पर आपने रचना पर इतना ध्यान दिया i इस हेतु आपका आभारi </strong></p> आदरणीय गोपाल जी, महादेवी जी क…tag:openbooksonline.com,2019-07-08:5170231:Comment:9870032019-07-08T02:55:26.230ZAjay Tiwarihttp://openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय गोपाल जी, महादेवी जी का गीत फ़ाइलातुन (2122) की आवृत्ति पर आधारित है (फ़ाइलातुन x 4). इस छंद (बह्रे रमल) का इस्तेमाल उन्होंने अपने एक और मशहूर गीत 'जाग तुझको दूर जाना' में भी किया है. आपकी कविता भी बहुत हद तक 'फ़ाइलातुन' की आवृत्ति पर आधारित है.</p>
<p></p>
<p>मैंने जो परिवर्तन किये हैं वो 'फ़ाइलातुन' को ही आधार मान कर किये हैं : </p>
<p></p>
<p>किन्तु संकट (फ़ाइलातुन) है विकट ढूं (फ़ाइलातुन) ढें नही मिल (फ़ाइलातुन) ता कहीं इस(फ़ाइलातुन) ठौर मुझको (फ़ाइलातुन)</p>
<p>अब तो मरने(फ़ाइलातुन) के लिए…</p>
<p>आदरणीय गोपाल जी, महादेवी जी का गीत फ़ाइलातुन (2122) की आवृत्ति पर आधारित है (फ़ाइलातुन x 4). इस छंद (बह्रे रमल) का इस्तेमाल उन्होंने अपने एक और मशहूर गीत 'जाग तुझको दूर जाना' में भी किया है. आपकी कविता भी बहुत हद तक 'फ़ाइलातुन' की आवृत्ति पर आधारित है.</p>
<p></p>
<p>मैंने जो परिवर्तन किये हैं वो 'फ़ाइलातुन' को ही आधार मान कर किये हैं : </p>
<p></p>
<p>किन्तु संकट (फ़ाइलातुन) है विकट ढूं (फ़ाइलातुन) ढें नही मिल (फ़ाइलातुन) ता कहीं इस(फ़ाइलातुन) ठौर मुझको (फ़ाइलातुन)</p>
<p>अब तो मरने(फ़ाइलातुन) के लिए भी(फ़ाइलातुन) एक चुल्लू (फ़ाइलातुन) साफ़ पानी (फ़ाइलातुन)</p>
<p></p>
<p>'स्नेह निर्झर बह गया है </p>
<p>रेत ज्यूँ तन रह गया है' </p>
<p></p>
<p>निराला की ये पंक्तियाँ भी इसी छंद पर आधारित हैं.</p>
<p></p>
<p>सादर </p> आद0 गोपाल जी सादर अभिवादन। बे…tag:openbooksonline.com,2019-07-07:5170231:Comment:9868922019-07-07T12:47:10.885Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 गोपाल जी सादर अभिवादन। बेहतरीन रचना पर आपको बधाई देता हूँ</p>
<p>आद0 गोपाल जी सादर अभिवादन। बेहतरीन रचना पर आपको बधाई देता हूँ</p> जनाब गोपाल नारायण श्रीवास्तव…tag:openbooksonline.com,2019-07-07:5170231:Comment:9871012019-07-07T10:25:31.725ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।</p> आ० अजय तिवारी जी चकित हूँ की…tag:openbooksonline.com,2019-07-06:5170231:Comment:9870822019-07-06T13:32:46.904Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० अजय तिवारी जी चकित हूँ की १४,१४ मात्राओं में पिरोये महादेवी की गीति रचना से आपने इसकी तुलना कर डाली i पहली बात तो यह की मैंने छंद रचना, की ही नहीं i यह तो सीधी-सीधी समकालीन अतुकांत लघु कविता है I आपने जो परिवर्तन किया है उसका प्रति पंक्ति मात्रिक विन्यास इस प्रकार होगा - १२, 1४ , ९, ,१५ और १४ ऐसा मात्रिक विन्यास किस छंद में संभव है , मुझे ज्ञात नहीं i कृपया मेरी जानकारी के लिए अपने कथन को और अधिक स्पष्ट करेंगे तो मैं अवश्य ही अनुग्रहीत हूँगा I सादर I </p>
<p>आ० अजय तिवारी जी चकित हूँ की १४,१४ मात्राओं में पिरोये महादेवी की गीति रचना से आपने इसकी तुलना कर डाली i पहली बात तो यह की मैंने छंद रचना, की ही नहीं i यह तो सीधी-सीधी समकालीन अतुकांत लघु कविता है I आपने जो परिवर्तन किया है उसका प्रति पंक्ति मात्रिक विन्यास इस प्रकार होगा - १२, 1४ , ९, ,१५ और १४ ऐसा मात्रिक विन्यास किस छंद में संभव है , मुझे ज्ञात नहीं i कृपया मेरी जानकारी के लिए अपने कथन को और अधिक स्पष्ट करेंगे तो मैं अवश्य ही अनुग्रहीत हूँगा I सादर I </p> आदरणीय गोपाल जी, आपकी इस कवित…tag:openbooksonline.com,2019-07-06:5170231:Comment:9871392019-07-06T06:37:45.469ZAjay Tiwarihttp://openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय गोपाल जी, आपकी इस कविता के छंद ने '<span>पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला' की याद दिलाई .</span></p>
<p></p>
<p><span>'किन्तु संकट है विकट</span></p>
<p>ढूंढें नही मिलता मुझे </p>
<p>इस ठौर पानी</p>
<p>एक चुल्लू साफ़</p>
<p><strong>सिर्फ मरने के लिए'</strong></p>
<p></p>
<p>आखिरी पंक्ति छंद से बाहर है. वैसे इस काव्य-रूप में छंद का अनुपालन अनिवार्यता नहीं है. लेकिन इसे भी अगर छंद के अनुरूप किया जा सके तो बेहतर होगा. मस्लन :</p>
<p></p>
<p>किन्तु संकट है विकट</p>
<p>ढूंढें नही…</p>
<p>आदरणीय गोपाल जी, आपकी इस कविता के छंद ने '<span>पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला' की याद दिलाई .</span></p>
<p></p>
<p><span>'किन्तु संकट है विकट</span></p>
<p>ढूंढें नही मिलता मुझे </p>
<p>इस ठौर पानी</p>
<p>एक चुल्लू साफ़</p>
<p><strong>सिर्फ मरने के लिए'</strong></p>
<p></p>
<p>आखिरी पंक्ति छंद से बाहर है. वैसे इस काव्य-रूप में छंद का अनुपालन अनिवार्यता नहीं है. लेकिन इसे भी अगर छंद के अनुरूप किया जा सके तो बेहतर होगा. मस्लन :</p>
<p></p>
<p>किन्तु संकट है विकट</p>
<p>ढूंढें नही मिलता कहीं</p>
<p>इस ठौर मुझको</p>
<p>अब तो मरने के लिए भी</p>
<p>एक चुल्लू साफ़ पानी</p>
<p></p>
<p>एक प्रभावशाली व्यंग-कविता के लिए हार्दिक बधाई.</p>