Comments - अन्तस्तल - Open Books Online2024-03-28T18:11:31Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A992172&xn_auth=noनमस्कार, मित्र बृजेश जी। इतने…tag:openbooksonline.com,2019-09-22:5170231:Comment:9924892019-09-22T02:15:16.601Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>नमस्कार, मित्र बृजेश जी। इतने समय उपरान्त आपका मेरी रचना पर आना सुखद एवं आत्मीय लगा।</p>
<p><span>मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार। आशा है आप और आपका परिवार कुशल होंगे। </span></p>
<p>नमस्कार, मित्र बृजेश जी। इतने समय उपरान्त आपका मेरी रचना पर आना सुखद एवं आत्मीय लगा।</p>
<p><span>मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार। आशा है आप और आपका परिवार कुशल होंगे। </span></p> आदरणीय विजय जी..वास्तव में शब…tag:openbooksonline.com,2019-09-21:5170231:Comment:9927092019-09-21T07:06:28.282Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>आदरणीय विजय जी..वास्तव में शब्द नहीं हैं मेरे पास..आपकी कवितायेँ शुरू से अंत तक बांधे रखती हैं और अंत में भी एक अतृप्ता छोड़ जातीं हैं...और मेरे हिसाब से यही रचना की उत्कृष्टता का सर्वोच्च पैमाना है।बधाई आपको इस भावप्रण कविता के लिए।</p>
<p>आदरणीय विजय जी..वास्तव में शब्द नहीं हैं मेरे पास..आपकी कवितायेँ शुरू से अंत तक बांधे रखती हैं और अंत में भी एक अतृप्ता छोड़ जातीं हैं...और मेरे हिसाब से यही रचना की उत्कृष्टता का सर्वोच्च पैमाना है।बधाई आपको इस भावप्रण कविता के लिए।</p> मान देने के लिए आपका हार्दिक…tag:openbooksonline.com,2019-09-19:5170231:Comment:9923892019-09-19T13:46:42.448Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी।</p>
<p>मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी।</p> मान देने के लिए आपका हार्दिक…tag:openbooksonline.com,2019-09-19:5170231:Comment:9926072019-09-19T13:46:13.573Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र सुशील जी।</p>
<p>मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र सुशील जी।</p> प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,…tag:openbooksonline.com,2019-09-19:5170231:Comment:9923792019-09-19T09:05:27.223ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p> अपने खोए हुए को खोजती परखती स…tag:openbooksonline.com,2019-09-16:5170231:Comment:9921832019-09-16T14:19:44.549ZSushil Sarnahttp://openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>अपने खोए हुए को खोजती परखती सिकुड़ती</p>
<p>इस व्यथित अचेत असहनीय अवस्था में मानों</p>
<p>किराय का अस्तित्व लिए तालाब में बुलबुले-सी</p>
<p>मैं हल खोजती सहसा घबरा जाती हूँ</p>
<p>और तुम पूछते हो मुझसे</p>
<p>मेरी घबराहट का कारण ?</p>
<p>.... तुम्हारा यह कमरा <br></br>वाह आदरणीय निकोर साहिब वाह आपके सृजन में बादलों की घुटन,,प्रतीक्षा की तपन, अन्तस् का मर्दन बहुत ही सुंदर चित्रित हुआ है। कक्ष के एकांत में प्रतीक्षा का क्रंदन साफ़ सुनाई देता है। सूखी नदी के नीचे रुका दर्दीला बहाव बहुत कुछ कहता है।…</p>
<p>अपने खोए हुए को खोजती परखती सिकुड़ती</p>
<p>इस व्यथित अचेत असहनीय अवस्था में मानों</p>
<p>किराय का अस्तित्व लिए तालाब में बुलबुले-सी</p>
<p>मैं हल खोजती सहसा घबरा जाती हूँ</p>
<p>और तुम पूछते हो मुझसे</p>
<p>मेरी घबराहट का कारण ?</p>
<p>.... तुम्हारा यह कमरा <br/>वाह आदरणीय निकोर साहिब वाह आपके सृजन में बादलों की घुटन,,प्रतीक्षा की तपन, अन्तस् का मर्दन बहुत ही सुंदर चित्रित हुआ है। कक्ष के एकांत में प्रतीक्षा का क्रंदन साफ़ सुनाई देता है। सूखी नदी के नीचे रुका दर्दीला बहाव बहुत कुछ कहता है। बहरहाल इस उत्कृष्ट भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई।</p>