Comments - मन की बात - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' - Open Books Online2024-03-28T09:45:50Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A996963&xn_auth=noआ. भाई सलीम जी, प्रशंसा के लि…tag:openbooksonline.com,2019-12-03:5170231:Comment:9973382019-12-03T14:50:43.720Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सलीम जी, प्रशंसा के लिए धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई सलीम जी, प्रशंसा के लिए धन्यवाद।</p> आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooksonline.com,2019-12-03:5170231:Comment:9974372019-12-03T14:49:58.787Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति से मान बढ़ाने के लिए आभार । आपकी सलाह बेहतरीन है । आभार।</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति से मान बढ़ाने के लिए आभार । आपकी सलाह बेहतरीन है । आभार।</p> भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी…tag:openbooksonline.com,2019-12-03:5170231:Comment:9972552019-12-03T13:16:22.771ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
<p><br/>भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी बहुत अच्छे दोहे लिखे आपने,मुबारकबाद।</p>
<p><br/>भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी बहुत अच्छे दोहे लिखे आपने,मुबारकबाद।</p> जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' ज…tag:openbooksonline.com,2019-12-01:5170231:Comment:9971052019-12-01T06:44:37.921ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,अच्छे दोहे लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'तोड़ो चुप्पी और फिर, कहकर मन की बात</span><br/><span>व्याकुल तपती देह पर, कर दो सुख बरसात'</span></p>
<p><span>इस दोहे को व्याकरण की दृष्टि से यूँ होना चाहिए:-</span></p>
<p><span>'तोड़ो चुप्पी और फिर,कह दो मन की बात</span></p>
<p><span>व्याकुल तपती देह पर,हो सुख की बरसात'</span></p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,अच्छे दोहे लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'तोड़ो चुप्पी और फिर, कहकर मन की बात</span><br/><span>व्याकुल तपती देह पर, कर दो सुख बरसात'</span></p>
<p><span>इस दोहे को व्याकरण की दृष्टि से यूँ होना चाहिए:-</span></p>
<p><span>'तोड़ो चुप्पी और फिर,कह दो मन की बात</span></p>
<p><span>व्याकुल तपती देह पर,हो सुख की बरसात'</span></p> आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभ…tag:openbooksonline.com,2019-12-01:5170231:Comment:9971892019-12-01T01:15:58.175Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।</p> आ. भाई सुरेंद्र जी, सादर अभिव…tag:openbooksonline.com,2019-12-01:5170231:Comment:9971882019-12-01T01:14:02.628Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सुरेंद्र जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई सुरेंद्र जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p> आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवाद…tag:openbooksonline.com,2019-12-01:5170231:Comment:9971002019-12-01T01:12:37.183Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति से मान बढ़ाने के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति से मान बढ़ाने के लिए आभार।</p> आपके लिखे दोहे बहुत अच्छे लगे…tag:openbooksonline.com,2019-11-30:5170231:Comment:9972272019-11-30T20:20:42.799Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>आपके लिखे दोहे बहुत अच्छे लगे। बधाई, मित्र लक्ष्मण जी।</p>
<p>आपके लिखे दोहे बहुत अच्छे लगे। बधाई, मित्र लक्ष्मण जी।</p> आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिव…tag:openbooksonline.com,2019-11-30:5170231:Comment:9970832019-11-30T15:08:25.682Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। बढ़िया दोहावली हुई है,, बधाई स्वीकार कीजिये</p>
<p>आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। बढ़िया दोहावली हुई है,, बधाई स्वीकार कीजिये</p> हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण ध…tag:openbooksonline.com,2019-11-30:5170231:Comment:9971662019-11-30T14:05:46.086ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</span>जी। बेहतरीन दोहे।</p>
<p><span>कहते मन की बात वो, अपनी ही हर बार</span><br/><span>सुनते तो चलता पता, कितना दुख का भार।</span></p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</span>जी। बेहतरीन दोहे।</p>
<p><span>कहते मन की बात वो, अपनी ही हर बार</span><br/><span>सुनते तो चलता पता, कितना दुख का भार।</span></p>