Comments - अपने हर ग़म को वो अश्कों में पिरो लेती है - सलीम 'रज़ा' - Open Books Online2024-03-29T07:19:47Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A997434&xn_auth=noबहुत ही सुन्दर रचना पेश की है…tag:openbooksonline.com,2019-12-13:5170231:Comment:9977222019-12-13T02:14:39.540Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>बहुत ही सुन्दर रचना पेश की है, मित्र सलीम जी।हार्दिक बधाई।</p>
<p>बहुत ही सुन्दर रचना पेश की है, मित्र सलीम जी।हार्दिक बधाई।</p> आदरणीय शुशील सरना जी आपकी पुर…tag:openbooksonline.com,2019-12-09:5170231:Comment:9977102019-12-09T17:07:17.206ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
<p>आदरणीय शुशील सरना जी आपकी पुरख़ुलूस महब्बत का बेहद शुक्रिया।</p>
<p>आदरणीय शुशील सरना जी आपकी पुरख़ुलूस महब्बत का बेहद शुक्रिया।</p> भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' सा…tag:openbooksonline.com,2019-12-09:5170231:Comment:9974892019-12-09T17:05:15.646ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
<p>भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब आपकी पुरख़ुलूस महब्बत का बेहद शुक्रिया।</p>
<p>भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब आपकी पुरख़ुलूस महब्बत का बेहद शुक्रिया।</p> आ. भाई सलीम जी, इस बेहतरीन मा…tag:openbooksonline.com,2019-12-09:5170231:Comment:9975632019-12-09T00:54:32.795Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सलीम जी, <span>इस बेहतरीन मार्मिक ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।</span></p>
<p>आ. भाई सलीम जी, <span>इस बेहतरीन मार्मिक ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।</span></p> अपने हर ग़म को वो अश्कों में…tag:openbooksonline.com,2019-12-05:5170231:Comment:9972802019-12-05T14:00:00.710ZSushil Sarnahttp://openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>अपने हर ग़म को वो अश्कों में पिरो लेती है</p>
<p>बेटी मुफ़लिस की खुले घर मे भी सो लेती है</p>
<p></p>
<p>मेरे दामन से लिपट कर के वो रो लेती है</p>
<p>मेरी तन्हाई मेरे साथ ही सो लेती है</p>
<p>वाह आदरणीय सलीम साहिब वाह क्या खूब दर्दीले अहसासों को आपने लफ्ज़ अता किये हैं। इस बेहतरीन मार्मिक ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारक।</p>
<p>अपने हर ग़म को वो अश्कों में पिरो लेती है</p>
<p>बेटी मुफ़लिस की खुले घर मे भी सो लेती है</p>
<p></p>
<p>मेरे दामन से लिपट कर के वो रो लेती है</p>
<p>मेरी तन्हाई मेरे साथ ही सो लेती है</p>
<p>वाह आदरणीय सलीम साहिब वाह क्या खूब दर्दीले अहसासों को आपने लफ्ज़ अता किये हैं। इस बेहतरीन मार्मिक ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारक।</p>