Comments - अहसास की ग़ज़ल-मनोज अहसास - Open Books Online2024-03-29T11:44:31Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A998901&xn_auth=noआदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस…tag:openbooksonline.com,2020-01-20:5170231:Comment:9997982020-01-20T16:38:58.820Zमनोज अहसासhttp://openbooksonline.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार हार्दिक आभार सुझाव का सदैव स्वागत एवं मान आपकी सलाह के बिना मेरी ग़ज़ल अधूरी है मैं हृदय से स्वीकार करता हूं सादर आभार</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार हार्दिक आभार सुझाव का सदैव स्वागत एवं मान आपकी सलाह के बिना मेरी ग़ज़ल अधूरी है मैं हृदय से स्वीकार करता हूं सादर आभार</p> आपका हार्दिक आभार आदरणीय धामी…tag:openbooksonline.com,2020-01-20:5170231:Comment:9995742020-01-20T16:38:19.987Zमनोज अहसासhttp://openbooksonline.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>आपका हार्दिक आभार आदरणीय धामी जी</p>
<p>आपका हार्दिक आभार आदरणीय धामी जी</p> जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2020-01-19:5170231:Comment:9994592020-01-19T15:22:55.784ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'खुद को उसको सौंपकर निश्चित हुए बैठे हैं हम,</span><br/><span>उसको बस इतनी तलब है अपना कल आसान कर'</span></p>
<p><span>इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,देखियेगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'आदमी को आदमी के हाथों मरने के लिए'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>आदमी को आदमी के हाथों मरता छोड़ कर'</span></p>
<p><span>शब्दों के नीचे नुक़्ते लगाना सीखिए ।</span></p>
<p>जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'खुद को उसको सौंपकर निश्चित हुए बैठे हैं हम,</span><br/><span>उसको बस इतनी तलब है अपना कल आसान कर'</span></p>
<p><span>इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,देखियेगा ।</span></p>
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<p><span>'आदमी को आदमी के हाथों मरने के लिए'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>आदमी को आदमी के हाथों मरता छोड़ कर'</span></p>
<p><span>शब्दों के नीचे नुक़्ते लगाना सीखिए ।</span></p> आ. भाई मनोज जी, अच्छी गजल हुई…tag:openbooksonline.com,2020-01-14:5170231:Comment:9996152020-01-14T10:36:19.979Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई मनोज जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई मनोज जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>