Comments - अहसास की ग़ज़ल-मनोज अहसास - Open Books Online2024-03-29T06:21:53Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A999514&xn_auth=noआदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस…tag:openbooksonline.com,2020-01-28:5170231:Comment:10001692020-01-28T11:27:34.219Zमनोज अहसासhttp://openbooksonline.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार मैं इस गजल पर दोबारा काम करूंगा क्योंकि इसमें कई गलतियां दिख गई हैं श्री सुरेंद्र जी की बात पर पूरा ध्यान देने की कोशिश करूंगा आशीर्वाद बनाए रखें सादर आभार</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार मैं इस गजल पर दोबारा काम करूंगा क्योंकि इसमें कई गलतियां दिख गई हैं श्री सुरेंद्र जी की बात पर पूरा ध्यान देने की कोशिश करूंगा आशीर्वाद बनाए रखें सादर आभार</p> जनाब मनोज अहसास जी आदाब,लगता…tag:openbooksonline.com,2020-01-21:5170231:Comment:9996982020-01-21T15:38:39.513ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब मनोज अहसास जी आदाब,लगता है ये ग़ज़ल आपने जल्द बाज़ी में कही है ।</p>
<p></p>
<p><span>'मेरे कमरे में रात गए तंजीम का मौसम होता है'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'तंजीम' का क्या अर्थ लिया है आपने?</span></p>
<p><span>'कोई हाथों में रसगुल्लें देकर पीठ में कील चुभोता है'</span></p>
<p><span>इस मिसरे की बह्र चेक करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'उसकी मेहनत का फल उसको जाने क्यों देर से मिलता है,<br></br>जो सपनों को आंखों में भर खेतों में पसीना होता है'</span></p>
<p><span>इस शैर में…</span></p>
<p>जनाब मनोज अहसास जी आदाब,लगता है ये ग़ज़ल आपने जल्द बाज़ी में कही है ।</p>
<p></p>
<p><span>'मेरे कमरे में रात गए तंजीम का मौसम होता है'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'तंजीम' का क्या अर्थ लिया है आपने?</span></p>
<p><span>'कोई हाथों में रसगुल्लें देकर पीठ में कील चुभोता है'</span></p>
<p><span>इस मिसरे की बह्र चेक करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'उसकी मेहनत का फल उसको जाने क्यों देर से मिलता है,<br/>जो सपनों को आंखों में भर खेतों में पसीना होता है'</span></p>
<p><span>इस शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़' कुल्ली का दोष है ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'धो लेते हैं हम भी मन अपना वो खाक हुए जज्बात उठा'</span></p>
<p><span>इस मिसरे का कथ्य स्पष्ट नहीं है ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'बच्चे आखिर में आपस में उस दौलत पर लड़ जाते हैं'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'में' शब्द दो बार मिसरे को कमज़ोर कर रहा है ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'ऐसे ही नहीं खींच पाए हैं यें दर्द के नक्शे कागज पर'</span></p>
<p><span>इस मिसरे की लय बाधित है ।</span></p>
<p><span>इस बह्र के बारे में पहले भी आपको समझाइश दे चुका हूँ ।</span></p>
<p><span>जनाब सुरेन्द्र जी की बात से सहमत हूँ ।</span></p>
<p></p> मैं भी प्रयास करूंगा मित्रtag:openbooksonline.com,2020-01-21:5170231:Comment:9994912020-01-21T13:54:59.951Zमनोज अहसासhttp://openbooksonline.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>मैं भी प्रयास करूंगा मित्र</p>
<p>मैं भी प्रयास करूंगा मित्र</p> आद0 मनोज जी,, समय तो शायद हम…tag:openbooksonline.com,2020-01-21:5170231:Comment:9995802020-01-21T02:10:06.950Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 मनोज जी,, समय तो शायद हम सभी के पास नहीं है मित्र। बस इसी भागमभाग में साहित्य रस लेने की महत्वाकांक्षा हमें दुसरो की रचनाओं पर बरबस खीच लाती है। कल्पना कीजिये आपने रचना डाली और कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली,, तो कैसा अनुभव होगा। प्रतिक्रियाएँ हम साहित्यकारों के लिए संजीवनी होती है। अब रही बात योग्य सुयोग्य कि तो मैं भी उस के लायक खुद को नहीं समझता पर आप सबकी रचनाओं पर अपनी समझ के हिसाब से उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश करता ही रहता हूँ।</p>
<p>आद0 मनोज जी,, समय तो शायद हम सभी के पास नहीं है मित्र। बस इसी भागमभाग में साहित्य रस लेने की महत्वाकांक्षा हमें दुसरो की रचनाओं पर बरबस खीच लाती है। कल्पना कीजिये आपने रचना डाली और कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली,, तो कैसा अनुभव होगा। प्रतिक्रियाएँ हम साहित्यकारों के लिए संजीवनी होती है। अब रही बात योग्य सुयोग्य कि तो मैं भी उस के लायक खुद को नहीं समझता पर आप सबकी रचनाओं पर अपनी समझ के हिसाब से उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश करता ही रहता हूँ।</p> उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक शु…tag:openbooksonline.com,2020-01-20:5170231:Comment:9996882020-01-20T16:36:54.653Zमनोज अहसासhttp://openbooksonline.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक शुक्रिया आदरणीय मित्र आपने ठीक कहा मैंने रचना पर प्रतिक्रिया कम ही दे पाता हूं दरअसल मैं थोड़ा सा व्यस्त ज्यादा रहता हूं इसलिए प्रतिक्रिया नहीं दे पाता दूसरी बात यह है कि मैं अभी स्वयं ही सीख रहा हूं तो किसी दूसरे की रचनाओं में कोई त्रुटि बता पाना भी मेरे लिए संभव नहीं है सादर अभिवादन</p>
<p>उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक शुक्रिया आदरणीय मित्र आपने ठीक कहा मैंने रचना पर प्रतिक्रिया कम ही दे पाता हूं दरअसल मैं थोड़ा सा व्यस्त ज्यादा रहता हूं इसलिए प्रतिक्रिया नहीं दे पाता दूसरी बात यह है कि मैं अभी स्वयं ही सीख रहा हूं तो किसी दूसरे की रचनाओं में कोई त्रुटि बता पाना भी मेरे लिए संभव नहीं है सादर अभिवादन</p> आद0 मनोज अहसास जी सादर अभिवाद…tag:openbooksonline.com,2020-01-20:5170231:Comment:9994762020-01-20T09:18:04.559Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 मनोज अहसास जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने,, बधाई स्वीकार कीजिये। एक निवेदन है, समयानुकूल और लोगों की रचनाओं पर भी प्रतिक्रिया दिया करें। सीखने सिखाने को मिलेगा। सादर</p>
<p>आद0 मनोज अहसास जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने,, बधाई स्वीकार कीजिये। एक निवेदन है, समयानुकूल और लोगों की रचनाओं पर भी प्रतिक्रिया दिया करें। सीखने सिखाने को मिलेगा। सादर</p>