Comments - लिए सुख की चाहतें हम - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल) - Open Books Online2024-03-28T23:59:42Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A999702&xn_auth=noआ. भाई समर जी, सादर आभार..tag:openbooksonline.com,2020-02-01:5170231:Comment:10005422020-02-01T00:50:49.985Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर आभार..</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर आभार..</p> अब मिसरे ठीक हैं ।
//एक बात औ…tag:openbooksonline.com,2020-01-30:5170231:Comment:10001062020-01-30T06:50:12.434ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>अब मिसरे ठीक हैं ।</p>
<p>//एक बात और क्या किसी अन्य शायर के मिसरे या मिलते जुलते भाव को गजल में लेना उचित नहीं है । इस पर भी मार्गदर्शन चाहता हूँ//</p>
<p>किसी शाइर से मिसरा टकराने को "तवारुद'' कहते हैं,मालूम होने पर बाद में कहने वाले शाइर को अख़लाक़न अपना मिसरा हटाना या बदलना चाहिए ।</p>
<p>अब मिसरे ठीक हैं ।</p>
<p>//एक बात और क्या किसी अन्य शायर के मिसरे या मिलते जुलते भाव को गजल में लेना उचित नहीं है । इस पर भी मार्गदर्शन चाहता हूँ//</p>
<p>किसी शाइर से मिसरा टकराने को "तवारुद'' कहते हैं,मालूम होने पर बाद में कहने वाले शाइर को अख़लाक़न अपना मिसरा हटाना या बदलना चाहिए ।</p> आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooksonline.com,2020-01-29:5170231:Comment:10002412020-01-29T22:55:49.832Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। इंगित कमियों में सुधार का प्रयास किया है देखियेगा ।<br/>//बड़ा अम्न चैन तुझको बड़ा सुख मिला था घर में<br/>/'रहा फर्क अब भला क्या यहाँ गाँव औ' नगर में'<br/>//कभी तुम थे हमकदम तो रही पथ में रौनकें भी<br/>लिए साथ अब उदासी चला जा रहा सफर में।।</p>
<p>एक बात और क्या किसी अन्य शायर के मिसरे या मिलते जुलते भाव को गजल में लेना उचित नहीं है । इस पर भी मार्गदर्शन चाहता हूँ। सादर...</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। इंगित कमियों में सुधार का प्रयास किया है देखियेगा ।<br/>//बड़ा अम्न चैन तुझको बड़ा सुख मिला था घर में<br/>/'रहा फर्क अब भला क्या यहाँ गाँव औ' नगर में'<br/>//कभी तुम थे हमकदम तो रही पथ में रौनकें भी<br/>लिए साथ अब उदासी चला जा रहा सफर में।।</p>
<p>एक बात और क्या किसी अन्य शायर के मिसरे या मिलते जुलते भाव को गजल में लेना उचित नहीं है । इस पर भी मार्गदर्शन चाहता हूँ। सादर...</p> जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' ज…tag:openbooksonline.com,2020-01-29:5170231:Comment:10003132020-01-29T09:48:02.298ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'बड़ा चैन था अमन था बड़ा सुख था तुझको घर में'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में सहीह शब्द "अम्न" है,देखियेगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'रह फर्क अब गया क्या भला गाँव और' नगर में'</span></p>
<p><span>ये मिसरा बह्र में नहीं है,देखियेगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'उन्हीं रास्तों से जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे'</span></p>
<p><span>ये मिसरा बशीर बद्र साहिब की ग़ज़ल का है,उनका शैर…</span></p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'बड़ा चैन था अमन था बड़ा सुख था तुझको घर में'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में सहीह शब्द "अम्न" है,देखियेगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'रह फर्क अब गया क्या भला गाँव और' नगर में'</span></p>
<p><span>ये मिसरा बह्र में नहीं है,देखियेगा ।</span></p>
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<p><span>'उन्हीं रास्तों से जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे'</span></p>
<p><span>ये मिसरा बशीर बद्र साहिब की ग़ज़ल का है,उनका शैर है:-</span></p>
<p><span>'उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे</span></p>
<p><span>मुझे रोक रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है'</span></p> आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवाद…tag:openbooksonline.com,2020-01-23:5170231:Comment:9996042020-01-23T00:19:02.379Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।</p>
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।</p> हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण ध…tag:openbooksonline.com,2020-01-22:5170231:Comment:9998282020-01-22T14:38:58.489ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' </span>जी। बहुत शानदार गज़ल।</p>
<p><span>उन्हीं रास्तों से जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे</span><br/><span>चला जा रहा हूँ बेबस मैं अकेला अब सफर में।५।</span></p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' </span>जी। बहुत शानदार गज़ल।</p>
<p><span>उन्हीं रास्तों से जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे</span><br/><span>चला जा रहा हूँ बेबस मैं अकेला अब सफर में।५।</span></p>