Comments - एक ग़ज़ल - ख़ुद को आज़माकर देखूँ - Open Books Online2024-03-28T15:57:59Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A999734&xn_auth=noबेशकीमती जानकारी के लिए हार्द…tag:openbooksonline.com,2020-01-22:5170231:Comment:9997052020-01-22T15:03:18.110Zमनोज अहसासhttp://openbooksonline.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>बेशकीमती जानकारी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब</p>
<p>बेशकीमती जानकारी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब</p> //मत ले मैं आपने मंजर और खं…tag:openbooksonline.com,2020-01-21:5170231:Comment:9997002020-01-21T16:16:15.094ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
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<p><span> //</span>मत ले मैं आपने मंजर और खंजर इस्तेमाल कर लिया है इसलिए यह ग़ज़ल जर अंत वाले काफिये की कैद में आ गई है जिसका पूरी ग़ज़ल में निर्वाह करना पड़ेगा अर्थात ऐसे ही कवाफी लेने पड़ेगे जिनके अंत मे जर हो//</p>
<p>मनोज जी,ऐसा नहीं है, क़वाफ़ी अर के हैं,मतले में 'मंज़र' में 'ज्' के नीचे बिंदी है जो "ख़ंजर" में नहीं है,इसलिए इस ग़ज़ल में क़वाफ़ी दुरुस्त हैं ।</p>
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<p><span> //</span>मत ले मैं आपने मंजर और खंजर इस्तेमाल कर लिया है इसलिए यह ग़ज़ल जर अंत वाले काफिये की कैद में आ गई है जिसका पूरी ग़ज़ल में निर्वाह करना पड़ेगा अर्थात ऐसे ही कवाफी लेने पड़ेगे जिनके अंत मे जर हो//</p>
<p>मनोज जी,ऐसा नहीं है, क़वाफ़ी अर के हैं,मतले में 'मंज़र' में 'ज्' के नीचे बिंदी है जो "ख़ंजर" में नहीं है,इसलिए इस ग़ज़ल में क़वाफ़ी दुरुस्त हैं ।</p> जनाब विवेक ठाकुर 'मन' जी आदाब…tag:openbooksonline.com,2020-01-21:5170231:Comment:9995922020-01-21T16:10:13.993ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब विवेक ठाकुर 'मन' जी आदाब,पहली बार ओबीओ पर आपकी रचना पढ़ रहा हूँ,आपका स्वागत है ।</p>
<p>ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है लेकिन बह्र,शिल्प,व्याकरण की दृष्टि से अभी ये बहुत समय चाहती है, ओबीओ पर मौजूद 'ग़ज़ल की कक्षा' का लाभ लें,अध्यन करें,प्रयासरत रहें,शुभेच्छाएँ ।</p>
<p>जनाब विवेक ठाकुर 'मन' जी आदाब,पहली बार ओबीओ पर आपकी रचना पढ़ रहा हूँ,आपका स्वागत है ।</p>
<p>ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है लेकिन बह्र,शिल्प,व्याकरण की दृष्टि से अभी ये बहुत समय चाहती है, ओबीओ पर मौजूद 'ग़ज़ल की कक्षा' का लाभ लें,अध्यन करें,प्रयासरत रहें,शुभेच्छाएँ ।</p> प्रिय मित्र इस ग़ज़ल की बहर क…tag:openbooksonline.com,2020-01-21:5170231:Comment:9994892020-01-21T13:53:54.701Zमनोज अहसासhttp://openbooksonline.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>प्रिय मित्र इस ग़ज़ल की बहर क्या है यह स्पष्ट करें ग़ज़ल की बहर गजल के ऊपर लिख दिया करें इससे गजल को समझने में आसानी रहती है मत ले मैं आपने मंजर और खंजर इस्तेमाल कर लिया है इसलिए यह ग़ज़ल जर अंत वाले काफिये की कैद में आ गई है जिसका पूरी ग़ज़ल में निर्वाह करना पड़ेगा अर्थात ऐसे ही कवाफी लेने पड़ेगे जिनके अंत मे जर हो</p>
<p>सादर</p>
<p>प्रिय मित्र इस ग़ज़ल की बहर क्या है यह स्पष्ट करें ग़ज़ल की बहर गजल के ऊपर लिख दिया करें इससे गजल को समझने में आसानी रहती है मत ले मैं आपने मंजर और खंजर इस्तेमाल कर लिया है इसलिए यह ग़ज़ल जर अंत वाले काफिये की कैद में आ गई है जिसका पूरी ग़ज़ल में निर्वाह करना पड़ेगा अर्थात ऐसे ही कवाफी लेने पड़ेगे जिनके अंत मे जर हो</p>
<p>सादर</p> बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीयtag:openbooksonline.com,2020-01-18:5170231:Comment:9996402020-01-18T17:23:52.034Zविवेक ठाकुर "मन"http://openbooksonline.com/profile/3n16amc0retf8
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय आ. भाई विवेक जी, अच्छी गजल हु…tag:openbooksonline.com,2020-01-17:5170231:Comment:9997532020-01-17T01:30:17.371Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई विवेक जी, अच्छी गजल हुई है, हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई विवेक जी, अच्छी गजल हुई है, हार्दिक बधाई ।</p>