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ग़ज़ल ( अभी जो है वही सच है....)

(1222 1222 1222 1222)

अभी जो है वही सच है तेरे मेरे फ़साने में
अबद तक कौन रहता है सलामत इस ज़माने में

तड़पता देख कर मुझको सड़क पर वो नहीं रूकता
कहीं झुकना न पड़ जाए उसे मुझको उठाने में

गले का दर्द सुनते हैं वो पल में ठीक करता है
महारत भी जिसे हासिल है आवाज़ें दबाने में

किसी दिन टूट जाएँगी ये चट्टानें खड़ी हैं जो
लगेगा वक़्त शीशे को हमें पत्थर बनाने में

अजब महबूब है मेरा जो पल में रुठ जाता है
महीने बीत जाते हैं मुझे उसको मनाने में

वहाँ आवाज़ में लर्ज़िश बदन भी काँपता है याँ
उधर दहशत,इधर भी ख़ौफ़ है नजदीक आने में

*मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सालिक गणवीर on June 16, 2020 at 6:53am

आदरणीय समर कबीर साहिब

आदाब

ज़रूरी इस्लाह के हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. बहुत शुक्रिया.सादर

Comment by Samar kabeer on June 15, 2020 at 6:28pm

//जब मैंने लिखा तो मेरे ज़ेहन में अज़ल के दो अर्थ थे, पहला अनंत काल और दूसरा मृत्यु या मौत.मेरे ख़याल से अज़ल  इस मिसरे में फिट बैठ रहा है.//

'अज़ल' का वही अर्थ सहीह है,जो अमीरुद्दीन जी और रवि भसीन जी,ने बताया है,और आपने भी उसे पहले नम्बर पर लिखा है ।

एक शब्द है "अजल" इस शब्द में 'ज' के नीचे नुक़्ता नहीं लगता,इसका अर्थ मौत होता है ।

// क्या सानी मिसरे मेंं  "अज़ल  " को हटाकर अबद लिख दूँ?//

आप 'अज़ल' को हटाकर "अबद" कर सकते हैं ।

Comment by सालिक गणवीर on June 15, 2020 at 5:35pm

आदरणीय समर कबीर साहिब

आदाब

इससे पहले कि मैं इस ग़ज़ल के मतले में ज़रूरी सुधार करुँ,जैसा कि गुणीजनों की इस्लाह है. क्या सानी मिसरे मेंं  "अज़ल  " को हटाकर अबद लिख दूँ?जब मैंने लिखा तो मेरे ज़ेहन में अज़ल के दो अर्थ थे, पहला अनंत काल और दूसरा मृत्यु या मौत.मेरे ख़याल से अज़ल  इस मिसरे में फिट बैठ रहा है. उस्ताद-ए-मुहतरम से गुजारिश है कि उचित मार्गदर्शन दें 

Comment by सालिक गणवीर on June 15, 2020 at 3:43pm

आदरणीय भाई रवि शुक्ला जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए ह्रदय से आभार.

Comment by सालिक गणवीर on June 15, 2020 at 3:41pm

आदरणीय रवि भसीन साहिब

सादर प्रणाम

सबसे पहले ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए हृदय से आभार. जब दो-दो.गुणीजनों की एक-सी प्रतिक्रिया मिल रही है  तो मतले में सुधार आवश्यक हो जाता है. मैं आपका और अमीरूद्दीन साहिब का अत्यंत आभारी हूँ जिन्होंने इस अदने से शाइर को पढ़ा और ज़रूरी इस्लाह से नवाजा. सादर.

Comment by Ravi Shukla on June 15, 2020 at 1:41pm

आदरणीय सालिक गणवीर  जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने, बधाई पेश है बाकी विद्ववत  जन कह ही चुके है इस ग़ज़ल पर । बाकी शुभ शुभ । सादर 

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 15, 2020 at 1:06pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने, इस पर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें। विशेष तौर पे मतला और पहला शेर लाजवाब हैं। कृपया मतले में लफ़्ज़ 'अज़ल' पर दोबारा ग़ौर फरमाइयेगा।

अज़ल = beginning, eternity, अनादि काल, वह समय जब सृष्टि की रचना हुई
अबद = eternity, time without end, वह समय जिसका अंत न हो, अनंत


या फिर इस पर विचार कर सकते हैं:

1222  /  1222  /  1222  /  1222

अभी जो है वही सच है तेरे मेरे फ़साने में
सलामत कौन रहता है क़यामत तक ज़माने में

Comment by सालिक गणवीर on June 15, 2020 at 6:39am

आदरणीय अमीरूद्दीन ' अमीर  ' साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला अफजाई के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on June 15, 2020 at 6:32am

आदरणीय समर कबीर साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और मार्गदर्शन के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ. आशा करता हूँ कि निकट भविष्य में भी आपका स्नेह और मार्गदर्शन सदैव मिलता रहेगा. सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 14, 2020 at 10:24pm

जनाब सालिक गणवीर जी, आदाब।

अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें।

//अज़ल तक कौन रहता है सलामत इस ज़माने में// 'अज़ल' के मानी आदि काल होता है जो यहाँ मौज़ूँ नहीं है। आप शायद अनन्त काल की बात कर रहे हैं जिसके लिए लफ़्ज़ "अबद" होता है। आप यहाँ अज़ल के बजाय "अबद" कह सकते हैं।

//तड़पता देख कर मुझको सड़क पर वो नहीं रूकता

कहीं झुकना न पड़ जाए उसे मुझको उठाने में//.        इस शेअ'र के ऊला मिसरे का शिल्प कमज़ोर है इसे यूँ कर सकते हैं :

"तड़पता देख कर मुझको  सड़क पर यूंँ रुका न वो"।   सादर।

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