२१२/२१२/२१२/२१२
कह रही है बहुत ये हवा आग से
तिश्नगी हर नगर की बुझा आग से।१।
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जागते लोग बाधा सियासत कहे
चैन की नींद सब को सुला आग से।२।
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ईश औषध बना बोल देते रहे
लोग चलने लगे विष बना आग से।३।
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दूर से हाथ जोड़ो कि सपनों छिपा
जब पड़े आप का वास्ता आग से।४।
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जल गये हाथ बच्चे के बूढ़ा कहे
खुश हुआ दोस्ती कर युवा आग से।५।
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भूप अंधा हुआ आग हाथों में ले
झोपड़ी को भुला खेलता आग से।६।
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इश्क बहती नदी आग की जब पता
क्यों जलाएँ बता दिल लगा आग से।७।
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शूल हरपल जलेंगे ये माना मगर
भर 'मुसाफिर' न ये रास्ता आग से।८।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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