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मुझे पागल बताया जा रहा है ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122      2122      2122       2122

 

ज़ख़्म सूखे हैं तो फिर क्यों दर्द फैला जा रहा है  

क्यों मुझे वो दिन पुराना याद आता जा रहा है

 

भीड़ मे रहना मुझे फिर बोझ सा लगने लगा क्यों   

और तनहा कोई कोना क्यों बुलाता जा रहा है

 

फिर वही झरने की कल कल, फिर वही ठंडी हवायें

फिर कोई पागल परिन्दा गीत गाता जा रहा है

 

कोई सपना फिर पुराना आँखों मे पलने लगा क्यों

अजनबी सा डर है तारी दिल धड़कता जा रहा है  

 

फिर से नामावर का रस्ता देखने का दिल किया क्यों

क्यों कबूतर ख़्वाब में फिर रोज़ आता जा रहा है 

 

फिर से बच्चे आज पत्थर क्यों जमा करने लगे अब

फिर मुहल्ले में मुझे पागल बताया जा रहा है

 

फिर से दुनिया की नज़र फिरने लगी मै देखता हूँ

ज़ेह्ने दुनिया क्या कोई साजिश रचाता जा रहा है

                     ********************

नामावर = पत्र वाहक

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2013 at 7:46am

आदरणीय वीनस भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया , फिर से इस गज़ल पर प्रयास कर के देखता हूँ , तब संशोधन के लिये प्रार्थना करूंगा ।

Comment by वीनस केसरी on December 17, 2013 at 3:59am

ग़ज़ल पर खूब दाद हासिल हुई है मगर मैं संतुष्ट नहीं हो सका क्योकि ज़रा सा और समय देने पर अशआर और बेहतर हो सकते थे

एक नमूना देखिये -

फिर से बच्चे आज पत्थर क्यों जमा करने लगे अब

फिर मुहल्ले में मुझे पागल बताया जा रहा है

उफ़ ! ये बच्चे फिर से पत्थर क्यों जमा करने लगे हैं

अब मुहल्ले में किसे पागल बताया जा रहा है

पूरी ग़ज़ल में काम किया जा सकता है


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2013 at 10:00pm

आदरणीय नीलेश भाई , !!!! हौसला अफज़ाई के लिये आपका शुक्रिया !!!!!!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 10, 2013 at 9:31pm

बहुत ख़ूब आदरणीय ... इतने रोज़ मंच से दूर था .क्षमा प्रार्थी हूँ ..


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2013 at 8:25pm

आदरणीय राम शिरोमणी भाई , !!!!!!! गज़ल पर उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया और शे र की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!!!!


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2013 at 8:23pm

आदरणीय मोहन बेगोवाल भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन करे के लिये आपका हार्दिक आभार !!!!!!


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2013 at 8:21pm

आदरणीय बड़े भाई  विजय जी , आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया ने मेरा मन दोगुना कर दिया !!!! गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 7:58pm

फिर वही झरने की कल कल, फिर वही ठंडी हवायें

फिर कोई पागल परिन्दा गीत गाता जा रहा है///////////वाह वाह  बहुत खूब 

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज जी …बहुत बहुत बधाई आपको। ..सादर

Comment by मोहन बेगोवाल on November 10, 2013 at 7:42pm

आदरणीय गिरिराज भाई  जी, सुंदर गजल के लिए बधाई हो 

Comment by vijay nikore on November 10, 2013 at 1:57pm

इस शानदार गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय गिरिराज भाई।

 

सादर,

विजय निकोर

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