For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये न सोचों कि खुशियों में बसर होती है,

कई महलों में भी फांके की सहर होती है !

उसकी आँखों को छलकते हुए आँसूं ही मिले,

वो तो औरत है, कहाँ उसकी कदर होती है

कहीं मासूम को खाने को निवाला न मिला,

कहीं पकवानों से कुत्तों की गुजर होती है,

वो तो मजलूम था, तारीख पे तारीख मिली,

जहाँ दौलत हो इनायत भी उधर होती है,

दिन गुजरता है काम करते, रात सपनों में,

जिंदगी ग़रीब की ऐसे ही बसर होती है !!अनुश्री!!

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 650

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Satyanarayan Singh on May 9, 2014 at 3:50pm

इस सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया अनिता जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 29, 2014 at 5:35pm

आदरणीया , अच्छी ग़ज़ल कही है , बधाइयाँ ॥ बह्र लिख देना अच्छा होता है , सीखने वालों के लिये !!

Comment by रमेश कुमार चौहान on April 29, 2014 at 2:38pm

ये न सोचों कि खुशियों में बसर होती है,

कई महलों में भी फांके की सहर होती है !----------बहुत खूब
बधाई आदरणीया

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 29, 2014 at 1:40pm

दिन गुजरता है काम करते, रात सपनों में,

जिंदगी ग़रीब की ऐसे ही बसर होती है...............वाह! बहुत सुंदर

हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया अनीता जी

Comment by Anita Maurya on April 29, 2014 at 10:09am

शिज्जु शकूर ji Shailendra Awasthi ji  vandanaji Mukesh Verma "Chiragh" ji Dr Ashutosh Mishra ji aabhar aap sabka.. वीनस केसरी ji.. kripya margdarshan karen.. abhi taknik ki samajh nahi hai.. bs prayasrat hu.. 

Comment by वीनस केसरी on April 28, 2014 at 9:05pm

सुन्दर ग़ज़ल है
कुछ मिसरे लय से भटक गए हैं ...

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 28, 2014 at 4:51pm

उसकी आँखों को छलकते हुए आँसूं ही मिले,

वो तो औरत है, कहाँ उसकी कदर होती है.....सही बात 

कहीं मासूम को खाने को निवाला न मिला,

कहीं पकवानों से कुत्तों की गुजर होती है,..एक बिडम्बना है 

दिन गुजरता है काम करते, रात सपनों में,

जिंदगी ग़रीब की ऐसे ही बसर होती है.....मगर गरीब सपने भी नहीं देख सकता है  हकीकत यही है .. इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई आदर्नीएया ..सादर 

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 28, 2014 at 3:06pm

आदरणीया अनीता जी
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने. कमाल के एहसासों को जमा किया है आपने.
बहुत मज़ा आया पढ़कर. बहुत बहुत मुबारकबाद इस खूबसूरत पेशकश पर

सारे आसार.. एक से बढ़कर एक
तकनीक की बात नहीं करूँगा मैं.. लिखते रहिए..

Comment by vandana on April 28, 2014 at 3:03pm

आदरणीया अनुश्री जी बहुत सुन्दर भाव संयोजन किया है आपने 

Comment by Shailendra Awasthi "AAKASH" on April 28, 2014 at 12:31pm

बहुत खूब अनीता जी.....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
3 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service