For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदतन हर रोज़ सवेरे-सवेरे

बुझते विश्वास की गहरी पीर

मौन विवशता के आवेशों में

बहता मन में निर्झर अधीर

आस-पास लौट आता है उदास

अकस्मात अनजाने तीखा गहरा

गहरे विक्षोभों का सांवला

देहहीन दर्दीला उभार

ज़िन्दगी के अब ढहे हुए बुर्जों में

विद्रोही भावों के अवशेष धुओं में

है फिर वही, फिर वही असहनीय

अजीब बदनसीब अनथक तलाश

नियति के नियामक चक्रव्यूहों में

पुरानी पड़ गई बिखरती लकीरों में

टूटे विश्वास की पीर के आवेगों में

कब पाया था  किसी ने ठहराव ?

               -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 610

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on May 4, 2017 at 3:19pm

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी।

Comment by vijay nikore on April 27, 2017 at 5:55pm

आदरणीय समर भाई, आप मेरी रचनाओं के मर्म को जिस प्रकार समय देते हैं, अनुभव करते हैं, उससे मेरा मन पिघल जाता है... मैं भाग्यवान हूँ कि आपसे ऐसी प्रशंसा मिली। धन्यवाद, आदरणीय भाई समर जी।

Comment by vijay nikore on April 26, 2017 at 2:41pm

//सच है कब किसी ने ठहराव पाया है । चलते रहने में ही जीवन की सार्थकता है //

रचना के मर्म को छूने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय आरिफ़ भाई।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 19, 2017 at 9:11pm
आदरणीय विजय निकोरे सर,भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए सादर हार्दिक बधाई!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 19, 2017 at 9:11pm
आदरणीय विजय निकोरे सर,भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए सादर हार्दिक बधाई!
Comment by vijay nikore on April 19, 2017 at 2:29pm

आदरणीय सुशील जी, आपने इस कविता को जिस प्रकार स्पर्ष किया, लेखक के लिए इससे अच्छा इनाम और क्या हो सकता है।

हार्दिक आभार, आदरणीय।

Comment by Samar kabeer on April 17, 2017 at 9:42pm
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,इस कविता के बारे में क्या अर्ज़ करूँ,एक एक लफ़्ज़ अपने आप में एक कहानी बयान करता हुआ महसूस हो रहा है,और यही आपकी लेखनी का कमाल है,पाठक को बांधने में पूरी तरह कामयाब है ये कविता,इस बहतरीन और नायाब प्रस्तुति के लिये दिल की गहराइयों से ढेरों दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Mohammed Arif on April 17, 2017 at 10:27am
आदरणीय विजय निकोरे जी आदाब,सच है कब किसी ने ठहराव पाया है । चलते रहने में ही जीवन की सार्थकता है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on April 16, 2017 at 7:44pm

नियति के नियामक चक्रव्यूहों में
पुरानी पड़ गई बिखरती लकीरों में
टूटे विश्वास की पीर के आवेगों में
कब पाया था किसी ने ठहराव ?

वाह आदरणीय विजय निकोर जी दर्द के नए आयाम , शब्दों में छुपी गहराइयाँ , कल कल करते भाव किस पाठक के मन को भाव विभोर होने से रोक पाएंगे ... इस अनुपम और अद्वितीय प्रवाहमयी प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बधाई स्वीकार करें सर। मज़ा आ गया ख़ास कर ''गहरे विक्षोभों का सांवला
देहहीन दर्दीला उभार'' वाली पंक्तियों में। वाह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service