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जब भी देखूँ वो मुझे  चाँद नज़र आता है: सलीम रज़ा रीवा

2122  1122  1122 22

जब भी देखूँ वो मुझे  चाँद नज़र आता है !
रोशनी बन के दिलो  जाँ मे समा जाता है !!

उस हसीं शोख़ का दीदार हुआ है जब से !
उसका ही चेहरा हरेक शै में नज़र आता है !!

मै मनाऊँ तो भला  कैसे मनाऊँ उसको !
मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है !!

क्यूं भला मान लूँ ये इश्क़ नहीं है उसका !
छु्‍पके तन्हाई में  गीतों को मेरे गाता है !!

मैं तुझे चाँद कहूँ  फूल कहूँ या  खुश्बू !
तेरा ही चेहरा हरेक शै में नज़र आता है !!

आज भी उसके है सीने में मुहब्बत मेरी !
जब भी मिलता है वो शरमा के निकल जाता है !!

ऐसे इन्सां पे ''रज़ा'' कैसे भरोसा करलें !
करके  वादा  जो हमेशा ही  मुकर जाता है !!


9424336644

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment

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Comment by SALIM RAZA REWA on September 12, 2017 at 5:53pm
मोहित जी शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 9, 2017 at 5:01pm
आ. चौहान साहब गज़ल पसंद करने के लिए दिली शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on August 24, 2017 at 8:21pm
Thank you very much Chahan sahab.
Comment by SALIM RAZA REWA on August 24, 2017 at 8:20pm
Thanks Brijesh Ji
Comment by narendrasinh chauhan on August 24, 2017 at 6:19pm

खूबसूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 24, 2017 at 5:17pm
बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय..सादर
Comment by SALIM RAZA REWA on August 24, 2017 at 3:35pm
आदरणीय भण्डारी जी शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on August 24, 2017 at 3:34pm
सुरेंद्र जी शायद आपने दोबारा नहीं पढ़ा.
Comment by SALIM RAZA REWA on August 24, 2017 at 3:33pm
आरिफ भाई शुक्रिया

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2017 at 12:34pm

आदरनीय सलीम भाई , खूब असूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ । आ. समर भाई जी की इस्लाह के बाद और भी खूबसूरत हो गई है , हार्दिक बधाइयाँ ।

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