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ग़ज़ल - दो पहर की धूप भी अच्छी लगी ( गिरिराज भंडारी )

2122    2122    212

दो पहर की धूप भी अच्छी लगी

साथ उनके हर कमी अच्छी लगी

 

यादों की थीं खुश्बुयें फैलीं वहाँ

तुम न थे फिर भी गली अच्छी लगी

 

कब कहा मैनें कि मैं था शादमाँ

कुल मिला कर ज़िन्दगी अच्छी लगी

 

सब में रहता है ख़ुदा ये मान कर

जब भी की तो बन्दगी अच्छी लगी

हाँ, ज़बाँ से भी कहा था कुछ मगर  

जो नज़र ने थी कही, अच्छी लगी

 

दोस्ती तो थी हमारी नाम की  

पर तुम्हारी दुश्मनी, अच्छी लगी

 

चाहतें पूरी हुईं तो मर गईं

जो अधूरी थी बची, अच्छी लगी

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 22, 2017 at 10:23pm
यादों की थीं खुश्बुयें फैलीं वहाँ
तुम न थे फिर भी गली अच्छी लगी...बहुत खूबसूरत आदरणीय बहुत खूबसूरत
Comment by Ravi Prabhakar on September 21, 2017 at 10:40pm

वाह ! शानदार ग़ज़ल कही भोले भंडारी बाबा !

यादों की थीं खुश्बुयें फैलीं वहाँ

तुम न थे फिर भी गली अच्छी लगी

चाहतें पूरी हुईं तो मर गईं

जो अधूरी थी बची, अच्छी लगी

इन दो शे'रों के लिए विशेष बधाई स्‍वीकारें ।  सादर


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2017 at 6:31pm

आदरणीय समर भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति हो उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार  ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2017 at 6:30pm

आदरणीय नीरज भाई , आपकी मुखर सराहना ने गज़ल कहना सार्थक कर दिया , आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2017 at 6:28pm

आदरणीय बसंत भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2017 at 6:28pm

आदरणीय मोहित भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2017 at 6:27pm

आदरणीय राम अवध भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।

Comment by Niraj Kumar on September 20, 2017 at 5:00pm

आदरणीय गिरिराज जी,

बहुत खूब! बेहतरीन! मैं भी थोडा शायर हो लेता हूँ :

इसकी मीठी सादगी अच्छी लगी.

सादर 

Comment by Samar kabeer on September 20, 2017 at 2:14pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 19, 2017 at 9:07pm

वाह अदभुत 

चाहतें पूरी हुईं तो मर गईं 

ज अधूरी थी बची अच्छी लगी, क्या बात है 

कृपया ध्यान दे...

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