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हौले से हिला कर के

नींद से जगा कर के

बहती है पवन जैसे

वो छू के गई ऐसे |

प्यारी सी एक लड़की

थी सांवले कलर की

एक ख़्वाब जगा करके

मुझे अपना बता कर के

वो छू के गई ऐसे-----

रात भर मुझे जगाना

बिन बात मुस्कुराना

सिर मेरा ही खाना

कहने पे रूठ जाना

वो छू के गई ऐसे----

दुनियाँ भली लगी थी

वो जब मुझे मिली थी

शायद थी भागवत वो

था मुझको गुनगुनाना |

वो छू के गई ऐसे---

उड़ के गई तितली

अब बाग लगे सूना

कहने को फरवरी है

लगे जून का महीना

वो छू के गई ऐसे---

.

सोमेश कुमार

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 415

Comment

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Comment by somesh kumar on February 12, 2018 at 10:37am
रचना पर आने और अपनी अनमोल प्रतिक्रिया देने के लिए सभी मित्रों को साधुवाद l
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 11, 2018 at 1:16pm

अच्छी रचना है सोमेश जी..बधाई

Comment by SALIM RAZA REWA on February 9, 2018 at 8:43am
सोमेश जी गीत बहुत अच्छा बधाई, ....
गीत के रदीफ़ का तुकांत हर आख़िरी बंद मे आना चाहिए जो नहीं है..
बहती है पवन जैसे
आपकी तुकान्त है तो हर बंद के अखिर में जैसे. तैसे. कैसे.. आदि आना था...सादर
Comment by रक्षिता सिंह on February 8, 2018 at 11:08pm

आदरणीय सोमेश जी, सुन्दर रचना ।

बहुत बहुत बधाई।

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