For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदगी ने कुछ सबक़ हमको सिखाकर दम लिया ( २४ )

ज़िंदगी ने कुछ सबक़ हमको सिखाकर दम लिया
ज़िंदगी जीने के लायक ही बनाकर दम लिया
***
साहिलों से जब मिले तूफ़ान का मुँह मोड़कर
साहिलों से फिर नये तूफाँ उठाकर दम लिया
***
जुस्तजू क़ामिल हमारी जब कभी होने को थी
फिर वहीँ पर जिस जगह थे हमको लाकर दम लिया
***
थे इरादे आसमाँ से और परिंदों सी उड़ान
हसरतों की धज़्ज़ियाँ सारी उड़ाकर दम लिया
***
कोशिशों में तो कमी छोड़ी नहीं हमने कभी
ख़ास बनने की जो चाहत थी भुलाकर दम लिया
***
बुतक़दा मस्जिद के दर देखे नहीं है आज तक
है वुजूद-ए-रब मगर हमको मनाकर दम लिया
***
या करो धोखा किसी से मार लो हक़ ग़ैर का
तो अमीरी साथ देगी बरगलाकर दम लिया
***
क्या मुक़द्दर क्या नजूमी क्या लक़ीरें हाथ की
टल नहीं सकती है होनी ये जताकर दम लिया
***
सिर्फ मेहनत से नहीं चमके कभी क़िस्मत 'तुरंत'
कुछ नया सा कर दिखाओ ये बताकर दम लिया
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी |
( मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 461

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 13, 2019 at 12:56am

आदरणीय Samar kabeer साहेब | आदाब | आपने सभी अशआर पर वाजिब इस्लाह की है जो  मेरी सोच से बहुत ऊपर है | एक एक कमी को विस्तार से बताया है | आपकी यही खूबी है आप बहुत गहराई तक जाकर सोच लेते हैं जहाँ नाचीज़ की सोच पहुँच ही नहीं पाती है | आपकी इन नवाज़िशों को शब्दों में ज़ाहिर करना बहुत मुश्किल है | जब से आपका करम नाचीज़ पर हुआ है आपने  कलाम को बेहतर बनाने में बहुत योगदान दिया है |  यही दुआ करूँगा  कि  आपका साया हम सभी पर बना रहे और स्नेह भी | सादर आभार | 

Comment by Samar kabeer on February 12, 2019 at 6:12pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के दोनों मिसरों में 'ज़िन्दगी'शब्द खटक रहा है,अगर ऊला में 'शाइरी' कर दें तो?

ठीक इसी तरह दूसरे शैर के दोनों मिसरों में 'साहिलों' शब्द खटक रहा है,उचित लगे तो ऊला यूँ कर लें:-

'जब किनारों से मिले तूफ़ान का रुख़ मोड़ कर'

'
जुस्तजू क़ामिल हमारी जब कभी होने को थी
फिर वहीँ पर जिस जगह थे हमको लाकर दम लिया'
किसने?
'हसरतों की धज़्ज़ियाँ सारी उड़ाकर दम लिया'
इस मिसरे में 'सारी' की जगह "हमने" शब्द उचित होगा ।
 
'है वुजूद-ए-रब मगर हमको मनाकर दम लिया'
इस मिसरे में 'मनाकर'क़ाफ़िया मुनासिब नहीं,ये रूठने मनाने वाला है,यहाँ "मनवाकर" चहिए जो आ नहीं सकता ।
'तो अमीरी साथ देगी बरगलाकर दम लिया'
इस मिसरे में 'बरगलाकर' शब्द ग़लत है,और दोनों मिसरों में रब्त भी नहीं,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'यूँ अमीरी ने हमें भी वरग़लाकर दम लिया'
Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 12, 2019 at 9:52am

 शिज्जु "शकूर" साहेब 

हौसला अफ़ज़ाई के लिए मश्कूरो मम्नून हूँ जनाब का।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 12, 2019 at 7:31am

आ. गहलोत जी अच्छी ग़ज़ल है सादर बधाई

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 11, 2019 at 10:25am

आदरणीय Surkhab Bashar जी ,

हौसला अफ़ज़ाई के लिए मश्कूरो मम्नून हूँ जनाब का।

Comment by Surkhab Bashar on February 10, 2019 at 10:18am

आ.  तुरंत जी उम्दा ग़ज़ल  है वाह वाह वाह 

Comment by Samar kabeer on February 8, 2019 at 10:49pm

जनाब तुरंत जी आदाब,आज रात 12बजे से सोमवार की रात 12 बजे तक ओबीओ का "लाइव महाउत्सव"अंक 100 के आयोजन में व्यस्त रहूँगा,(आप भी हिस्सा लें)इस कारण आपकी ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी बाद में दूँगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
35 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
42 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। भाई-चारा का…"
43 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
49 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी, ऐसा करना मुनासिब होगा। "
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ इस्लाह भी ख़ूब हुई आ अमित जी की"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ रिचा अच्छी ग़ज़ल हुई है इस्लाह के साथ अच्छा सुधार किया आपने"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय जी सादर नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु हार्दिक बधाई आपको ।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Sanjay Shukla जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Euphonic Amit जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Dinesh Kumar जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई है। "
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service