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आपने मुझ पे न हरचंद  नज़रसानी की (१०५ )

(2122 1122 1122 22 /112 )

.

आपने मुझ पे न हरचंद  नज़रसानी की

फिर भी हसरत है मुझे  इश्क़ में  ज़िन्दानी की

**

दिल्लगी आपकी नज़रों में  हँसी खेल मगर

मेरी नज़रों में है ये बात परेशानी की

**

मौत जब आएगी जन्नत के सफ़र की ख़ातिर

कुछ ज़रूरत न पड़ेगी सर-ओ-सामानी की

**

या ख़ुदा ऐसा कोई काम न हो मुझ से कभी

जो बने मेरे लिए वज्ह पशेमानी की

**

जिस तरह चाल वबा ने है चली दुनिया में

हर बशर के लिए है बात ये हैरानी की

**

दाद-ओ-तहसीन के बदले में किया है रुसवा

ख़ूब सौगात मिली प्यार में क़ुर्बानी की

**

तिफ़्ल और फूल शबाब और मरासिम की बशर

हर समय  ख़ास  ज़रूरत है निगहबानी की

**

ख़ूब हुशियार समझता था मैं ख़ुद को फिर भी

प्यार करने की 'हुज़ूर  आप से  नादानी की

**

अक़्ल पे  उनकी तरस आता है मुझको ऐ 'तुरंत ' 

अस्पतालों में करें मांग जो  बिरयानी की

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 29, 2020 at 6:38pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी , बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें | 

Comment by TEJ VEER SINGH on May 29, 2020 at 6:02pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत '  जी।बेहतरीन गज़ल।

ख़ूब हुशियार समझता था मैं ख़ुद को फिर भी

प्यार करने की 'हुज़ूर  आप से  नादानी की

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 26, 2020 at 2:22pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब , आदाब | 

बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें | 

Comment by Samar kabeer on May 26, 2020 at 2:10pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'आपने मुझ पे न हरचंद  नज़रसानी की'

इस मिसरे में 'नज़रसानी' ग़लत शब्द है,सहीह शब्द है "नज़र-ए-सानी' देखियेगा ।

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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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