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प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए (पूरी ग़ज़ल)

वो फख्र से जुदा हुए अनजान बन गए
प्यार का क़तल किया दीवान बन गए (1)

देते कभी थे इश्क़ में जन्मो के वास्ते
वो चार रोज़ में ही बेगान बन गए (2)

वादों की और इरादों की लम्बी कतार थी
फहरिस्त उन इरादों के अरमान बन गए (3)

अक्सर वफ़ा की कसमें जो खाते थे बार बार
कल तोड़ के कसम वो बेईमान बन गए (4)

महफ़िल कभी जिनके लिए हमने सजाई थी
आज उनकी महफ़िलों के महमान बन गए (5)

एहसास जिनकी कश्ती में महफूज़ था हमें
साहिल के आस पास ही तूफ़ान बन गए (6)

मिलते वहीं थे घाट पे करते थे गुफ्तगू
तेरे बगैर घाट भी वीरान बन गए   (7)

उस पार रेत से जो हमने घर बनाए थे
वो प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए (8)

अक्सर बिताईं शामें हमने विश्वनाथ में
अब पूजते हैं उनको वो भगवान् बन गए (9)

चर्चे हमारे इश्क़ के गलियों में खूब थे
ख़बरों में थे कभी अभी गुमनाम बन गए (10)

किस मोड़ पर ये इश्क़ हमको लेके आ गया
जलकर तुम्हारे प्यार में शमशान बन (11)

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 27, 2020 at 6:01am

आदरणीय ज़नाब रवि भसीन 'शाहिद'' साहब आपकी बातों का आगे पूरा ख्याल रखने की कोशिश करूँगा आपका तहे दिल से शुक्रिया और ओपन बुक्स ऑनलाइन का तहे दिल से शुक्रिया कि हमें सीखने का मौका आप जैसे गुणीजनो के सानिध्य में मिल रहा है सादर प्रणाम स्वीकार करें

Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 27, 2020 at 5:57am

आदरणीय मोहतरमा Dimple Sharma जी नमस्ते तहे दिल से माफ़ी चाहता हूँ देर से जवाब दे पाने के लिए
आपने मनोबल बढ़ाया इसके लिए सादर धन्यवाद

Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 27, 2020 at 5:54am

आदरणीय ज़नाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहब तहे दिल से माफ़ी चाहता हूँ देर से जवाब दे पाने के लिए
मैं एक छात्र हूँ और आप सभी गुणीजनों की बातों का ख्याल रखने की कोशिश कर रहा हूँ आपका सादर धन्यवाद

Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 27, 2020 at 5:52am

आदरणीय ज़नाब Ravi Shukla साहब तहे दिल से माफ़ी चाहता हूँ देर से जवाब दे पाने के लिए
मैं एक छात्र हूँ आपके मनोबल बढ़ाने के लिए तहे दिल से आभार

Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 27, 2020 at 5:51am

आदरणीय ज़नाब Samar kabeer साहब तहे दिल से माफ़ी चाहता हूँ देर से जवाब दे पाने के लिए
जी मैं नित्य ग़ज़ल के नए पाठ पढ़ रहा हूँ और सीखने की कोशिश कर रहा हूँ आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ की आप अपने कीमती वक़्त में से कुछ हम जैसे छात्रों को सीखने के लिए दे रहे हैं इस बार के तरही में कोशिश करूँगा खामियों को बहुत हद तक दूर कर्रूँ आशा रहेगी की आप ऐसे ही सिखाते रहेंगे
दिल से शुक्रिया

Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 27, 2020 at 5:47am

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' साहब तहे दिल से माफ़ी चाहता हूँ देर से जवाब दे पाने के लिए
आपको तहे दिल से शुक्रिया ज़नाब अपना कीमती वक़्त देने के लिए
आप से बहुत कुछ सीखने को मिला, अभी सीख रहा हूँ कृपया आशीर्वाद बनाए रखें
अगली ग़ज़ल में गलतियों को सुधरने की कोशिश करूँगा
सादर धन्यवाद

Comment by Ravi Shukla on June 16, 2020 at 2:46pm

आदरणीय विनय प्रकाश जी अच्छा प्रयास है ग़ज़ल का ,बधाई स्‍वीकार करें । आपकी गजल के हवाले से काफी कुछ सीखने को मिला है

Comment by नाथ सोनांचली on June 14, 2020 at 8:26am

आद0 विनय प्रकाश जी सादर अभिवादन। गुणीजनों की बातों का संज्ञान लीजिये। सादर

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 13, 2020 at 11:14pm

दूसरे शे'र में सहीह लफ़्ज़ है 'बेगाना'। हो सकता है आप ने इस लफ़्ज़ को किसी शे'र में इस्तेमाल होते हुए पढ़ा या सुना हो जहाँ मात्रा पतन किया गया है या इज़ाफ़त इस्तेमाल की गई है, और वहाँ ये आपको 'बगान' जैसा प्रतीत हुआ हो, जैसे कि जाँ निसार अख़्तर साहिब की मशहूर ग़ज़ल है:
   बेमुरव्वत बेवफ़ा बेगाना-ए-दिल आप हैं
   आप मानें या न मानें मेरे क़ातिल आप हैं
लेकिन फिर भी लफ़्ज़ 'बेगाना' ही रहेगा, और इस लफ़्ज़ को इस ग़ज़ल में क़ाफ़िया नहीं लिया जा सकता।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 13, 2020 at 10:57pm

आदरणीय प्रकाश तिवारी जी,
आपको इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई। आशा है कि आप उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब की बातों का संज्ञान लेंगे। आप को ओ बी ओ पर 'ग़ज़ल की कक्षा' ही कई ज्ञानवर्धक लेख मिल जाएँगे। मैं कुछ तकनीकी त्रुटियों की ओर हल्का सा इशारा कर देता हूँ।

1. बह्र
आप जब भी ग़ज़ल post करें, कृपया उसकी बह्र ज़रूर लिखें, ताकि सीखने और सिखाने वालों को आसानी हो।
आपके मतले के पहले मिस्रे (यानी मिस्रा-ए-ऊला) से मालूम होता है कि आपने ग़ज़ल के लिए ये बह्र चुनी है:
/वो फख्र से जुदा हुए अनजान बन गए/
221 / 2121 / 1221 / 212
लेकिन फिर दूसरे ही मिस्रे (यानी मिस्रा-ए-सानी):

/प्यार का क़तल किया दीवान बन गए/

का पहला लफ्ज़ 'प्यार', जिसका वज़्न 21 है, वो बह्र में नहीं है। मिसरे के पहले रुक्न में तो 221 के वज़न का लफ्ज़ या अलफ़ाज़ चाहिए।

देखिये ये मिस्रा किस तरह बह्र में आ सकता था:
221 / 2121 / 1221 / 212
उल्फ़त का क़त्ल कर के वो दीवान बन गए
(मैंने ये सिर्फ़ आपको बह्र की जानकारी देने के लिए लिखा है; इस मिसरे का अर्थ मैं नहीं समझ पाया हूँ)

2. दोष
a) तक़ाबुल-ए-रदीफ़
ग़ज़ल के अशआर कहते समय इस बात का ध्यान रखना होता है कि मतले को छोड़ कर किसी भी शे'र के पहले मिसरे का आख़िरी हर्फ़ रदीफ़ के आख़िरी हर्फ़ से मेल खाता ना हो। आप की ग़ज़ल में रदीफ़ है 'बन गए' इसलिए किसी भी शे'र के पहले मिसरे के अंत में 'ए' नहीं आना चाहिए, जो कि 2, 8, और 10 नंबर के अशआर में हो रहा है।

b) तनाफ़ुर
जब किसी लफ़्ज़ का आख़िरी अक्षर और अगले लफ्ज़ का पहला अक्षर एक ही होता है, तो बोलने में कठिनाई होती है, जिससे सुनने वाले को कई बार शे'र समझ ही नहीं आता, जैसे कि 2 नंबर शे'र में 'चार रोज़' और 8 नंबर शे'र में 'पार रेत'। कोशिश करना चाहिए कि आपकी ग़ज़ल में ये दोष न हो।

3. टंकण
साहित्यकार की सबसे पहले पहचान उसके लफ़्ज़ों के spelling देते हैं, इसलिए इस नुक़्ते पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कुछ टंकण त्रुटियाँ शे'र के नंबर के साथ इंगित कर रहा हूँ:
1. फ़ख़्र, क़त्ल
2. जन्मों ('बेगान' कोई लफ़्ज़ नहीं है)
3. क़तार, फ़हरिस्त,
4. क़समें, क़सम
7. गुफ़्तगू
10. ख़ूब

4. व्याकरण
जैसे कि आपके 6 नंबर शे'र का ऊला है:
/एहसास जिनकी कश्ती में महफूज़ था हमें/
व्याकरण की दृष्टी से देखा जाए तो ये इस तरह सहीह होगा:
'एहसास जिनकी कश्ती में महफूज़ होने का था हमें'
या
'महसूस जिनकी कश्ती में महफूज़ करते थे हम'
आदरणीय, ये मिसरे इस ग़ज़ल की बह्र में नहीं हैं। ये सिर्फ़ आप तक व्याकरण वाली बात पहुँचाने के लिए लिखे हैं।


आशा करता हूँ कि आप इन बिंदुओं पर ग़ौर करेंगे, अध्यन करेंगे, और इस बेहतरीन मंच के साथ जुड़े रहेंगे। सादर

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