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"अरे, कल तक तो आप ठीक लग रहे थे, आज इतना परेशान दिख रहे हैं. रात में फिर से बुखार तो नहीं आया था, दवा तो ले रहे हैं ना. ये कोविड भी जो न कराये, सारा देश परेशान है?, पत्नी ने उसके चिंतित चेहरे को देखते हुए कहना जारी रखा. कोविड के चलते वह दूर से ही खाना, पानी इत्यादि दे रही थी और बीच बीच में आकर हाल भी पूछ जाती थी.

"मैं तो बिलकुल ठीक हूँ लेकिन बेटी का बुखार उतरा कि नहीं, कहीं मेरे चलते उसे भी संक्रमण न हो जाए?, उसने शायद पत्नी की बात पूरी सुनी ही नहीं. 


मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by विनय कुमार on September 30, 2020 at 3:42pm
इस सारगर्भित टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ शेख शहजाद उस्मानी जी. शीर्षक के लिए आपका सुझाव उचित है
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 30, 2020 at 5:34am

आदाब। /चिंतित/ और /सारा देश परेशान/  में छिपे गहरे संदेशों के साथ, रचना की आरंभिक और अंतिम पंक्तियां रचना को विचारोत्तेजक बना रही हैं। पिता, पिता है। बेटी दिवस के अवसर पर बढ़िया समसामयिक रचना हेतु हार्दिक बधाई जनाब विनय कुमार साहिब। शीर्षक यदि कुछ और होता, तो कथानक व कथ्य का राज़ रचना के अंत में खुलता।  सुझाव - "इंफेक्शंस" , "संक्रमण" या "फीवर" या "बुखार".....

Comment by विनय कुमार on September 18, 2020 at 4:43pm

इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on September 18, 2020 at 4:42pm

इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहब

Comment by Samar kabeer on September 17, 2020 at 9:00pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब, अच्छी लघुकथा लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2020 at 6:49pm

आ. भाई विनय कुमार जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

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