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गरीबी..........
कैसी होती है गरीबी
शायद
तिमिर के गहन आवरण को
भेदने में असफल होती
जुगनू की
क्षीण सी रोशनी जैसी
या फिर
सफर को तय करते
थके हारे जूतों के
टूटे तलवों में हाँफते
पाँव के जैसी
या फिर
फुटपाथ पर सोयी
भोर की प्रतीक्षा में
चिथड़ों में लिपटी
वेदना के खोल में क्रंदन करते
रोटी के सपनों जैसी
या फिर
जीवन के अवसान पर
बेबस अमीरी की आँखों में
तैरते खारे सागर जैसी
क्या कहें
कैसी होती है गरीबी
सच कहूँ तो
अमीर कमीज के नीचे
फटी बनियान जैसी
होती है
ग...री...बी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on April 19, 2021 at 2:22pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 18, 2021 at 4:41am

आ. भाई सुशील जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on April 13, 2021 at 2:01pm

आदरणीय  अमीरुद्दीन साहिब,  आदाब ---सृजन के भावों को मान देने का दिल से शुक्रिया । 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 11, 2021 at 6:20pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, बहुत उम्दा नज़्म ख़ल्क़ हुई है। बहुत मुबारक हो। सादर।

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