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उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२ /२२

जिसका अपना यहाँ दायरा कम है
आसमाँ को भी  वो  मानता कम है।१।
*
मुझसे कहता है क्यों पूजता कम है
देख तुझ  में  भी  तो  देवता कम है।२।
*
जो  ठहरना  नहीं  चाहता  साथी
उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है।३।
*
बात औरों के सिर डालकर देखो
अपने  ईमान  को  तौलता कम है।४।
*
पास  बैठा  है  लेकिन  अबोला  ही
कौन कहता है अब फासला कम है।५।
*
हर बुराई  यहाँ  मिट  तो  जायेगी
अच्छे लोगो में पर हौसला कम है।६।
*
नींद इस को भले ढब नहीं आती
देश अपना  मगर  जागता कम है।७।


(१५-७-२१)
मौलिक अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 968

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2021 at 5:55am

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन । लम्बे अंतराल के बाद आपकी उपस्थिति से हर्षित हूँ। आपकी व भाई समर जी की बात समझ गया हूँ । आप लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिला है और मिलता रहेगा यही आस है। स्नेह व मार्गदर्शन के लिए सादर आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2021 at 5:51am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर पुनः उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। आपकी समझाइस समझ गया हूँ । बदलाव का दोनों रूप में प्रयास करता हूँ । सादर.. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 1, 2021 at 12:24am

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी, प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें. 

किंतु, आदरणीय समर साहब के बहर पर कहे का समर्थन मैं भी करूँगा. पंक्तियों का विन्यास मान्य बहर के अनुसार होना उचित होता है.

या फिर, छांदसिक विन्यासों पर ग़ज़ल कही जा सकती है. कहें.

शुभ-शुभ

Comment by Samar kabeer on July 30, 2021 at 2:45pm

//मैं जानना चाह रहा था कि क्या इसी बह्र को किसी अन्य बह्र के रूप में लिखा जा सकता है, बिना शब्द जोड़े घटाए ?//

भाई, 212 212 212 212 ये अरकान बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम के हैं, इसके अंतिम रुक्न 212 को ज़िहाफ़ लगा कर 212 की जगह 2(फ़ा) कर सकते हैं,यानी इसे 212 212 212 2 कर सकते हैं, इससे अधिक की गुंजाइश नहीं है,विस्तार से जानने के लिये फ़ोन पर सम्पर्क कर सकते हैं ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2021 at 12:54pm

आ. भाई समर जी,सादर अभिवादन । गजल पर पुनः उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद।

लेकिन मैं जानना चाह रहा था कि क्या इसी बह्र को किसी अन्य बह्र के रूप में लिखा जा सकता है, बिना शब्द जोड़े घटाए ?

सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2021 at 12:49pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी,सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2021 at 12:48pm

आ. भाई चेतन जी,सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद।

Comment by Samar kabeer on July 24, 2021 at 8:17pm

//क्या इस बह्र को किसी और प्रचलित बह्र में बदला जा सकता है?//

बिल्कुल बदला जा सकता है, आपका मतला देखें:-

'जिसका अपना यहाँ दायरा कम है
आसमाँ को भी  वो  मानता कम है'

अब आपके इस मतले को हम 2122 1212 22/112 पर ऐसे कर सकते हैं:-

'जिसका अपना ही दायरा कम है

आसमाँ को वो देखता कम है'

बस इसी तरह हर शैर को इस बह्र में ढाल सकते हैं ।

Comment by सालिक गणवीर on July 24, 2021 at 11:24am

भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी

सादर अभिवादन

अच्छी  ग़ज़ल  हुई है, बधाई स्वीकार करें

Comment by Chetan Prakash on July 21, 2021 at 7:56pm

अच्छी  ग़ज़ल  हुई है, भाई 'मुसाफिर,  ! लेकिन  चौथा शैर , बात औरों के सिर डाल कर देखो  / अपने ईमान को तौलता  कम है " में  रब्त का अभाव है, सादर  

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