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होते न अगर मौला समंदर तेरे खारे
अब तक इसे पी जाते सभी प्यास के मारे

कम गिनती में पड़ जाएँ फ़लक के ये सितारे
दिखला दिए  हमने जो कभी ज़ख़्म हमारे

मैं ख़ुद को फँसा  लेता हूँ तूफ़ान में और फिर
तूफ़ाँ ही मेरी कश्ती लगाता है किनारे

इक चाँद मेरे पहलू में सोता है मगर सच
रहते हैं ख़यालों  में कई जुगनू सितारे

सच बोलूँ  तरस आता है अब देख के तुझको
क्या हाल बना डाला तेरा इश्क़ ने प्यारे

साहिब सभी कहते हैं तो होती है ख़ुशी  पर
ख़्वाहिश है यही कोई मेरा नाम पुकारे

मौलिक अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Samar kabeer on December 21, 2021 at 8:32pm

जनाब अनीस जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 18, 2021 at 8:27am

आ. भाई अनीस जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Shyam Narain Verma on December 13, 2021 at 9:57am
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, हार्दिक बधाई l सादर
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 13, 2021 at 9:00am

जनाब अनीस 'अरमान' साहिब आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है, हर शे'र उम्द: हुआ है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें और बराहे करम दूसरों की रचनाओं पर भी टिप्पणीयाँ दिया करें। सादर। 

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