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ग़ज़ल (हँसी में उनकी हमने वो छुपा ख़ंजर नहीं देखा )

1222 - 1222 - 1222 - 1222 

हँसी में उनकी हमने वो छुपा ख़ंजर नहीं देखा 

हसीं मंज़र ही देखा था पस-ए-मंज़र नहीं देखा 

वो जैसा उनको देखा है कोई दिलबर नहीं देखा 

हसीं तो ख़ूब देखे हैं रुख़-ए-अनवर नहीं देखा 

ज़माने में कहीं तुम सा कोई ख़ुद-सर नहीं देखा 

सितमगर तो कई देखे मगर दिलबर नहीं देखा

वो मेरे ज़ाहिरी ज़ख़्मों को मुझसे पूछते हैं क्या 

दिवानों ने कभी दिल में चुभा नश्तर नहीं देखा 

जो कहते थे तुम्ही तो इक हमारे दिलमें रहते हो

न जाने क्यों उन्होंने ये दिल-ए-मुज़्तर नहीं देखा

बड़ा ग़मगीन करता है मुझे उसका बिखर जाना 

कभी मानिंद-ए-शीशा टूटता पत्थर नहीं देखा 

कहाँ लेकर ये ख़ाली हाथ मौला मैं चला जाऊँ

तेरे दर के सिवा मैंने तो कोई दर नहीं देखा 

हम अपने रब की सारी निअमतों को भूल बैठे हैं 

ज़माने में 'अमीर' इन्सान-सा ख़ुद-सर नहीं देखा 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 30, 2022 at 11:15am

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का शुक्रिया।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2022 at 7:09am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 14, 2022 at 1:56pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी ।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 14, 2022 at 11:59am

हार्दिक बधाई आदरणीय अमीरुददीन "अमीर" साहब जी। बेहतरीन ग़ज़ल

कहाँ लेकर ये ख़ाली हाथ मौला मैं चला जाऊँ

तेरे दर के सिवा मैंने तो कोई दर नहीं देखा ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 13, 2022 at 4:48pm

बहुत शुक्रिया जनाब आज़ी तमाम साहिब।

Comment by Aazi Tamaam on January 13, 2022 at 12:34pm

वाह आ ख़ूब ग़ज़ल हुई

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 12, 2022 at 11:26pm

//ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है आदरणीय 

बहुत बहुत बधाई

नियमानुसार बहर अवश्य लिखा करें तो अच्छा रहेगा

इस ग़ज़ल की बहर 1222×4 लग रही है//

जनाब मनोज अहसास जी ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन हेतु आभार ।

मान्यवर! नियमानुसार... किस नियम की बात कर रहे हैं आप, कृपया अवगत कराने का कष्ट करें, वैसे मेरी अधिकतर ग़ज़लों पर पर बह्र लिखी होती है, हालांकि ओ बी ओ पर ऐसा कोई नियम मेरी जानकारी में नहीं होने के बावजूद भी पाठकों और विश्लेषकों की सुविधा के लिए मैं बह्र लिखता रहा हूँ, मगर "अवश्य लिखा करें" ये आदेशात्मक आज्ञा आप उन्हें क्यों नहीं देते हैं जो अपनी ग़ज़लों पर कभी बह्र नहीं लिखते हैं?

इस ग़ज़ल की बह्र को आपने सही पहचाना है, कभी-कभी ये मशक्कत करना भी अच्छा होता है। सादर। 

Comment by मनोज अहसास on January 12, 2022 at 12:09am

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है आदरणीय 

बहुत बहुत बधाई

नियमानुसार बहर अवश्य लिखा करें तो अच्छा रहेगा

इस ग़ज़ल की बहर 1222×4 लग रही है

सादर

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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