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बेटी..रजनी ! तुम्हारे मामाजी के लड़के से, तुम्हारी ननद याने अपनी गायत्री की शादी, तय हो ही गई, मैं बहुत खुश हूँ, बस..! उन लोगो से लेनदेन की बात संभाल लेना, तुम तो जानती ही हो. आजकल महंगाई आसमान छू रही है.......सुलोचना जी ने अपनी बहु को बेटी बनाकर, बड़े ही प्यार से कहा..

जी हाँ..! माँ जी..महंगाई तो पिछले वर्ष भी आसमान से टिकी हुयी थी, जब आपने मेरे मायके वालों से लाखों का सोना और पूरी गृहस्थी का सामान मांग लिया था..खैर, वैसे मैंने मामाजी को फालतू खर्च की बजाय, मंदिर से शादी के लिए राजी कर लिया है.......रजनी ने अपनी सास के नहाने के गर्म पानी में, थोडा ठंडा पानी डालते हुए कहा..

   जितेन्द्र ' गीत '

 ( मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 18, 2013 at 7:25pm

बढ़िया कटाक्ष किया आपने 

बधाई आपको इस सार्थक लघु कथा के लिए 

Comment by शुभांगना सिद्धि on November 18, 2013 at 4:28pm

बढ़िया कथा, हार्दिक बधाई जितेंद्र जी!


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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 18, 2013 at 4:23pm

वाह भाई जितेन्द्र जी बहुत अच्छी लघुकथा, सास के गर्म पानी में ठण्डा पानी डालना एक अलग सोच लगी बहुत बहुत बधाई 

Comment by annapurna bajpai on November 18, 2013 at 2:49pm

वाह !! जितेंद्र जी क्या खूब , बहुत सुंदर , संदेश परक लघु कथा । बधाई । 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 18, 2013 at 2:46pm

गीत जी

सच है  जब अपने पर आती है

तब  सांप सूंघ जाता है  i

वैसे तो सभी वचन वीर है

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 18, 2013 at 2:20pm

सीख देती एक अच्छी पारिवारिक कथा । बधाई  जितेन्द्र  भाई ॥

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 18, 2013 at 2:10pm

आदरणीय जीतेंद्र भाई जी क्या कहने बहुत ही सुन्दर लघुकथा कितना सुन्दर जवाब दिया बहू ने सास को, अंतिम लाइन मुझे बहुत ही पसंद आई गर्म पानी में ठंडा पानी मिलाना. बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 18, 2013 at 1:27pm
सुन्दर लघुकथा
हार्दिक बधाई

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