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वे विचार करते हैं
पर नहीं जनम लेता कोई नया विचार बाँझ मस्तिष्क से
इसी सोच विचार में बैठे रहने ने
अकड़ा दी है उनकी पीठ और गर्दन
कहीं से आती भी है आहट
किसी  नए विचार की
तो उस पर ध्यान देने कि अपेक्षा
वो करते हैं प्रयास
अकड़ी गर्दन घुमा कर देखने का कि
ये आवाज़ कहाँ से आती है
तब जाके जान पाता हूँ मैं कि
सुनने से ज़यादा , उनके लिए महत्वपूर्ण है
देखना आवाज़ कि शकलो-सूरत
और इस तरह नहीं ले पाते
वे ' गोद ' किसी भी नए विचार को
क्यूंकि ज़िद है उन्हें कि
पैदा हो हर नया विचार
उन्ही के भीतर से
जिस से आगे बढ़ सके
' वंश'
उनकी नपुंसक सोच का...

------X-------

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 28, 2013 at 8:15pm

क्या बात है आदरणीय

बेहद प्रभावी अंदाज में मानसिकता को प्रस्तुत किया है आपने

जय हो

बधाई हो

Comment by annapurna bajpai on November 28, 2013 at 7:53pm

संदेशप्रद रचना बधाई आपको । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 28, 2013 at 12:53pm

बहुत ही सशक्त चित्रण आदरणीय क्या प्रहार किया है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 10:27am

जिस तरह की मानसिकता को अभिव्यक्ति की विषय वस्तु बनाया गया है...वह तो किसी भी लग विचार को ग्रहण करने को तैयार ही नहीं होती... बहुत बारीकी से ऐसे कपाट बंद मस्तिष्क की बंजरता को शब्द मिले हैं..

हार्दिक बधाई 

Comment by विजय मिश्र on November 27, 2013 at 4:12pm
अकड़ की पकड़ होती ही कुछ ऐसी है कि मनुष्यत्व नपुंसक करदे ,नवीन विचारों का न जनमना तो छोटी बात है |कथ्य सुस्पष्ट है और चेताने वाली भाषा में है |बहुत सुंदर रचना |बधाई अजयजी
Comment by Saarthi Baidyanath on November 27, 2013 at 1:56pm

गज़ब है श्रीमान ...आपने जो कहना चाहा है ...सफलता से पाठक तक पहुँच रही है ! ..बेजोड़ कृति !

सुनने से ज़यादा , उनके लिए महत्वपूर्ण है 
देखना आवाज़ कि शकलो-सूरत 
और इस तरह नहीं ले पाते 
वे ' गोद ' किसी भी नए विचार को 
क्यूंकि ज़िद है उन्हें कि 
पैदा हो हर नया विचार 
उन्ही के भीतर से 
जिस से आगे बढ़ सके 
' वंश' 
उनकी नपुंसक सोच का.....

Comment by Arun Sri on November 27, 2013 at 12:45pm

मारक प्रहार किया आपने ! बहुत सशक्त !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2013 at 6:42pm

आदरणीय इस सुंदर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 26, 2013 at 2:26pm

आदरणीय , बहुत सुन्दत भाव अभिव्यक्ति , सुन्दर विचार !!!!! आपको बधाई !!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2013 at 12:27pm

अजय  कुमार जी

बड़ा अच्छा व्यंग्य  है आपका

बाँझ मस्तिष्क  में विचार नहीं आते  i बड़ी सुष्ठु योजना है  i

आपके भाव पसंद  आये i

कृपया ध्यान दे...

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