For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जला न दे...''जान'' गोरखपुरी

112 212 221 212

बस कर ये सितम के,अब सजा न दे

हय! लम्बी उम्र की तू दुआ न दे।

अपनी सनम थोड़ी सी वफ़ा न दे

मुझको बेवफ़ाई की अदा न दे।

गुजरा वख्त लौटा है कभी क्या?

सुबहो शाम उसको तू सदा न दे।

कलमा नाम का तेरे पढ़ा करूँ

गरतू मोहब्बतों में दगा न दे।

इनसानियत को जो ना समझ सके

मुझको धर्म वो मेरे खुदा न दे।

रखके रू लिफ़ाफे में इश्क़ डुबो

ख़त मै वो जिसे साकी पता न दे।

न किसी काम का है हुनर सुखन

जब दो जून की रोटी, कबा न दे।            (कबा = कपड़े)

लिखता हूँ जिगर में आग को लिए

तुझको शेर मेरा उफ़! जला न दे।

रहने दें सता मत जिन्दगी उसे

परदा ‘’जान’’ तेरा गो हटा न दे।

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 839

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 12, 2015 at 7:50am

आदरणीय कृष्णा भाई , ग़ज़ल का बेहतरीन प्रयास ज़ारी है , बहुत सुन्दर !  ' ग़ज़ल की बातें ' का भी अध्ययन ज़रूर करें  मेरे खयाल से आसानी जियादा हो जायेगी । और समय कम लगेगा । आपको इस गज़ल के लिये दिली बधाइयाँ ।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 11, 2015 at 9:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया!आभार आ० shyam mathpal जी!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 11, 2015 at 9:05pm

आदरणीय गोपाल सर जी आपने सही कहा गजल में संकेतों को समझना आवश्यक है! सभी अग्रजों की दी हुयी सलाह और पाठ को मै सम्मानपूर्वक पूरे लगन से सिखने को तत्पर हूँ!!आदरणीय आपना आशीर्वाद बनायें रखें आदरणीय.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 11, 2015 at 8:57pm

आदरणीया manjari pandey जी उत्साह्वार्शन के लिए बहुत बहुत आभार!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 11, 2015 at 8:55pm

आ० सौरभ पाण्डेय सर!!रचना पर आपकी दृष्टी पड़ी सौभाग्य है मेरा!!अपना स्नेह इसी प्रकार मुझ पर बनाये रक्खें! बिल्कुल मै obo मंच से जितना मेरी योग्यता है उसके अनुरूप सीखने का हर संभव प्रयास कर रहा हूँ!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 11, 2015 at 8:50pm

आ० खुर्शीद सर जी! बिल्कुल मै यही जानना छह रहा था!!आपने एकदम सही मेरे मनोभाव को पकड़ा !!बहुत बहुत शुक्रिया, मुझे इतनी अच्छी तरह से समझने के लिए!!आरंभ से ही मुझे लग रहा था कुछ तो छूट रहा है, जो आ० मिथिलेश सर कहना चाह रहे वो मै पकड़ नही पा रहा हूँ! अभी गजल की कक्षा जो आ० तिलकराज जी द्वारा पाठ दिए है उसी को पढ़ पाया हूँ बस उसमें सबब-ए -ख़फ़ीक का जिक्र नही है शायद!इस वजह से यहाँ चूक हुई! खैर अब गज़ल के सागर कदम कदम पे सीख मिलती रहे इससे अच्छा क्या हो सकता है! आदरणीय खुर्शीद सर इसी प्रकार अपना वरदहस्त मुझ पर बनाये रक्खें!!बहुत बहुत आभार!

Comment by Shyam Mathpal on March 11, 2015 at 1:44pm

Priya Kirshna Mishra Ji,

Hridaya Sparshi rachna ke liye badhai.

इनसानियत को जो ना समझ सके

मुझको धर्म वो मेरे खुदा न दे। 

Insaaniyat Ke gaon bahut Door hain

Wahan tak pahuchane ke path kastpurn hain

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 11, 2015 at 12:09pm

प्रिय कृष्ण

हिन्दी  के छंद में वज्न का पता  चल जाता है पर उर्दू--गजल  में  संकेत करने से गजल को समझना आसान हो जाता है i  आ० सौरभ  जी और मिथिलेश वामनकर र्जी की सलाह काबिले गौर है i स्नेह i

Comment by mrs manjari pandey on March 11, 2015 at 11:38am

बस कर ये सितम के,अब सजा न दे

हय! लम्बी उम्र की तू दुआ न दे।

 बहुत सुन्दर असरदार रचना के लिए बधाई  आदरणीय । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 11, 2015 at 1:35am

आप मिहनत कर रहे हैं. बहुत बढिया.

मंच पर पोस्ट हो चुके ग़ज़ल से सम्बन्धित पाठों का अध्ययन करें. बहुत कुछ और स्पष्ट होगा.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service