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ख़्वाब आँखों में जितने (ग़ज़ल)-अभिषेक कुमार अम्बर

ख़्वाब आँखों में जितने पाले थे,
टूट कर के बिखर ने वाले थे।
जिनको हमने था पाक दिल समझा,
उन्हीं लोगों के कर्म काले थे।
पेड़ होंगे जवां तो देंगे फल,
सोचकर के यही तो पाले थे।
सबने भर पेट खा लिया खाना,
माँ की थाली में कुछ निवाले थे।
आज सब चिट्ठियां जला दीं वो,
जिनमे यादें तेरी सँभाले थे।
हाल दिल का सुना नही पाये,
मुँह पे मजबूरियों के ताले थे।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 13, 2016 at 3:03pm

खूबसूरत ग़ज़ल कही हार्दिक बधाई... आदरनीय भंडारी जी की बात ध्यान योग्य है 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 13, 2016 at 12:39pm
सुन्दरम् आदरणीय
Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 12, 2016 at 5:31pm

आदरणीय अभिषेक जी इस सुंदर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 12, 2016 at 5:19pm
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय ।बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 12, 2016 at 11:25am

आदरनीय अभिशेक भाई , अच्छी गज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।  इस मंच मे गज़ल के ऊपर बह लिख ने की परम्परा है , अतँ बहर लिख दिया कीजिये ।

मेरे खयाल से बह्र  -- 2122    1212    22 /112  है , अगर ये सही है तो आपका निम्न मिसरा बेहह्र  हो गया है --

उन्हीं लोगों के कर्म काले थे।       उन्ही की मात्रा 12 होती है , न कि 21

आप ऐसा कर सकते हैं -

कर्म उनके ही सारे काले थे  -- या जैसा आप सोचें ।

Comment by Abhishek Kumar Amber on August 12, 2016 at 9:47am
Shukriya adarniya Samar Kabeer ji. Apna ashirwad bnaye rakhe
Comment by Samar kabeer on August 11, 2016 at 7:49pm
जनाब अभिषेक कुमार'अम्बर'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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